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गणगौर राजस्थान एवं सीमावर्ती राज्यों का एक मुख्य त्योहार है जो चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की तीज को आता है। इस दिन कुवांरी कन्याये एवं विवाहित महिलायें शिवजी (इसर जी) और पार्वती जी (गौरी) की पूजा करती हैं।
गणगौर का सिंजारा -
सिंजारा बहु और बेटी के प्रति प्रेम को दर्शाता है | राजस्थान में किसी भी त्योहार के एक दिन पहले सिंजारा मनाये जाने की परम्परा है, जैसे तीज का सिंजारा, करवा चौथ सिंजारा, उबछट का सिंजारा, गणगौर का सिंजारा आदि इसमे महिलाये केश धोकर मेहंदी लगाती है और श्रृंगार करती है | मेहंदी लगाना भी 16 श्रृंगार का एक भाग होता है |
गणगौर के एक दिन पूर्व चैत्र शुक्ल दूज को सिंजारा होता है, जिसमे बेटी को ससुराल में साडी, घेवर और रूपये भेजे जाते है | शादी के बाद की पहली गणगौर बहु पीहर में मनाती है तो उसको ससुराल से सिंजारा आता है, जिसमे साड़ी, श्रृंगार की सामग्री, आभूषण, चूड़ी, मेहँदी, मिठाई और घेवर आते है | सिंजारा माता - पिता और सास ससुर के प्यार को दर्शाता है |
गणगौर पूजा की 16 दिन की विधि -
चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया को गणगौर का व्रत किया जाता है | यह व्रत महिलाये अपने पति की लम्बी आयु के लिए और कुंवारी कन्याएँ मनचाहे पति की प्राप्ति के लिए रखती है |
गणगौर की पूजा 16 दिन तक होती है जो होली पर्व के दूसरे दिन से शुरू होकर गणगौर के दिन पूरी होती है | शुरू के 8 दिन होली और गोबर की पिंडियो से और बाद के 8 दिन ईसर गौर से पूजा होती है |
होली के दूसरे दिन सुबह 8 पिण्डिया राख की और 8 पिण्डिया गोबर की बनाकर छोटी टोकरी में दूब बिछाकर रख देते है | कन्याएँ तड़के एक लोटे में जल, दूब, पुष्प लेके दूब लाने के गीत गाते हुवे आती है | फिर धरती पर गोबर या पिली मिट्टी का चौका देकर पिण्डियों की टोकरी उस पर रखे | अब दीवार पर कुंकुम, काजल और मेहंदी की सोलह सोलह बिंदिया लगाएं और पिण्डियों पर पुष्प चढ़ाये | अब एक थाली में थोड़ा सा जल, एक कौड़ी, सुपारी, एक चाँदी का छल्ला और पैसा डालकर दूध के छींटे दे | थाली को टोकरी पर और फिर अपने सिर पर लगाये | शीतला सप्तमी तक (8 दिनों तक) इसी प्रकार से पूजा करे |
शीतला सप्तमी या बसेड़ा के दिन गणगौर कुम्हार से लाये या स्वयं भी मिट्टी से बना सकते है | एक कुंडे या टोकरी में ईसर जी और गणगौर को रखें और उन्हें वस्त्राभूषण पहनाये | तब "मिट्टी लाने" का गीत गाये | उसके बाद दिन में बाहर से जल लाकर "जल पिलाने" का गीत गाते हुवे ईसर और गणगौर को जल पिलाये और जिमावे | गणगौर को दूध का दाँतन कराये, जल चढ़ाये, टिका - काजल लगाये और पुष्प हार चढ़ाये | फिर "ज्वारा" के गीत गाते हुवे दूब चढ़ाये | उसके बाद आरती करे और गणगौर की कथा कहें |
इस बीच आने वाले रविवार को "सूरज रोटा" का व्रत भी करें | जिन महिलाओं को गणगौर का उद्यापन करना है उनको सूरज जी व्रत करना जरुरी होता है |
गणगौर के दिन पूजा की विधि -
गणगौर पूजन (तीज) के दिन धरती पर गोबर या मिट्टी का चौका देकर उस पर दूब और ज्वारा बिछाये | फिर ईसर और गणगौर को टोकरी में से निकल कर उस पर विराजमान करे | जल, रोली, मोली, चावल, काजल, मेहँदी, चूड़ी और पुष्प आदि से पूजा करे | कुंकुम, मेहँदी और काजल से 16 बिंदिया लगाए |
