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पौष माह के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी को पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। हिंदू धर्म में पुत्रदा एकादशी का अपना अलग महत्व है। अधिकांश इस एकादशी का व्रत संतान प्राप्ति के लिए किया जाता है, माना जाता है कि इस दिन जिस व्यक्ति ने पूरे विधि-विधान और श्रद्धा के साथ उपवास किया एवं हृदय से श्री हरी की आराधना की उसे स्वस्थ सुंदर एवं गुणवान संतान की प्राप्ति होती है। कुछ लोग अपनी संतान के अच्छे स्वास्थ्य एवं भाग्य के लिए भी यह व्रत करते हैं। मान्यता है कि पुत्रदा एकादशी साल में दो बार पड़ती है। पहली पुत्रदा एकादशी पौष माह में पड़ती है। दूसरी पुत्रदा एकादशी श्रावण माह में आती है जिसको श्रावण पुत्रदा एकादशी कहा जाता है।
अर्जुन ने श्री कृष्ण के चरणों पर वंदन करते हुए उनसे पूछा पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का महत्व समझाएं। तब श्रीकृष्ण ने कहा- हे अर्जुन पुत्र की प्राप्ति के लिए पुत्रदा एकादशी का उपवास करना चाहिए पुत्र प्राप्ति के लिए इससे बढ़कर दूसरा कोई व्रत नहीं है। जो कोई व्यक्ति पुत्रदा एकादशी के माहात्म्य को पढ़ता व श्रवण करता है तथा विधानानुसार इसका उपवास करता है, उसे सर्वगुण सम्पन्न पुत्ररत्न की प्राप्ति होती है। श्रीहरि की अनुकम्पा से वह मनुष्य मोक्ष को प्राप्त करता है।
पौष पुत्रदा एकादशी | पुत्रदा एकादशी | पुत्रदा एकादशी का व्रत की कथा इस प्रकार है –
प्राचीन समय में भद्रावती नगरी में सुकेतुमान नाम का एक राजा था। उसकी पत्नी का नाम शैव्या था। उनके कोई संतान नहीं थी। उस पुत्रहीन राजा के मन में इस बात की बड़ी चिंता थी कि उसके बाद उसे और उसके पूर्वजों को कौन पिंडदान देगा। राजा इस बात से बड़ा व्यथित रहता था एवं इसका एकमात्र कारण उसका संतानहीन होना था। माना जाता है कि बिना पुत्र के पितरों एवं देवताओं के ऋण से मुक्त नहीं हो सकते। इस चिंता के कारण एक दिन वह इतना व्यथित हो गया कि उसके मन में अपने आप की खत्म कर देने की इच्छा उत्पन्न हो गई, तुरंत ही वह सोचने लगा कि स्वयं को घात पहुँचाना तो उससे भी बड़ा पाप होता है, अतः उसने इस विचार को मन से त्याग दिया और इन्हीं विचारों से चिंतित हो वह घोड़े पर सवार होकर वन की ओर चल दिया।
घोड़े पर सवार राजा वन, पक्षियों और वृक्षों को देखने लगा। उसने वन में देखा कि मृग, बाघ, सिंह, बंदर आदि अपने शिशुओं के साथ विचरण कर रहे हैं। अपने परिवार एवं शिशु के साथ वे सभी जीव बहुत प्रसन्न नजर आ रहे हैं। वन के दृश्यों को देखकर राजा और ज्यादा दुखी हो गया कि उसके पुत्र क्यों नहीं हैं?
वह सोचने लगा कि मैंने अनेक प्रकार के यज्ञ किए हैं और ब्राह्मणों को भोज और दान दिया है, किंतु फिर भी मुझे पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई? मैं अपनी व्यथा किससे कहूं? कौन मेरी समस्या का समाधान कर सकता है?
