भारत अपनी संस्कृति, रिवाज, भौगोलिक, भाषाई, धर्म, सामाजिक-सांस्कृतिक विशेषताओं के संदर्भ में अपनी विविधता के लिए प्रसिद्ध है, जिसमे विविधता में भी एकता का एक अद्भुत उदाहरण पा सकते हैं। इन विविधताओ के होते हुवे ही यहाँ एक ही त्योहार को विभिन्न प्रकार और विभिन्न नाम से बहुत धूमधाम के साथ मनाए जाते हैं। ऐसा ही एक त्योहार "उगादी" जो कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के लोग बनाते है। उगादी को तेलुगु और कन्नड़ के नए साल के दिन के रूप में मनाया जाता है, वही उत्तर भारत में "चैत्र नवरात्रि" का शुभारम्भ नव - वर्ष का आगमन माना जाता है और महाराष्ट्र में इसे "गुड़ी पाड़वा" के रूप में मनाया जाता है। आज ही के दिन सिंधी समाज के लोग "चेटीचंड" का त्योहार मनाते है।
उगादी का इतिहास -
उगादी शब्द जिसे समवत्सरदी युगादि के नाम से भी जाना जाता है, दो शब्दों 'युग' और ‘आदि’ के संयोजन से बना है जिसका अर्थ है एक नए युग की शुरुआत । उगादी का पर्व उन लोगों के लिए नए साल के आगमन का प्रतीक है जो दक्षिण भारत के चंद्र कैलेंडर का अनुसरण करते हैं। जो विशेष रूप से कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र राज्यों में माना जाता है| उगादी के दिन सृष्टि की रचना करने वाले ब्रह्मा जी की पूजा की जाती है। यह पर्व प्रकृति के बहुत करीब लेकर आता है जो किसानों के लिए नयी फसल का आगमन होता है। इस दिन पच्चड़ी नाम का पेय पदार्थ बनाया जाता है जो सेहत के लिए फायदेमंद होता है। उगादी के शुभ पर्व पर दक्षिण भारत में लोग नये कार्यों का शुभारंभ करते हैं।
क्यों मनाते हैं उगादी पर्व?
उगादी का पर्व दक्षिण भारत के सबसे महत्वपूर्ण पर्वों में से एक है, जिसे नववर्ष के आगमन के खुशी में मनाया जाता है। उगादी के पर्व को लेकर बहुत सारी पौराणिक मान्यताएं प्रचलित हैं, जिसमे ब्रह्मपुराण के अनुसार शिवजी ने ब्रम्हा जी को श्राप दिया था कि धरती पर कही भीं उनकी पूजा नही कि जायेगी, लेकिन आंध्रप्रदेश में उगादी पर्व पर ब्रम्हाजी की पूजा की जाती है। क्योंकि ऐसी मान्यता है कि इसी दिन से ब्रम्हा जी ने ब्रह्माण्ड की रचना करना शुरु किया था।
पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु मतस्य अवतार में अवतरित हुए थे।
उगादी पर्व को लेकर पौराणिक मान्यताओं के साथ साथ ऐतिहासिक वर्णन भी मिलता हैं।
ऐसा माना जाता है कि भगवान श्री राम वनवास के बाद अयोध्या लौट कर आये और उसके बाद उगादि के दिन ही उनका राज्याभिषेक भी हुआ था।
इसके अलावा इसी दिन सम्राट विक्रमादित्य ने शकों पर विजय प्राप्त की थी।
यदि सामान्य परिपेक्ष्य से देखा जाये तो उगादि का यह पर्व उस समय आता है जब भारत में वसंत ऋतु अपने चरम पर होती है और इसी समय किसानों को नयी फसल भी मिलती है इसलिए प्राचीन काल से ही किसानों द्वारा इस पर्व को नयी फसल प्राप्त होने के लिए ईश्वर को धन्यवाद देने के रुप में मनाया जाता है।
कैसे मनाते हैं उगादी पर्व ?
- चैत्र माह के प्रथम दिन उगादी पर्व को दक्षिण भारत के लोग विधिपूर्वक मनाते हैं।
- सबसे पहले प्रात: काल जल्दी उठकर नित्य कर्मों से निवृत्त होकर अपने शरीर पर उबटन और तिल का तेल लगाकर स्नान करते हैं।
- इसके बाद नए वस्त्र धारण करते हैं और घरों की साफ-सफाई करने के बाद लोग अपने घरों के प्रवेश द्वार को आम के पत्तों से सजाते हैं।
- सकारात्मक ऊर्जा के लिए लोग रंगोली, हल्दी या कुमकुम से स्वास्तिक का चिन्ह बनाते हैं।
- इस दिन देवताओं की वेदी का निर्माण कर उसको सजाया जाता है, वेदी पर सफेद रंग का कपड़ा बिछाकर उस पर हल्दी या पीले अक्षत से अष्टदल कमल का निर्माण करते हैं और ब्रह्मा जी की प्रतिमा को स्थापित करते हैं।
- इसके बाद पूजा के लिए हाथ में कुमकुम, अक्षत, चमेली का पुष्प, गंध और जल लेकर भगवान ब्रम्हा के मंत्रों का उच्चारण करते हैं।
- गणेसाम्बिका की पूजा करते हैं और फिर "ऊँ ब्रह्मणे" मंत्र का जाप करते हैं।
- आज के दिन घरों में "पच्चड़ी" नामक पेय पदार्थ बनाने की परंपरा है। जिसे इमली, आम, नारियल, नीम के फूल, गुड़ आदि को मटके में मिलाकर बनाया जाता है |
इस दिन आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में बोवत्तु या पोलेलु व्यंजन बनाया जाता है। यह एक प्रकार का पराठा होता है जिसे चने के दाल, गुड़ और हल्दी को गेहुं के आटे में गूंथकर देशी घी में तलकर बनाया जाता है।
साथ ही "बेवु-वेल्ला" नाम की चीज भी बनती है। यह गुड़ और नीम के मिश्रण से बना होता है, जो हमें हमारे जीवन में इस बात का ज्ञान कराता है कि जीवन में हमें मीठेपन तथा कड़वाहट भरे दोनो तरह के अनुभवों से गुजरना पड़ता है। इस मीठे-कड़वे मिश्रण को खाते वक्त लोगों इस संस्कृत श्लोक का उच्चारण करते है -
“शतायुर्वज्रदेहाय सर्वसंपत्कराय च ।
सर्वारिष्टविनाशाय निम्बकं दलभक्षणम् ॥”
अर्थ – “वर्षों तक जीवित रहने, मजबूत और स्वस्थ्य शरीर की प्राप्ति के लिए एवं सर्व सम्पति की प्राप्ति के लिए और सभी प्रकार की नकरात्मकता का विनाश करने के लिए हमें नीम के पत्तों को ग्रहण करना चाहिए।”
अंत में उगादी वह पर्व है जो हमें इस बात का अहसास कराता है कि हमें अतीत को, गुजरे हुवे पलों को पीछे छोड़कर आने वाले नए वर्ष पर ध्यान देना चाहिए और किसी भी प्रकार की असफलता या उदासीनता पर उदास न होकर सकारात्मक सोच और ऊर्जा के साथ नयी शुरुआत करनी चाहिए।
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