Bhartiya Parmapara

मकर संक्रांति पर्व

संक्रांति का अर्थ - "सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में संक्रमण करना (प्रवेश करना) संक्रांति कहलाता है"। इस प्रकार पूरे वर्ष में कुल १२ संक्रान्तियाँ होती हैं।  

मकर संक्रांति - जब सूर्य पौष माह से धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है तब मकर-संक्रांति होती है। संक्रांति के आते ही सूर्य उत्तरायण हो जाता है। माना जाता कि आज के दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि देव से मिलने जाते है। इस दिन ही गंगा की अमृत धारा धरा पर उतरी थी।  

शास्त्रों के अनुसार दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि अर्थात नकारात्मकता का प्रतीक है और उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात सकारात्मकता का प्रतीक माना जाता है। इसलिए संक्रांति के दिन सूर्य देव की पूजा, स्नान, दान, श्राद्ध, तर्पण जैसे धार्मिक कार्यो के लिए बहुत उपयुक्त है। उत्तरायण में दिन बड़े और रातें छोटी होती हैं। मकर संक्रांति के दिन किया गया दान 100 गुना पुण्यदायी होता है, इस दिन तिल, गुड़, खिचड़ी, उड़द दाल दान बहुत ही लाभदायक होता है। इस दिन पितरों के लिए तिल से तर्पण करना चाहिए। साथ ही इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान भी अति उत्तम माना जाता है। जो कि इस श्लोक से ज्ञात होता है -  

"माघे मासे महादेव: यो दास्यति घृतकम्बलम।  
स भुक्त्वा सकलान भोगान अन्ते मोक्षं प्राप्यति॥"  

मकर संक्रांति भारतवर्ष के सभी प्रांतों में अलग-अलग नाम व भांति-भांति के रीति-रिवाजों द्वारा भक्ति एवं उत्साह के साथ धूमधाम से मनाया जाता है। आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, केरल, उड़ीसा, पंजाब और गुजरात में संक्रांति के दिन ही मास का आरम्भ होता है। जबकि बंगाल और असम में संक्रांति के दिन महीने का अंत माना जाता है। इस दिन कहीं जगहों पर लोग पतंग भी उड़ाते हैं, आकाश में उड़ती स्वतंत्र पतंगें यह अद्भुत नजारा आज के ही दिन देखने को मिलता है।

Kite Festival

देश के विभिन्न भागों में अलग अलग नाम से यह त्योहार मनाते है। विभिन्न प्रान्तों में इस त्योहार को मनाने के जितने अधिक रूप प्रचलित हैं उतने किसी अन्य पर्व में नहीं है।  

- राजस्थान में इस पर्व पर सुहागन महिलाएं अपनी सास को वायना देकर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। साथ ही महिलाएं किसी भी सौभाग्य सूचक वस्तु का चौदह की संख्या में पूजन एवं संकल्प कर चौदह ब्राह्मणों, गरीबों और बहन - बेटी को दान देते हैं।  

- हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में इसे "माघी" के नाम से जाना जाता है। 

- पंजाब में "लोहड़ी" के रूप में एक दिन पूर्व १३ जनवरी को ही मनाया जाता है। इस दिन अंधेरा होते ही आग जलाकर अग्नि देव की पूजा करते हुए तिल, गुड़, चावल और भुने हुए मक्के की आहुति दी जाती है। जिसे तिलचौली कहा जाता है। इस अवसर पर लोग मूंगफली, तिल की बनी हुई गजक और रेवड़ियां आपस में बांटकर खुशियाँ मनाते हैं। छोटी लड़कियाँ घर-घर जाकर लोकगीत गाती है और लोहड़ी माँगती हैं। नई बहू और नवजात बच्चे के लिये लोहड़ी का विशेष महत्व होता है। इसके साथ पारम्परिक मक्के की रोटी और सरसों का साग बनाया जाता है। 