इतना विचरण करते करते राजा थक गया और एक जगह बैठ गया। थोड़ी देर में राजा को प्यास लगने लगी। वह पानी की तलाश करते करते जंगल में आगे बढ़ा। कुछ दूरी पर उसे एक सरोवर दिखा। उस सरोवर में बहुत से कमल पुष्प खिले हुए थे। वहां सारस, हंस, घड़ियाल आदि सब जल-क्रीड़ा में मग्न थे। सरोवर के किनारों के तरफ ऋषियों - मुनियो के आश्रम बने हुए थे। तभी अचानक से राजा के दाहिने अंग फड़कने लगे। इसे शुभ संकेत समझकर राजा मन ही मन में प्रसन्न होता हुआ घोड़े से नीचे उतरा और सरोवर के किनारे आश्रम के बाहर बैठे हुए ऋषियों को प्रणाम किया और उनके सामने बैठ गया।
ऋषिवर बोले - हे राजन! हम आपसे अति प्रसन्न हुए हैं। आप व्यथित लग रहे है, अपनी व्यथा हमसे कहो।राजा ने यह सुन ऋषि से प्रश्न किया - आप कौन हैं? और यहां क्यों रह रहे हैं? ऋषि बोले - राजन! आज पुत्रदा एकादशी है, जो पुत्र की इच्छा करने वाले को श्रेष्ठ पुत्र प्रदान करने वाली है। आज से ठीक पांच दिन बाद माघ स्नान है और हम सब सरोवर में स्नान करने आए हैं।
ऋषियों की बात सुन राजा ने कहा - हे ऋषिवर! मेरे भी कोई पुत्र नहीं है, यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो कृपा करके मुझे पुत्र रत्न का वरदान दीजिए। ऋषि बोले - हे राजन! आज पुत्रदा एकादशी है। आप इसका उपवास करें और विधि पूर्वक पूजा करें। भगवान श्रीहरि के आशीर्वाद से अवश्य ही आपको पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी।
राजा ने ऋषि के वचनों के अनुसार उस दिन उपवास किया और द्वादशी को व्रत का पारण किया। फिर ऋषियों को प्रणाम करके वापस अपनी नगरी आ गया। भगवान श्रीहरि की कृपा से नौ माह के पश्चात उसके एक तेजस्वी पुत्र उत्पन्न हुआ। यह राजकुमार बड़ा होने पर अत्यंत वीर, धनवान, यशस्वी और प्रजापालक राजा बना।
पूजा विधि -
• सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें एवं स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
• व्रत का संकल्प करने के बाद तुलसी दल, गंगाजल, तिल और पंचामृत द्वारा श्री हरी विष्णु भगवान की प्रतिमा को स्नान करा कर पूजा अर्चना करें एवं सामर्थ्य के अनुसार नैवेद्य फल आदि का भोग लगाएं। (भगवान श्री हरि को पंचामृत अत्यधिक प्रिय है इसीलिए इस दिन पंचामृत का भोग जरूर लगाए)
• भगवान श्री हरि को फल, फूल, नारियल, लोंग, इलायची, आंवला, बेर आदि का भोग लगाया जाता है। इस व्रत में दीपदान का भी बहुत महत्व होता है।
• पुत्रदा एकादशी पर विष्णु भगवान के अवतार श्रीकृष्ण के बाल गोपाल स्वरूप की पूजा की जाती है।
• पुत्रदा एकादशी के दिन इस मंत्र का जाप अवश्य करें - "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः ।"
• संध्या के समय कथा सुनकर विष्णुसहस्रनाम का पाठ करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
• पुत्रदा एकादशी की कथा और विष्णुसहस्रनाम का पाठ करने के बाद फलाहार करें।
• एकादशी के दिन रात्रि जागरण भी किया जाता है।
• एकादशी के व्रत का पारण द्वादशी यानी अगले दिन किया जाता है। द्वादशी के दिन व्रत के पारण से पहले सामर्थ्य के अनुसार ब्राह्मण भोजन कराया जाना चाहिए।
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