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आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। पुराणों के अनुसार देवी लक्ष्मी इसी पूर्णिमा तिथि को समुद्र मंथन से उपन्न हुई थीं। इसीलिए शरद पूर्णिमा की रात का हिंदू धर्म में अपना विशेष महत्व है। ज्योतिषियों के अनुसार सम्पूर्ण वर्ष में केवल इस रात में चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से पूर्ण होकर आकाश से अमृत वर्षा करता है और वैभव की देवी लक्ष्मी अपने पति श्रीहरि के साथ पृथ्वी लोक पर भ्रमण करने आती हैं।
शरद पूर्णिमा की कहानी -
हिन्दुओं में पूर्णिमा के व्रत का सनातन धर्म में बहुत महत्व है। हर महीने में पड़ने वाली पूर्णिमा तिथि पर व्रत करने से भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
एक साहूकार की दो बेटियां थी, एक का नाम कुकड़ था और दूसरी का नाम माकड | दोनों हर पूर्णिमा को व्रत किया करती थीं। इन दोनों बेटियों में बड़ी बेटी पूर्णिमा का व्रत पूरे विधि-विधान से पूरा व्रत करती थी। वहीं छोटी बेटी व्रत तो करती थी लेकिन नियमों को आडंबर मानकर उनकी अनदेखा करती थी। विवाह योग्य होने पर साहूकार ने अपनी दोनों बेटियों का विवाह कर दिया। छोटी बेटी के घर जो भी संतान होती वह पैदा होते ही मर जाती और बड़ी बेटी के घर संतान होती वह जीवित रहती | एक दिन छोटी बहन को मृत लड़का पैदा हुवा और उसने सोचा क्यों न बड़ी बहन को बुला कर इसका कलंक उस पर लगा दू | यह सोचकर उसने अपनी बड़ी बहन को बुलाया और मृत लड़के को एक पीडे पर सुला दिया और ऊपर से कपड़ा ढक दिया | जब बड़ी बहन आयी तो उसको उस पीडे पर बैठने को बोला, जैसे ही बड़ी बहन पीडे पर बैठने लगी तो उसके लावण (लहँगा / घाघरा) लगते ही लड़का जीवित हो गया और रोने लगा | तो बड़ी बहन चौंक कर छोटी बहन से बोली तू ये क्या करने वाली थी | मेरे पर लड़के को मरने का कलंक लगाना चाहती थी ? तब छोटी बहन ने माफ़ी मांगी और बोली की बहन मुझे माफ़ करदे तेरे तो लावण में भी हजारों गुण है और मेरी तो कोख में 100 अवगुण है | तभी तो तेरी लावण लगते ही मरा हुवा लड़का जीवित हो गया |
इसके बाद पंडितो छोटी बहन ने ज्योतिषियों को कुंडली दिखाई तो पता चला की वो दोनों पिछले जन्म में बहनें थी और तब भी बड़ी बहन पूरी निष्ठा के साथ व्रत पूरा करती और छोटी बहन आधा अधूरा व्रत करती | उसी के दोष से यह सब हुवा | तो उसने इस दोष को दूर करने का उपाय पूछा | तब पंडित जी ने बताया कि शरद पूर्णिमा का विधि पूर्वक पूरा व्रत करने से यह दोष दूर होगा और आने वाली संतान भी जीवित रहेगी | इसके बाद उसने पूर्णिमा व्रत विधि पूर्वक किया और इस व्रत के महत्व और फल का पूरे नगर में प्रचार किया। जिस प्रकार मां लक्ष्मी और श्रीहरि ने साहूकार की बड़ी बेटी का सत रखा और छोटी बेटी की कामना पूर्ण कर सौभाग्य प्रदान किया, वैसे ही हम पर भी कृपा करें।
शरद पूर्णिमा पूजा की विधि -
❀ शरद पूर्णिमा पूजा विधि-सुबह स्नान के बाद घर के मंदिर की सफाई करें। फिर गाय के दूध में चावल की खीर बनाकर रख लें।
❀ लक्ष्मी माता और भगवान विष्णु की पूजा करने के लिए लाल या पीला कपड़ा चौकी पर बिछाकर माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की प्रतिमा इस पर स्थापित करें।
❀ अगर प्रतिमा नही हो तो तांबे अथवा मिट्टी के कलश पर वस्त्र से ढंकी हुई लक्ष्मी जी की स्वर्णमयी मूर्ति की स्थापना भी कर सकते हैं।
❀ भगवान की प्रतिमा के सामने घी का दीपक जलाएं और धूप करें।
❀ इसके बाद गंगाजल से स्नान कराकर अक्षत और रोली से तिलक लगाएं।
❀ लाल या पीले पुष्प अर्पित करें। माता लक्ष्मी को गुलाब का फूल अर्पित करना विशेष फलदाई होता है।
❀ अब मीठे ( सफेद या पीली मिठाई ) से भोग लगाएं।
❀ शाम के समय चंद्रमा निकलने पर अपनी सामर्थ्य के अनुसार मिट्टी के दीये गाय के शुद्ध घी से जलाएं।
❀ इसके बाद खीर को कई छोटे बर्तनों में भरकर छलनी से ढककर चंद्रमा की रोशनी में रख दें।
❀ फिर पूरी रात (तड़के 3 बजे तक, इसके बाद ब्रह्म मुहूर्त शुरू हो जाता है) जागते हुए विष्णु सहस्त्रनाम का जप, श्रीसूक्त का पाठ, भगवान श्रीकृष्ण की महिमा, श्रीकृष्ण मधुराष्टकम् का पाठ और कनकधारा स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। पूजा की शुरुआत में भगवान गणपति की आरती अवश्य करें।
❀ अगली सुबह ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके उस खीर को मां लक्ष्मी को अर्पित करें और प्रसाद रूप में वह खीर घर-परिवार के सदस्यों में बांट दें।
इस प्रकार जगतपालक और ऐश्वर्य प्रदायिनी की पूजा करने से सभी मनवांछित कार्य पूरे होते हैं। साथ ही हर तरह के कर्ज से मुक्ति मिलती है।
शरद पूर्णिमा आप सभी के लिए फलदायी हो |
यह भी पढ़े -
❀ शरद पूर्णिमा महत्व और उपाय (Why we celebrate Sharad Purnima and Upay)
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