गणगौर के आभूषण के लिए गेहूँ के आटे में हल्दी मिलाकर गूथे और उस आटे से आभूषण बनाये जैसे - हार, चूड़ी, अंगूठी, रखड़ी, पायल, करधनी आदि, उन्हें कुंकुम और चावल से सज्जित करे और गणगौर माता को अर्पित करे | घी या तेल का दिया जलाये और हलवे, मिठाई और गणगौर के बनाये फल अर्पित करे | 8 फल अर्पित करे, उसमे से 4 पूजा के बाद अपनी थाली में वापस रख लेवे और खाना खाने से पहले उन फलो को खाये |
विवाहित महिलाये आपने जोड़ा बना कर हाथ में दूब लेकर पानी के कलश से छींटे देते हुवे "गौर गौर गोमती..." गीत से 8 बार पूजा करती है और अविवाहित कन्या अपना जोड़ा बनाकर 16 बार पूजा करती है | उसके बाद आरती करे और कथा कहे या सुने | गणगौर की कहानी, गणेश जी की कहानी और लपसी तपसी की कहानी कहते है | अंत में बधावे और पाटे के गीत गाकर, उसे प्रणाम कर भगवान सूर्यनारायण को जल चड़ा कर अर्क देते है |
पूजा के बाद कलपणा निकाले और सासु माँ या नन्द को देवे जिसमे मिठाई और दक्षिणा रखे | कल्पणा निकाल कर भोजन कर सकते है |
संध्या से पहले गणगौर को जल पिलाकर विदा करें | विदाई के गीत गेट हुवे मिठाई और श्रृंगार सामान के साथ, ईसर जी और गणगौर को गंगा नदी या तालाब में विसर्जित करे | आज के दिन कन्याये और महिलाये गणगौर माँ को अपनी बड़ी बहन मानती है, जो 16 दिन तक पीहर में रहती है और विसर्जन करना उनको ससुराल भेजना माना जाता है | इसलिए विसर्जन से पहले विदाई के गीत गाते है | गणगौर माता सुहाग दात्री होती है जो पूजा के बाद महिलाओं को अमर सुहाग का आशीर्वाद देती है और कुंवारी कन्याओं को मन चाहे वर का आशीर्वाद देती है |
गणगौर पूजा का गीत -
गौर गौर गोमती ईसर पूजे पार्वती
पार्वती का आला-गीला, गौर का सोना का टीका
टीका दे, टमका दे, बाला रानी बरत करयो
करता करता आस आयो वास आयो
खेरे खांडे लाडू आयो, लाडू ले बीरा ने दियो
बीरो ले मने पाल दी, पाल को मै बरत करयो
सन मन सोला, सात कचौला, ईशर गौरा दोन्यू जोड़ा
जोड़ ज्वारा, गेंहू ग्यारा, राण्या पूजे राज ने, म्हे पूजा सुहाग ने
राण्या को राज बढ़तो जाए, म्हाको सुहाग बढ़तो जाय
कीड़ी- कीड़ी, कीड़ी ले, कीड़ी थारी जात है, जात है गुजरात है
गुजरात्यां को पाणी, दे दे थाम्बा ताणी
ताणी में सिंघोड़ा, बाड़ी में भिजोड़ा
म्हारो भाई एम्ल्यो खेमल्यो, सेमल्यो सिंघाड़ा ल्यो
लाडू ल्यो, पेड़ा ल्यो सेव ल्यो,
झर झरती जलेबी ल्यो, हरी -हरी दूब ल्यो, गणगौर पूज ल्यो
इस तरह सोलह बार बोल कर आखिरी में
बोले एक-लो, दो-लो, तीन लो … सोलह-लो ।
पाटा धोने का गीत –
पाटो धोय पाटो धोय, बीरा की बहन पाटो धो,
पाटो ऊपर पीलो पान, म्हे जास्या बीरा की जान |
जान जास्या, पान जास्या, बीरा ने परणाय लास्या,
अली गली मे साप जाये, भाभी थारो बाप जाये |
अली गली गाय जाये, भाभी थारी माय जाये,
दूध मे डोरों , म्हारों भाई गोरो,
खाट पे खाजा, म्हारों भाई राजा,
थाली मे जीरा म्हारों भाई हीरा |
थाली मे है पताशा, बीरा करे तमाशा |
ओखली मे धानी, छोरया की सासु कानी,
छाजला में तिल्ली, छोरया की सासु बिल्ली ||
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