अक्षय तृतीया या आखा तीज वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनायी जाती हैं। अक्षय शब्द को २ भाग में विभाजित करके इसके अर्थ को आसानी से समझा सकता है, अ + क्षय जिसका कभी क्षय (नाश) ना हो । भविष्यपुराण, मत्स्यपुराण, पद्मपुराण, विष्णुधर्मोत्तर पुराण, स्कन्दपुराण में इस तिथि का विशेष उल्लेख मिलता है।
वैशाख माह की तृतीय तिथि को स्वयंसिद्ध मुहूर्तमाना जाता है। इस दिन कोई भी शुभ कार्य करने के लिए पंचागं देखने की जरूरत नहीं है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार यह तिथि बहुत ही पुण्यदायी तिथि है, इस दिन किये गए जो भी शुभ कार्य और दान आदि का फल अक्षय होता है यानी कई जन्मों तक इसका लाभ मिलता है। इसी कारण अक्षय तृतीया को "अक्षय फलदायी" भी कहते है।
अक्षय तृतीया पर प्रचलित मान्यताये -
- अक्षय तृतीया से जुड़े तथ्यों के अनुसार इस तिथि को सतयुग और त्रेतायुग की शुरुआत हुई थी और द्वापर युग का समापन भी इसी दिन हुआ था।
- भगवान विष्णु के छठें अवतार भगवान परशुराम का जन्म हुआ था। जिनके पिता महर्षि जमदाग्नि और माता रेनुका देवी थे। इसलिए अक्षय तृतीया के दिन भगवान विष्णु की उपासना करना शुभ माना जाता है। इसदिन कोंकण, चिप्लून और दक्षिण भारत के परशुराम मंदिरों में परशुराम जयंती बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है।
- इस दिन जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव भगवान ने एक वर्ष की तपस्या पूर्ण करी और इसके पश्चात इक्षु (शोरडी-गन्ने) रस से पारायण किया था। जैन धर्म में यह दिन "इक्षु तृतीया" एवं अक्षय तृतीया के नाम से विख्यात है ।
- शिवपुराण के अनुसार भगवान शिव ने इसी दिन भगवान कुबेर और माता लक्ष्मी की पूजा - अर्चना करने की सलाह दी थी। तभी से अक्षय तृतीया के दिन माता लक्ष्मी और कुबेर देव की पूजा की जाती है और यह परंपरा सदियों से आज तक चली आ रही है।
- ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का आविर्भाव भी इसी शुभ दिन हुआ था |
- राजा भगीरथ के हजारों वर्षो के तप के बाद अक्षय तृतीया के दिन ही माँ गंगा का धरती पर आगमन हुआ था। इसलिए गंगा स्नान करने से समस्त पापो का नाश होता हैं और सारे तीर्थ करने का फल मिलता है।
- अक्षय तृतीया के दिन वेद व्यास जी ने महाभारत ग्रंथ, जिसे पांचवें वेद के रूप में मानते है को लिखना शुरू किया था। महाभारत में ही श्रीमद्भागवत गीता समाहित है। अक्षय तृतीया के दिन श्रीमद्भागवत गीता का पाठ करना चाहिए। इसी दिन महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था|
- अक्षय तृतीया माँ अन्नपूर्णा का जन्म दिवस भी माना जाता है। इस दिन गरीबों और ब्राह्मणों को खाना खिलाया जाये या अपनी श्रद्धा अनुसार भंडारे करने से माँ अन्नपूर्णा की कृपा हमेशा बनी रहती है और घर में अन्न का भंडार बना रहता है।
- उत्तराखंड के चार धाम की यात्रा भी आज से शुरू होती है, क्यूंकि बदरीनाथ और केदार नाथ धाम के कपाट भी अक्षय तृतीया के दिन खुलते हैं।
- इस दिन पितरों को किया गया तर्पण तथा पिन्डदान का अक्षय फल मिलता है। साथ ही इस दिन किया गया जप, तप, यज्ञ और दान का फल भी अक्षय हो जाता है।
- अक्षय तृतीया के दिन ही पांडव के ज्येष्ठ पुत्र युधिष्ठर को अक्षय पात्र की प्राप्ति हुई थी। अक्षय पात्र में से कभी भी भोजन समाप्त नहीं होता था।
- वृंदावन (उत्तर प्रदेश) में स्थित श्री बांके बिहारी जी मन्दिर में भी केवल इसी दिन श्री विग्रह के चरणों के दर्शन होते हैं, अन्यथा ये पूरे साल वस्त्रों से ढके रहते हैं।
अक्षय तृतीया का महत्व -
- मान्यता है कि इस दिन बिना कोई पंचांग देखे किसी भी प्रकार का शुभ व मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह-प्रवेश, वस्त्र-आभूषणों या घर, भूखंड, वाहन आदि की खरीददारी जैसे कार्य किए जा सकते हैं।
