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गोवर्धन परिक्रमा साक्षात श्री कृष्ण भगवान की परिक्रमा है। इस कलयुग में जो श्रद्धा से भरकर परिक्रमा करता है वो गोवर्धन नाथ की अनूठी कृपा का पात्र जरूर बनता है।
गोवर्धन पर्वत आज भी और आने वाली पीढ़ियों के लिए भी एक भक्त और भगवान के भरोसे की दृढ़ता को दर्शाता है और दर्शायेगा। जब हम पूर्ण समर्पण भगवान के चरणों में करते हैं तब हर प्रकार से भगवान अपने भक्तों की रक्षा करते हैं और उनके विश्वास को टूटने नहीं देते हैं। उसका साक्षात् प्रमाण गोवर्धन पर्वत है। गोवर्धन परिक्रमा श्री कृष्ण के लिए भक्तों के प्रेम को दर्शाता है। इस कलयुग में गिरिराज जी महाराज की परिक्रमा बहुत ही महत्वपूर्ण मानी गई है। गोवर्धन की परिक्रमा श्रद्धालुओं के सभी मनोरथों को पूर्ण करने वाली होती है।
श्रीमद् भागवत में स्वयं गोपियों ने भी कहा है :- "हंतारमद्रिरबलाहरिदास वर्यो" यानी श्री गोवर्धन गिरिराज जी के जैसा भक्त आज तक कोई नहीं हुआ यही सर्वश्रेष्ठ एकमात्र भक्त हैं।
गोवर्धन की परिक्रमा कैसे शुरू होती है:-
गोवर्धन गिरिराज जी की परिक्रमा वैसे तो कहीं से भी प्रारंभ की जा सकती है किंतु कुछ लोगों की मान्यता अनुसार गिरिराज गोवर्धन की परिक्रमा प्रारंभ करने हेतु 2 मुखारविंद हैं।
ये 2 मुखारविंद हैं -
1.मानसी गंगा मुखारविंद मंदिर
2. सुंदर शीला मुखारविंद मंदिर
इन 2 मुखारविंद में से किसी एक मुखारविंद से परिक्रमा प्रारंभ कर परिक्रमा पूर्ण करने पर वापस उसी मुखारविंद पर पहुंचना होता है। किंतु सभी वैष्णव भक्तजन ‘मानसी गंगा मुखारविंद से ही अपनी परिक्रमा का प्रारंभ करते हैं, शेष सभी भक्त सुंदर शीला मुखारविंद से अपनी परिक्रमा प्रारंभ करते हैं।
वैसे परिक्रमा का सही मायने में नियम यह कहता है कि आप जिस स्थान से भी प्रारंभ करते हैं उसी स्थान तक आपको पूरा करना होता है चाहे वह स्थान कोई भी हो, चाहे वो राधा कुंड हो, चाहे वो मानसी गंगा मुखारविंद हो, चाहे वह दानघाटी मंदिर हो, चाहे वह आन्यौर गांव हो, चाहे वो जतीपुरा मुखारविंद हो, चाहे वह गोवर्धन गांव हो कोई भी स्थान हो।
गोवर्धन परिक्रमा के नियम:-
• गोवर्धन परिक्रमा दो प्रकार से की जाती है पहली पैदल यात्रा दूसरी दंडवत परिक्रमा।
• गोवर्धन परिक्रमा पैदल ही 4 से 5 घंटे में पूरी की जाती है यह 7 कोस की परिक्रमा होती है और दंडवत परिक्रमा 15 दिन में पूरी की जाती है। यदि आप बीमार हैं तो आप परिक्रमा पाड़ा (भैंस का बच्चा) के गाड़ी पर बैठ कर भी की जाती है।
• दूध धारा के साथ भी राज्य की परिक्रमा की जाती है जिसमें एक छोटी हांडी में छोटा छेद करके उस हांडी में दूध भर के और उसमें से धीरे-धीरे दूध की धारा के साथ गिरिराज जी की परिक्रमा की जाती है।
• गोवर्धन परिक्रमा करते समय प्रारंभ में कम से कम पांच और अंत में कम से कम एक दंडवत या साष्टांग प्रणाम अवश्य करें।
• परिक्रमा में दंडवत प्रणाम या साष्टांग प्रणाम करते समय शरीर के आठ अंग दोनों भुजाएं, दोनों पैर, दोनों घुटने, सीना, मस्तक और नेत्र जमीन के संपर्क में होने चाहिए।
• गिरिराज जी के कुंडो में स्नान करते समय साबून, तेल व शैम्पू आदि का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
• गिरिराज जी के कुंडो में स्नान करते समय विशेष सावधानी बरतनी चाहिए।
• गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा प्रारंभ करने तथा पूरी करने का कोई निश्चित समय नहीं है। परिक्रमा दिन या रात में कभी भी प्रारंभ की जा सकती है। लेकिन आप जहां से परिक्रमा प्रारंभ करें आपको वहीं से परिक्रमा समाप्त करनी होगी।
• गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते समय लगातार भगवान के नाम का जाप करते रहना चाहिए। "अष्टाक्षर नारायण मंत्र श्री कृष्ण शरणम मम:" का उच्चारण करते रहना चाहिए।
• शिव पुराण के अनुसार मनुष्य को तीर्थ स्थानों में सदा स्नान, दान व जप आदि करना चाहिए।
• गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा नंगे पैर की जाती है। परिक्रमा करते समय जूते व चप्पल न पहनें। अगर कोई व्यक्ति कमजोर हो या फिर कोई छोटा बच्चा साथ में हो तो रबड़ की चप्पल या फिर कपड़े के जूते प्रयोग किए जा सकते हैं।
• गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते समय किसी पर भी क्रोध नहीं करना चाहिए और नहीं किसी को अपशब्द या कटु वचन बोलने चाहिए।
• गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते समय अहिंसा धर्म का पालन करें। किसी भी जंतु को कोई नुकसान न हो इस प्रकार से परिक्रमा करें।
• शास्त्रों के अनुसार तीर्थ स्थानों पर किए गए पुण्य कार्यों का फल हमें कई गुना बढ़कर प्राप्त होता है। इसलिए तीर्थ स्थान पर हमेशा पाप कर्म से बचना चाहिए।
श्री गोवर्धन महाराज की भव्यता:-
• गोवर्धन पर्वत की वंदना करते हुए इसे वृन्दावन में विराजमान और वृन्दावन की गोद में निवास करने वाला गोलोक का मुकुटमणि कहा गया है।
• पौराणिक मान्यता अनुसार श्री गिरिराज जी को पुलस्त्य ऋषि द्रोणाचल पर्वत से ब्रज में लाए थे।
• दूसरी मान्यता यह भी है कि जब राम सेतुबंध का कार्य चल रहा था तो हनुमान जी इस पर्वत को उत्तराखंड से ला रहे थे लेकिन तभी देव वाणी हुई की सेतु बंध का कार्य पूर्ण हो गया है तो यह सुनकर हनुमानजी इस पर्वत को ब्रज में स्थापित कर दक्षिण की ओर पुन: लौट गए।
• पौराणिक उल्लेखों के अनुसार भगवान कृष्ण के काल में यह अत्यंत हरा-भरा रमणीक पर्वत था। इसमें अनेक गुफ़ा अथवा कंदराएँ थी और उनसे शीतल जल के अनेक झरने झरा करते थे। उस काल के ब्रज-वासी उसके निकट अपनी गाय चराया करते थे, अतः वे उक्त पर्वत को बड़ी श्रद्धा की दृष्टि से देखते थे। भगवान श्री कृष्ण ने इन्द्र की परम्परागत पूजा बन्द कर गोवर्धन की पूजा ब्रज में प्रचलित की थी, जो उसकी उपयोगिता के लिये उनकी श्रद्धांजलि थी।
कैसे और क्यों की जाती है गोवर्धन की परिक्रमा -
ऐसी मान्यता है कि गोवर्धन की परिक्रमा करने से व्यक्ति को इच्छा अनुसार फल मिलता है। वल्लभ संप्रदाय के वैष्णव मार्गी लोग तो अपने जीवनकाल में इस पर्वत की कम से कम एक बार परिक्रमा अवश्य ही करते हैं। वल्लभ संप्रदाय में भगवान कृष्ण के उस स्वरूप की पूजा की जाती है, जिसमें उन्होंने गोवर्धन पर्वत उठा रखा है। ऐसी भी मान्यता है कि जो इच्छा मन में रखकर इस गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा की जाती है, वह इच्छा जरूर पूरी होती है। इसलिए भक्त अपनी मनोकामनाओं को पूरा करने के लिए भी उसकी परिक्रमा करते हैं।
हिन्दू धर्म के लोगों का यह भी मानना है कि चारों धाम की यात्रा न कर सकने वाले लोगों को भी गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा जरूर करनी चाहिए।
