कहा जाता है कि आदि अनादि काल तक शिव ही सत्य है। भगवान शिव के प्रति सबको सच्ची आस्था है इसलिए ही शक्ति स्वरूप शिव-शंकर को अनंत माना गया है। पुराणों के अनुसार भगवान शिव को सृष्टि के सृजनकर्ता कहा गया हैं जिनकी पूजा और भक्ति से हमारे समस्त कष्ट दूर हो जाते है। शिव जिनसे योग परंपरा की शुरुआत मानी जाती है इसलिए उनको आदि (प्रथम) गुरु माना जाता है। भगवान शिव की आराधना के लिए हर दिन अच्छा है पर सोमवार को शिव जी की पूजा की श्रेष्ठ माना जाता है। महादेव के लिए मुख्यतः सोमवार का व्रत, सावन माह में आने वाले सोमवार व्रत, प्रदोष व्रत, गणगौर पूजा, तीज व्रत और शिवरात्रि व्रत रखे जाते हैं।
फाल्गुनकृष्णचतुर्दश्यामादिदेवो महानिशि।
शिवलिङ्गतयोद्भूतः कोटिसूर्यसमप्रभ।।
वैसे तो हर माह शिवरात्रि होती है परन्तु फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष में चतुर्दशी के दिन भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग प्रकाट्य हुआ था (शिवपुराण और ईशान संहिता के अनुसार) इसलिए इस दिन को "महाशिवरात्रि" कहते है, जिसका महत्व हर माह की शिवरात्रि से कई गुना अधिक होता है। इस दिन देवों के देव महादेव की विशेष रूप से पूजा अर्चना की जाती है।
शिव-भक्त इस दिन शिवलिंग पर जल, कच्चा दूध, दही, पुष्प, बेल-पत्र, धतूरा, चन्दन आदि चढ़ाकर पूजा करते है, आज के दिन व्रत भी करते हैं। जिसके प्रभाव से जीवन के बाद मृत्यु होने पर बैकुंठ धाम जाने का सुख मिलता है। संसार में सभी दुःखों से मुक्ति मिलती है। विवाहित महिलाएं अपने पति के सुखी जीवन के लिए प्रार्थना करती हैं व कुंवारी कन्याएं मनचाहे वर के लिए इस दिन खासतौर पर व्रत रखती हैं और शिव की पूजा करती है।
शिवरात्रि में शिव + रात्रि शब्द है तो जाहिर है कि शिव की पूजा अर्चना के साथ रात्रि जागरण भी महत्वपूर्ण होता है। परंपरा के अनुसार, इस रात को ग्रहों की स्थिति ऐसी होती है जिसमे ऊर्जा की एक शक्तिशाली प्राकृतिक लहर बहती है जो हमारे मानव प्रणाली के लिए लाभकारी मानी जाती है इसलिए रात्रि जागरण करना चाहिए। भगवान शिव को "नटराज" के रूप में भी पूजा जाता है तो इसमें शास्त्रीय संगीत और नृत्य के विभिन्न रूप से भक्तगण अपने आराध्य देव की पूजा करते हैं।
महाशिवरात्रि मनाने के 3 मुख्य कारण है -
1. शिवपुराण के अनुसार फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महादेव शिवलिंग स्वरुप में प्रकट हुए थे। इसलिए हर साल फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को महाशिवरात्रि पर्व के रूप में मनाते हैं।
2. मान्यताओं के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन शिव और शक्ति विवाह के बंधन में बंधे थे। प्रभु शिव ने वैराग्य छोड़कर गृहस्थ आश्रम में प्रवेश किए था इसके लिए कई स्थानों पर महाशिवरात्रि के शुभ अवसर पर शिव जी की बारात निकाली जाती है और शिवभक्त शिव-पार्वती का विवाह भी कराते हैं। भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती का विवाह कराने से वैवाहिक जीवन की समस्याएं दूर होती हैं एवं दांपत्य जीवन भी खुशहाल व्यतीत होता है।
3. पौराणिक कथाओं के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन ही 12 ज्योतिर्लिंग (प्रकाश के लिंग) प्रकट हुए थे। जो पूजा के लिए भगवान शिव के पवित्र धार्मिक स्थल और केन्द्र हैं। यह सभी ज्योतिर्लिंग स्वयम्भू के रूप में जाने जाते हैं, जिसका अर्थ है "स्वयं उत्पन्न"। इन 12 ज्योतिर्लिंगों के प्रकट होने के उत्सव के रूप में भी महाशिवरात्रि मनाई जाती है।
यह बारह स्थानों पर बारह ज्योतिर्लिंग स्थापित हैं, उनके नाम और स्थान -
