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नवदुर्गा उत्सव और नवरात्रि पर्व -
हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार वर्ष में चार बार नवदुर्गा या नवरात्रि का आगमन क्रमशः - माघ, चैत्र, आषाढ़, आश्विन में होता है l चैत्र मास की नवरात्रि को बसंतोत्सव नवरात्रि अथवा बड़ी नवरात्रि कहा जाता है, आश्विन मास की नवरात्रि छोटी नवरात्रि कहलाती है l तथा शेष दो आषाढ़ और माघ की नवरात्रियाँ गुप्त नवरात्रि कहलाती हैं l
साधना का पर्व है गुप्त नवरात्रि -
स्वयं शक्ति - माया सृजित इस समूचे चराचर अखिल विश्व की पालनहार और कण कण की अधिष्ठात्री देवी है माँ आदिशक्ति भवानी l वह स्वयं ही ज्ञान - प्रदायिनी, विमल बुद्धिदात्री माँ शारदा भी है, तो कभी असुर संहारक, रौद्र रूपधारिणी काली भी l ठीक इसी प्रकार वह शक्ति कभी चैत्र कालीन नवदुर्गा उत्सव में माँ पार्वती के रूप में नवदुर्गा स्वरूप में विराजमान है तो कहीं आषाढ़ और माघ की नवरात्रि में दस महाविद्याओं के रूप में विराजमान हैं जिसे गुप्त नवरात्रि कहते हैं l
सामान्यतः हम देखें तो पायेंगे कि नवदुर्गा उत्सव और नवरात्रि पर्व में बहुत कुछ असमानता के बावजूद भी एक स्तर पर समानता भी मिल जाती है बस स्वरूप बदल जाते हैं l नवदुर्गा का उत्सव भक्तों, श्रद्धालुओं, उपासकों का उत्सव है जिसमें वे माता जगत जननी से आत्मकल्याण और जनकल्याण की कामना करते हैं अर्थात यह सांसारिक जीवन का उत्सव है तथा दूसरी तरफ गुप्त नवरात्रि वैरागियों का साधकों का, तांत्रिकों का पर्व है सांसारिक लोग जहां प्रसिद्धि चाहते हैं वहीं दूसरी ओर तांत्रिक साधक सिद्धि चाहते हैं l
नवदुर्गाओं में लोग सात्विकता पर बल देते हैं नृत्य करते हैं, भजन गाते हैं, उपवास करते हैं जबकि गुप्त नवरात्रि के साधक कठोर से कठोर नियम का अवलंब करते हैंl नवदुर्गा उपासकों के लिए पार्वती स्वरूप है नवरात्र साधकों के लिए काली की आराधना हैl नवरात्र उपासकों के लिए प्रत्यक्ष है वह सांसारिक उन्नति देने वाली है जबकि गुप्त नवरात्रि अप्रत्यक्ष है यह आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर करती हैं इसमें जीवन से मुक्ति और मोक्ष की कामना हैl
फलतः यह कहा जा सकता है कि जिस प्रकार नदियों की धारा भिन्न भिन्न मार्गों से प्रवाहित होती हुई अंततः सागर में मिल जाती हैं ठीक उसी प्रकार साधक हो या उपासक हो अगर सच्चे मन से जगत जननी की सेवा करता है तो उसे सहज रूप में ही सिद्धियां भी मिल जाती हैं, प्रसिद्धियाँ भी मिल जाती हैं l मां की कृपा इन विशेष अवसरों पर विशेष रूप से प्राप्त होती है फलस्वरूप मनुष्य के इहलौकिक और पारलौकिक जीवन दोनों ही सफल हो जाते हैं l
- जय माता दी
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