गोवर्धन पूजा के दौरान गोवर्धन परिक्रमा का हिन्दू धर्म में बड़ा ही महत्व है। ऐसा माना जाता है कि गोवर्धन पर्व के दिन मथुरा में स्थित गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने से मोक्ष प्राप्त होता है। गोवर्धन पूजा सुंदर शीला के मुखारविंद में की जाती है जबकि दिवाली उत्सव में दानघाटी के मुखारविंद में दीपोत्सव मनाया जाता है।
गोवर्धन पर्वत की विशालता और आस्था को पैमाने से नहीं मापा जा सकता है। सात कोस में फैले इस पर्वत की दिव्यता अकल्पनीय और अतुलनीय है। यही वजह है कि गिरिराज गोवर्धन को देवों में श्रेष्ठ माना जाता है। ब्रजभूमि में होने वाली गोवर्धन पूजा में दीपावली से भी ज्यादा धूम होती है ।
गोवर्धन पूजा एवं अन्नकूट -
इस दिन लोग गोवर्धन भगवान को मौसमी सब्जियों, मिठाइयों और पकवानों के मिश्रण से तैयार किया अन्नकूट भोग लगाते हैं। गोवर्धन पूजा के दिन श्रीकृष्ण को 56 या 108 तरह के पकवानों का भोग लगाना शुभ माना जाता है। इस भोग को ‘अन्नकूट’ कहते है। यह भोग भगवान की 56 सखियों या गोपियों का भाव होता है भगवान को समर्पित किए जाने वाले इस विशेष भोग में चावल, बाजरा, दाल, कढ़ी, खीर, माखन मिश्री, मौसमी सब्जियां, पापड़, अचार, मोहन भोग, लड्डू, मिठाइयां, मेवा, पान, चावल, रोटी, पुआ, पूरी, पकौड़ी, खीर, आदि होता है।
वैष्णव और वल्लभ संप्रदाय के राजस्थान के प्रसिद्ध नाथद्वारा के श्रीनाथजी के मंदिर में अन्नकूट महोत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। गोवर्धन पूजा के अवसर पर ग्वाल-बाल अपनी परंपरागत वेशभूषा में आते हैं। वहां पर उनकी और सजे-सजाए बैलों की छटा देखते ही बनती है। यहां इस अवसर पर सैकड़ों मन चावल बनाया जाता है। इसे भील लूट ले जाते हैं। कहा जाता है कि महाप्रभु वल्लभाचार्य के दूसरे पुत्र विट्ठलनाथ ने भोग की प्रक्रिया का विस्तार किया। वल्लभाचार्य के समय भगवान को केवल सखरी यानी कच्ची रसोई तथा दूध से बने और मेवा आदि मिलाकर बनाए गए पदार्थ का भोग लगाया जाता था लेकिन विट्ठलनाथजी ने भिन्न-भिन्न प्रकार के व्यंजनों को मिलाकर भोग का व्यापक स्तर पर विस्तार किया। अन्नकूट छप्पन भोग उसी परंपरा के प्रतीक हैं। मान्यता है कि अन्नकूट पर्व मनाने से मनुष्य को लंबी उम्र और आरोग्य की प्राप्ति होती है। ऐसा भी कहा जाता है कि इस पर्व के प्रभाव से दरिद्रता का नाश होता है और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
कैसे करें गोवर्धन पूजा -
- सुबह उठ कर शरीर पर तेल मलकर स्नान करें।
- इसके बाद घर के मुख्य द्वार पर गाय के गोबर से गोवर्धन की आकृति बनाएं।
- अब गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाएं और आस पास ग्वाल बाल, पेड़ पौधों की आकृति बनाएं।
- इसके बीच में भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति को रख दें।
- इसके बाद भगवान कृष्ण, ग्वाल-बाल और गोवर्धन पर्वत का पूजन करें।
- पूजा के बाद पकवान और पंचामृत का भोग लगाएं।
गोवर्धन पूजा मंत्र का जाप करें –
"गोवर्धन धराधार गोकुल त्राणकारक। विष्णुबाहु कृतोच्छ्राय गवां कोटिप्रभो भव।
हे कृष्ण करुणासिंधो दीनबंधो जगतपते। गोपेश गोपिकाकांत राधाकान्त नमोस्तुते ।।"
- इसके बाद गोवर्धन की कथा सुनें। प्रसाद वितरण करें और फिर सपरिवार भोजन करें।
भाग 1 भी पढ़े - श्री गोवर्धन पूजा एवं प्राकट्य
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