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गणपति बप्पा मोरया | जाने गणेश जी को "गणपति बप्पा मोरया" क्यों कहते है ?

गणपति के दिनों में हर तरफ एक ही धुन सुनाई देती है... गणपति बप्पा मोरया, मोरया रे मोरया.... 
बप्पा का अर्थ है पिता, इसमें सवाल यह है कि यह मोरया क्या है? 
मोर (एक पक्षी जो हमारा नेशनल बर्ड भी है ) या मौर्य (कोई उपनाम) ? 
गणपति बप्पा से जुड़े इस मोरया नाम के पीछे एक गणेश भक्त ही है। चौदहवीं सदी में पुणे के पास चिंचवड़ में मोरया गोसावी नाम के प्रसिद्ध गणेश भक्त रहते थे। चिंचवड़ में इन्होंने कठोर गणेश साधना की और जीवित समाधि ली थी। तभी से यहां का गणेश मन्दिर देश भर में विख्यात हुआ और गणेश भक्तों ने गणपति के नाम के साथ मोरया के नाम का जयघोष भी शुरू कर दिया। दोस्तों आपको पता ही है कि भारत में देवता ही नहीं, भक्त भी पूजनीय होते हैं, जैसे कृष्ण भक्त मीरा।  
एक तथ्य यह भी है कि 'मोरया' शब्द के पीछे मोरगांव के गणेश जी हैं। इस गांव में मोर बहुत है इसलिए गांव का नाम मोरगांव पड़ा | यहाँ पर गणेश जी की एक सिद्ध प्रतिमा भी है जो मयूरेश्वर के नाम से दुनिया में प्रसिद्ध है | इसके अलावा सात अन्य स्थान भी थे जहां की गणेश-प्रतिमाओं की पूजा होती थी। थेऊर, सिद्धटेक, रांजणगांव, ओझर, लेण्याद्रि, महड़ और पाली अष्टविनायक यात्रा के आठ पड़ाव हैं। इसलिए यहाँ पर गाणपत्य सम्प्रदाय का प्रचलन बहुत है जो कि महाराष्ट्र, गोवा और कर्नाटक में ज्यादा हैं।

  

    

Jai Ganesh

मोरगांव का नाता मोरया गोसावी से भी है | जी हां - मोरया गोसावी के पिता वामनभट और माता पार्वतीबाई गाणपत्य सम्प्रदाय के थे इसलिए सोलहवीं सदी में कर्नाटक से आकर पुणे के पास मोरगांव में रहने लगे। 
गणेश-पुराण के अनुसार दानव सिन्धु के अत्याचार से बचने के लिए देवताओं ने श्रीगणेश जी का आह्वान किया था। सिन्धु वध के लिए गणेश जी ने मयूर को अपना वाहन बना छह भुजाओं के साथ अवतरित हुए | मोरगांव में गणेश जी की सिद्ध मूर्ति मयूरेश्वर अवतार का ही प्रतीक है। इसी वजह से इन्हें मराठी में मोरेश्वर भी कहते है। वामनभट और पार्वती ने मयूरेश्वर की आराधना की और उनके प्रताप से पुत्र प्राप्ति हुई जिसका नाम अपने आराध्य के नाम पर ही मोरया रखा।मोरया भी बचपन से गणेशभक्त थे, उन्होंने थेऊर में जाकर तपस्या की थी तब उन्हें सिद्धावस्था में गणेश जी की अनुभूति हुई। 
मोरया गोसावी माता-पिता के स्वर्गवास के बाद पुणे के समीप पवना नदी किनारे चिंचवड़ के समीप एक आश्रम में रहने लगे, जिसमे वह अपनी भक्ति और धार्मिक कार्यो में व्यस्त रहने लगे। जिस वजह से उस आश्रम में लोगो का आना जाना अधिक बढ़ने लगा। शास्त्रीय तथ्यों के अनुसार सन्त कवि समर्थ रामदास जी ने मराठी में गणेश जी की आरती "सुखकर्ता दुखहर्ता वर्ता विग्नाचि .." की रचना चिंचवड़ में मोरया गोसावी के सानिध्य में की थी।   
अष्टविनायक यात्रा की शुरुआत भी मोरया गोसावी ने करायी थी और इसकी शुरुआत आज भी मयूरेश्वर मंदिर से ही होती है।

  

    

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