हिंदू कैलेंडर के कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी (चौदहवें दिन) पर होती है। यह दीपावली के पांच दिवसीय महोत्सव का दूसरा दिन है। नरक चतुर्दशी को काली चौदस, रूप चौदस, छोटी दीवाली या नरक निवारण चतुर्दशी के रूप में भी मनाया जाता है।
हिन्दू साहित्य के अनुसार असुर (राक्षस) नरकासुर का वध कृष्ण, सत्यभामा और काली द्वारा इस दिन पर हुआ था और सोलह हजार एक सौ कन्याओं को नरकासुर के बंदी गृह से मुक्त कर उन्हें सम्मान प्रदान किया था। इस उपलक्ष्य में दीयों की बारात सजाई जाती है। इसे नरक से मुक्ति पाने वाला त्योहार कहते हैं। मान्यता है कि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन सुबह तेल लगाकर अपामार्ग की पत्तियां (चिचड़ी के पौधे) जल में डालकर स्नान करने और विधि विधान से पूजा करने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है। इस दिन लोग अपने घर के मुख्य द्वार के बाहर यम के नाम का चौमुखा दीपक जलाते हैं, जिससे अकाल मृत्यु कभी न आए।
नरक चौदस को रूप चतुर्दशी क्यूँ कहा जाता हैं ? (Why Narak Chaturdashi Called Roop Chaudas )
रूप चतुर्दशी के दिन स्वच्छता और सुंदरता का भी महत्व है, इस दिन घरो की सफाई की जाती है और घर को चूने से पोतकर साफ किया जाता था। इस दिन सौंदर्य रूप श्री कृष्ण की पूजा करी जाती है और ऐसा माना जाता है कि इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर आटा, बेसन, हल्दी और तेल के उबटन से स्न्नान करे और शाम के समय पूजा करनी चाहिए।
पौराणिक कथा - हिरण्यगर्भ नामक एक राजा थे। उन्होंने राज पाठ सब छोड़कर अपना शेष जीवन तपस्या करने का निर्णय किया। उन्होंने कई वर्षो तक तपस्या की, लेकिन उनके शरीर पर कीड़े लग गए। उनका पूरा शरीर सड़ने लग गया। हिरण्यगर्भ को बहुत तकलीफ और दुःख होने लगा ककी अब वो पहले के समान तप नै कर पर रहा था। कुछ दिनों के बाद नारदजी वहां आये और तब राजा ने अपनी व्यथा उनसे कही। नारद मुनि ने उनसे कहा कि आप तप और साधना के दौरान शरीर की स्थिती सही नहीं रखते, इसलिए ऐसा परिणाम सामने आया। तब हिरण्यगर्भ ने इसका निवारण पूछा, तो नारद जी ने कहा कि कार्तिक मास कृष्ण पक्ष चतुर्दशी के दिन शरीर पर लेप लगा कर सूर्योदय से पूर्व स्नान करे, और रूप के देवता श्री कृष्ण की पूजा कर उनकी आरती करे, इससे आप फिर से स्वस्थ हो जायेंगे। राजा ने नारद जी ने जो कहा वही किया जिससे उसका शरीर पहले के समान स्वस्थ हो गया। इसलिए तबसे इस दिन को रूप चतुर्दशी भी कहा जाने लगा।
काली चौदस पूजा की विधि -
कार्तिक की चौदस को काली चौदस और यम चौदस भी कहा जाता है। इसमें बालाजी के लिए भी तेल का दिया किया जाता है। एक थाली में एक चौमुखा दिया और सोलह छोटे दिए रखे उसमे बाती और तेल डाले। फिर रोली, अबीर, गुलाल, पुष्प और चावल से पूजा करे। पूजन के बाद दीपक को घर के अलग अलग स्थानों पर रखे जैसे - पूजा घर में, परिण्डे (जल के स्थान) पर, तुलसी के गमले में, घर के पास किसी मंदिर में और पीपल के पेड़ के नीचे १ दिया रखना चाहिए। इस दिन उपवास किया जाता है और जो 12 माह चौदस को उपवास करते है उन्हें काली उड़द की दाल एक लोहे की कड़ाई में भरकर दान करनी चाहिए | इसके अलावा धर्मराज की मूर्ति, तेल, कम्बल, छतरी और चप्पल भी दान कर सकते है। अंत में कहानी सुनकर व्रत को पूरा करते है।