- यह तिथि यदि सोमवार तथा रोहिणी नक्षत्र के दिन आए तो इस दिन किए गए दान, हवन, पूजा - पथ और जप-तप का फल जन्मों जन्मों मिलता हैं।
- पद्म पुराण (ऋषि वेद व्यास जी द्वारा संस्कृत में रचित) के अनुसार अक्षय तृतीया को अपराह्न व्यापिनी मानना चाहिए।
- आज के दिन मनुष्य अपने स्वयं के, परिवारजन और स्वजनों द्वारा जाने-अनजाने में किए गए अपराधों की सच्चे मन से ईश्वर से क्षमा मांगे तो भगवान उसके अपराधों को क्षमा कर देते हैं और उसे सदगुण प्रदान करते हैं ताकि आगे से वह सत मार्ग पर चले | आज के दिन मनुष्यों को अपने दुर्गुणों / क्रोध / द्वेष आदि को भगवान के चरणों में अर्पित कर उनसे सदगुणों का वरदान मांगना चाहिए |
- अक्षय तृतीया के पावन अवसर पर हमें धार्मिक कार्यों के लिए अपनी कमाई का कुछ हिस्सा दान करना चाहिए। ऐसा करने से हमारी धन और संपत्ति में कई गुना बढ़ोतरी होती है।
- बंगाल में इस दिन भगवान गणेश और माता लक्ष्मी का पूजन कर सभी व्यापारी अपना नया बही खाता शुरू करते हैं। इस दिन को "हलखता" के रूप में मनाया जाता हैं।
- बुंदेलखंड में अक्षय तृतीया उत्सव मनाया जाता है, यह उत्सव अक्षय तृतीया से प्रारंभ होकर पूर्णिमा तक बडी धूमधाम से मनाया जाता है | जिसमें कुँवारी कन्याएँ अपने भाई, पिता और कुटुंब के लोगों को गीत गेट हुवे शगुन बाँटती हैं ।
- राजस्थान में अक्षय तृतीया को बारिश के लिए हवन, पूजा पाठ आदि किये जाते है और अच्छी फसल की कामना की जाती है | इस दिन सात तरह के अन्नों से पूजा करके लड़कियाँ घर-घर जाकर शगुन के गीत गाती हैं और लड़के पतंग उड़ाते हैं।
- मालवा में नए घड़े के ऊपर ख़रबूज़ा और आम के पल्लव रख कर पूजा की जाती है। इस दिन कृषि कार्य का शुभारंभ किया जाये तो यह दिन किसानों को समृद्धि अवश्य देता है।
अंत में -
अस्यां तिथौ क्षयमुर्पति हुतं न दत्तं। तेनाक्षयेति कथिता मुनिभिस्तृतीया॥
उद्दिष्य दैवतपितृन्क्रियते मनुष्यैः। तत् च अक्षयं भवति भारत सर्वमेव॥
अर्थ : भगवान श्रीकृष्ण युधिष्ठर से कहते हैं, हे राजन इस तिथि पर किए गए दान, यज्ञ - हवन, पूजा पाठ का कभी क्षय नहीं होता है, इसलिए हमारे ऋषि-मुनियों ने इसे ‘अक्षय तृतीया’ कहा है । इस तिथि पर भगवान की कृपादृष्टि पाने एवं पितरों की गति के लिए की गई विधियां अक्षय और अविनाशी होती हैं ।
वैशाखे मासि राजेन्द्र तृतीया चन्दनस्य च ।
वारिणा तुष्यते वेधा मोदकैर्भीम एव हि ।।
दानात्तु चन्दनस्येह कञ्जजो नात्र संशयः ।।
यात्वेषा कुरुशार्दूल वैशाखे मासि वै तिथिः ।
तृतीया साऽक्षया लोके गीर्वाणैरभिनन्दिता ।।
आगतेयं महाबाहो भूरि चन्द्रं वसुव्रता ।
कलधौतं तथान्नं च घृतं चापि विशेषतः ।।
यद्यद्दत्तं त्वक्षयं स्यात्तेनेयमक्षया स्मृता ।।
यत्किञ्चिद्दीयते दानं स्वल्पं वा यदि वा बहु ।
तत्सर्वमक्षयं स्याद्वै तेनेयमक्षया स्मृता ।।
योऽस्यां ददाति करकन्वारिबीजसमन्वितान् ।
स याति पुरुषो वीर लोकं वै हेममालिनः ।।
इत्येषा कथिता वीर तृतीया तिथिरुत्तमा ।
यामुपोष्य नरो राजन्नृद्धिं वृद्धिं श्रियं भजेत् ।।
अर्थ : वैशाख मास की तृतीया को चन्दनमिश्रित जल तथा मोदक के दान से ब्रह्मा तथा सभी देवता प्रसन्न होते हैं | देवताओं ने वैशाख मास की तृतीया को अक्षय तृतीया कहा है | इस दिन अन्न, वस्त्र, भोजन, सुवर्ण और जल इत्यादि का दान करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है | इसी तृतीया के दिन जो कुछ भी दान किया जाता है वह अक्षय हो जाता है और दान देने वाला सूर्य लोक को प्राप्त करता है | इस तिथि को जो उपवास करता है वह ऋद्धि-वृद्धि और श्री से सम्पन्न हो जाता है |
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