1. पहला ज्योतिर्लिंग है सोमनाथ ज्योतिर्लिंग - सोमनाथ यह शिवलिंग गुजरात के काठियावाड़ में स्थापित है। शिव भक्त चन्द्रमा को क्षय रोग होने के श्राप से मुक्ति के लिए अरब सागर के तट पर चन्द्रमा ने शिवलिंग की स्थापना की और शिव जी की तपस्या की, भगवान शिव के आशीर्वाद से वह शिवलिंग "सोमेश्वर यानी सोमनाथ" कहलाया गया।
2. दूसरा ज्योतिर्लिंग है मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग - श्री शैल मल्लिकार्जुन शिवलिंग मद्रास में कृष्णा नदी के किनारे पर्वत पर स्थापित है। इसका महत्व कैलाश पर्वत के समान माना जाता है। मल्किकार्जुन में मलिका माँ पार्वती और अर्जुन प्रभु शिव का स्वरूप है।
3. तीसरा ज्योतिर्लिंग है महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग - महाकाल उज्जैन में स्थापित महाकालेश्वर शिवलिंग, जहाँ शिवजी ने दैत्यों का नाश किया था इसलिए यहां की भस्म आरती की मान्यता भारत के हर कोने में मानी जाती है।
4. चौथा ज्योतिर्लिंग है ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग - ॐकारेश्वर (मध्य प्रदेश) में नर्मदा तट पर पर्वतराज विंध्य की कठोर तपस्या से खुश होकर वरदान देने के लिए प्रभु यहां प्रकट हुए थे।
5. पांचवा ज्योतिर्लिंग है केदारनाथ ज्योतिर्लिंग - यह हिमालय का दुर्गम स्थल है जहाँ पर पहुंचने के लिए 14 किलोमीटर की चढ़ाई करनी होती है। इसके दर्शन अक्षय तृतीया को खुलते है और दिवाली के बाद बंद हो जाते है।
6. छठा ज्योतिर्लिंग है भीमशंकर ज्योतिर्लिंग - महाराष्ट्र के पुणे से लगभग 110 किलोमीटर दूर सह्याद्रि पर्वत पर स्थित है मंदिर के पास भीमा नदी बहती है।
7. सातवां ज्योतिर्लिंग है विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग - बनारस के काशी विश्वनाथ मंदिर में स्थापित विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग। माना जाता है कि काशी भगवान भोलेनाथ के त्रिशूल पर ही टिकी है।
8. आठवां ज्योतिर्लिंग है त्र्यंम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग - नासिक (महाराष्ट्र) से 25 किलोमीटर दूर त्र्यंम्बकेश्वर में स्थापित ज्योतिर्लिंग, जहां पर शिवलिंग के दर्शन कांच से किये जाते है।
9. नवा ज्योतिर्लिंग है नागेश्वर ज्योतिर्लिंग - गुजरात के द्वारकाधाम के निकट जामनगर जिले में नागेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थापित है। यहां भगवान शिव "नागों के ईश्वर" के रूप में पूजनीय है।
10. दसवां ज्योतिर्लिंग है बैजनाथ ज्योतिर्लिंग - बैजनाथ शिवलिंग झारखंड के बैद्यनाथ धाम में स्थापित है। इसे रावणेश्वर धाम के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि भगवान शिव ने यह रावण की तपस्या से खुश होकर उनको दिया था और रावण ने लघुशंका आने के कारण शिवलिंग को बैजू नाम के लड़के को पकड़ाकर लघुशंका करने चला गया। बैजू ने शिवलिंग को वहीं स्थापित कर दिया। इसलिए इसे बैजनाथ धाम के नाम से पुकारा जाता है।
11. ग्यारवां ज्योतिर्लिंग है रामेश्वर ज्योतिर्लिंग - रामेश्वरम् त्रिचनापल्ली (तमिलनाडु - मद्रास पुराना नाम) समुद्र तट पर भगवान श्रीराम द्वारा स्थापित रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग। यहां २४ कुंड में स्न्नान करने के बाद मंदिर जाते है, शिवलिंग के साथ मणि दर्शन बहुत शुभ माना जाता है।
12. बारहवां ज्योतिर्लिंग है घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग - घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग औरंगाबाद जिले (महाराष्ट्र) के दौलताबाद के वेरुलगांव में स्थापित है। यह शिवलिंग शिव की परम भक्त घुष्मा की असीम भक्ति का स्वरूप है। उसी के नाम पर ही इस शिवलिंग का नाम घुष्मेश्वर/घृष्णेश्वर पड़ा था।
भगवान शिव की पूजा कैसे करे ?