- उत्तर प्रदेश में इस दिन मुख्य रूप से दान का विशेष महत्व है इसलिए इसे "दान का पर्व" कहते है। इलाहाबाद में गंगा, यमुना व सरस्वती के संगम पर प्रत्येक वर्ष एक माह तक माघ मेला लगता है जिसे माघ मेले के नाम से जाना जाता है। 14 जनवरी से ही इलाहाबाद में हर साल माघ मेले की शुरुआत होती है। 14 दिसंबर से 14 जनवरी तक का समय खर / मल मास के नाम से जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि 14 जनवरी यानी मकर संक्रांति से पृथ्वी पर शुभ कार्य की शुरुआत होती है। माघ मेले का पहला स्नान मकर संक्रांति से शुरू होकर शिवरात्रि तक आखिरी स्नान होता है। संक्रांति के दिन स्नान के बाद तिल व गुड़ के मिष्ठान ब्राह्मणों व गरीबों को दान दिया जाता है। उत्तर प्रदेश में इस पर्व को खिचड़ी के नाम से जाना जाता है तथा इस दिन खिचड़ी खाने एवं खिचड़ी का दान देने का अत्यधिक महत्व है। 

- बिहार में भी मकर संक्रांति को खिचड़ी के नाम से जाना जाता है। इस दिन उड़द, चावल, तिल, चिवड़ा, गौ, स्वर्ण, ऊनी वस्त्र, कम्बल आदि दान किये जाते है। 

- महाराष्ट्र में इस दिन सभी विवाहित महिलाएं अपनी पहली संक्रांति पर कपास, तेल व नमक आदि चीजें अन्य सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं। तिल-गूल नाम से हलवे के बाँटने की प्रथा भी है। लोग एक दूसरे को तिल गुड़ देते हैं और देते समय बोलते हैं -"तिळ गूळ घ्या आणि गोड़ गोड़ बोला" अर्थात तिल गुड़ लो और मीठा - मीठा बोलो। इस दिन महिलाएं आपस में तिल, गुड़, रोली और हल्दी बांटती हैं। 

- बंगाल में इसे "पौष संक्रांति" कहते है, वहाँ भी इस पर्व पर स्नान के पश्चात तिल दान करने की प्रथा है। यहाँ गंगासागर में प्रति वर्ष विशाल मेला लगता है। मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं। मान्यता यह भी है कि इस दिन यशोदा ने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिए व्रत किया था। इस दिन गंगासागर में स्नान-दान के लिये लाखों लोगों की भीड़ होती है। लोग कष्ट उठाकर गंगा सागर की यात्रा करते हैं। वर्ष में केवल एक दिन मकर संक्रांति को यहाँ लोगों की अपार भीड़ होती है। इसलिए कहा जाता है- "सारे तीरथ बार बार, गंगा सागर एक बार।" 

- तमिलनाडु में इस त्योहार को "पोंगल" के रूप में चार दिन तक मनाया जाता हैं। प्रथम दिन भोगी-पोंगल, द्वितीय दिन सूर्य-पोंगल, तृतीय दिन मट्टू-पोंगल अथवा केनू-पोंगल और चौथे व अन्तिम दिन कन्या-पोंगल होता है। इस प्रकार पहले दिन कूड़ा करकट इकठ्ठा कर जलाया जाता है, दूसरे दिन लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है और तीसरे दिन पशु धन की पूजा की जाती है। पोंगल मनाने के लिए स्नान करके खुले आँगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनायी जाती है, जिसे पोंगल कहते हैं। इसके बाद सूर्य देव को नैवेद्य चढ़ाया जाता है। उसके बाद खीर को प्रसाद के रूप में सभी ग्रहण करते हैं। इस दिन बेटी और जमाई राजा का विशेष रूप से स्वागत किया जाता है।  

- असम में मकर संक्रांति को "माघ-बिहू" अथवा "भोगाली-बिहू" के नाम से मनाते हैं।  

- गुजरात और उत्तराखंड  में "उत्तरायण" के नाम से यह पर्व मनाते है। गुजरात में "पतंगबाजी" का निराला स्वरूप देखने को मिलता है। 

- कश्मीर में "शिशुर सेंक्रात" के नाम से यह पर्व मनाते है। 

- कर्नाटक में मकर संक्रांति को "मकर संक्रमण" भी कहते है। 

- केरल में "मकर विलक्कू" के नाम से यह त्योहार मनाया जाता है।  

- आंध्र प्रदेश में "पेड्डा पंडी" के नाम से मकर संक्रांति का पर्व मनाते है।  

 इस प्रकार मकर संक्रांति के माध्यम से भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की झलक विविध रूपों में देखी जा सकती है।

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