यम चौदस कहानी -
कथा 1 -
एकबार एक गांव में दो बुढ़िया माई पड़ोसन थी। एक के पास बहुत धन था पर मन से वह बहुत कंजूस थी। वह देव धर्म नहीं करती और पैसे खर्च करके तो बिलकुल भी नही, उल्टा बोलती कि पूजा, दान और धर्म करने से कुछ नही होता है।
दूसरी बुढ़िया माई के पास धन नहीं था पर मन से बहुत आमिर थी। वह रोज जल्दी उठती, गंगा जी में स्नान करती, तुलसी माता, बड़ पीपल रोज सींचती, मंदिर में जाकर भगवान के दर्शन करती और धर्मराज तथा सूरज भगवान की कहानी सुनती। फिर खाना बनाकर पहले भगवान को भोग लगाती, गाय और कुत्ते को रोटी देती फिर खुद खाती। यह सब देखकर फली बुढ़िया माई उस पर बहुत हंसती और बोलती देखो अकेली जान है फिर भी इतना सब करती है, इससे तो अच्छा अपना खाना बनाये और आराम करें।
ऐसा करते करते बहुत दिन निकल गए अब दोनों का आखिरी समय आया तो जिस बूढी माई ने रोज अपना नियम का पालन किया उसे बहुत सुकून से मोत आयी और जिसने पुरे जीवन कंजूसी दिखाई वह यमदूत का भयावह रूप देखकर डर गयी और उनसे अपने प्राणो की भीग मांगने लगी। यमदूत को दया आ गयी और उस बूढी माई को सवा पहर का समय देकर चले गए। सवा पहर के लिए वो बूढी माई जिन्दा हुवी और अपनी सारी धन - सम्पति दान धर्म करके जरूरत मंदो में बाँट दी। अब उसे भी सुकून मिल गया और वह यमदूत के आने का इंतजार करने लगी। सवा पहर से उसे स्वर्ग वास मिला। धर्मराज ने जैसे उस बुढ़िया माई पर कृपा करी वैसे सब पर अपनी कृपा बनाये रखना।
कथा 2 -
एक बुढ़िया माँ रोज नियम से पूजा पाठ करती पर धर्मराज की पाठ नहीं करती | कुछ समय बाद यमदूत बुढ़िया माँ को ले गए और कीड़ा के कुंड में डालने लगे तो बुढ़िया माँ ने पूछा कि में तो रोज भगवान का नाम लेती हु फिर मुझे क्यू इस कुंड में डाल रहे हो ? तब यमराज ने बोला कि तूने धर्मराज का डोरा और नाम नही लिया इसलिए डाल रहे है। बुढ़िया माँ ने बोला कि मेरे भेजो मैं धर्मराज का डोरा लेकर आयुंगी और मुझे लोहे के चने दे दो।
लोहे के चने लेकर बुढ़िया माँ वापस आ गयी तो उनके बेटे ने पूछा आप जिन्दा कैसे हो गयी ?
तब माँ ने बोला कि धर्मराज का डोरा लेने आयी हूँ। धर्मराज का डोरा संक्रात से लिया जाता है जिसमे 12 तार को 12 गाँठ लगाते है और 12 महीने कहानी सुनते है। बहु मन में सोच रही थी कि मर कर भी वापस आ गयी और अब भी चैन नही है। माँ ने बहु से कहा की मेरी कहानी सुनले तो बहु ने मना कर दिया। पड़ोसन के पास गयी और बोली की मेरी कहानी सुनले तो पड़ोसन ने बोला कि घर का काम निपटा कर सुन लुंगी। फिर पड़ोसन ने २ घडी विश्राम के साथ बुढ़िया माँ की कहानी सुनी। ऐसे ही रोज कहानी सुनते सुनते 12 महीने पूरे हो गए। फिर संक्रात के दिन धर्मराज की मूर्ति दान करी व धर्मराज का डोरा लेके उजमन करा। उतने में स्वर्ग विमान आये और बुढ़िया को ले जाने लगे तब माँ ने बोला कि पड़ोसन को रुपये देकर आती हूँ। माँ पड़ोसन को रूपये देने लगी तो पड़ोसन बोली की मुझे रुपए नहीं चाहिए आप मुझे भी अपने साथ ले चलो। तब यमदूत ने बोला ले चलो क्यूंकि इसने भी कहानी सुनी है और डोरा लिया है, तो दोनों बैकुण्ड में चली गयी। हे धर्मराज जी जैसे डोकरी माँ और पड़ोसन पर कृपा वैसे सब पर आशीर्वाद बनाये रखना।
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