भगवान शिव की पूजा को अभिषेक करना कहते है, जिसमे जलाभिषेक : जल से और दुग्धाभिषेक : दूध से किया जाता है। भगवान शिव ने जब हलाहल विष को पिया तब उस विष के प्रभाव को ठंडा करने के लिए देवताओ ने जल, दूध, दही से प्रभु को स्न्नान करवाया था। इसलिए भगवान शिव का अभिषेक इन सब से किया जाता है।
- सर्वप्रथम सूर्योदय से पहले स्न्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें।
- शिव मंदिर या घर के मंदिर में जाकर भगवान को प्रणाम करे और एक साफ आसान बिछा के बैठ जाये।
- शिवलिंग पर पानी, दूध और शहद, गन्ने के रस के साथ तांबे के कलश से अभिषेक करे। अभिषेक के साथ "ॐ नमः शिवाय" मंत्र का उच्चारण करे। पंचामृत से अभिषेक करने से मानसिक शांति मिलती है।
- अभिषेक के बाद शिवलिंग पर चंदन का लेप लगाए। यह क्रिया पुण्य का प्रतिनिधित्व है।
- उसके बाद पुष्प (गेंदे के फूल की माला), आकड़ा के फूल, बेर एवं बिलपत्र अर्पण करे, जो आत्मा को शुद्धि प्रदान करते हैं।
- पान के पत्ते शिव जी को अर्पण करे, जो सांसारिक सुखों के साथ सन्तोष दायी हैं।
- फल चढ़ाये, जो इच्छाओं की सन्तुष्टि को दर्शाता हैं।
- धूप/दीपक से आरती करे, दीपक जो ज्ञान की हमे ज्ञान की रौशनी देता है।
- अंत में 108 बार "ॐ नमः शिवाय", "महा मृत्युंजय मंत्र", "शिव तांडव स्तोत्र" या फिर "रुद्रामंत्र" का जाप करे, जो दीर्घायु का प्रतिनिधित्व करता है।
शिवरात्रि कहा और कैसे मनाई जाती है -
भारत के अलावा नेपाल और बांग्लादेश में भी महाशिवरात्रि का पर्व बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। शिव भक्त मंदिर में जाके अभिषेक एवं पूजा करते है।
मध्य भारत -
मध्य भारत में शिव के अनुयायियों की एक बड़ी संख्या है। महाकालेश्वर मंदिर, (उज्जैन) सबसे लोकप्रिय भगवान शिव का मंदिर है जहाँ हर वर्ष शिव भक्तों की एक बड़ी मण्डली महा शिवरात्रि के दिन पूजा-अर्चना करती है। ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग ॐकारेश्वर, शिव मठ मंदिर में तथा नदियों के घाट, अन्य स्थानों पर यह त्योहार बहुत धार्मिक उत्साह के साथ मनाया जाता है। शिव मंदिर में भक्तों द्वारा सहस्त्र धारा का आयोजन किया जाता है।
कश्मीर -
कश्मीरी ब्राह्मणों के लिए यह सबसे महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है। महाशिवरात्रि का त्योहार शिव और पार्वती के विवाह के रूप में हर घर में मनाया जाता है। यह उत्सव महाशिवरात्रि के 3-4 दिन पहले यह शुरू हो जाता है और उसके दो दिन बाद तक जारी रहता है।
दक्षिण भारत -
महाशिवरात्रि आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु और तेलंगाना के सभी मंदिरों में व्यापक रूप से मनाई जाती है।
बांग्लादेश -
बांग्लादेश में हिंदू महाशिवरात्रि मनाते हैं। भक्त भगवान शिव के दिव्य आशीर्वाद को प्राप्त करने के लिए व्रत रखते हैं। कई बांग्लादेशी हिंदू इस दिन को "चंद्रनाथ धाम (चिटगांव)" जाते हैं। उनकी मान्यता है कि इस दिन व्रत व पूजा करने से मन चाहा पति या पत्नी की प्राप्ति होती है।
नेपाल -
महाशिवरात्रि को नेपाल के "पशुपति नाथ मंदिर" में सामूहिक महोउत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस पावन अवसर पर काठमांडू के पशुपतिनाथ मन्दिर पर भक्तजनों की भीड़ लगती है जहां पर नेपाल के अलावा भारत समेत विश्व के अन्य स्थानों से भी शिवभक्त, तपस्वी और जोगी इस मन्दिर में शिव की अराधना करने आते हैं।
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