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वट सावित्री व्रत | वट सावित्री व्रत का महत्व

हिंदू संस्कृति में अनेको तीज-त्योहार, परंपराएं है जो हमें प्रकृति से एवं निसर्ग से जोड़े रखती हैं। पशु-पक्षी, पेड़-पौधे इन को भगवान का दर्जा दिया गया है। जैसे नागपंचमी (सांप की पूजा), पोळा (बैलों की पूजा), वसुबारस या बछ बारस (गाय- बछड़े की पूजा), तीज गुड़ी पाड़वा (नीम और आम के पत्तों का महत्व), दशहरा (शमी वृक्ष के पत्ते), वटपौर्णिमा (वड या बरगद के पेड़ की पूजा)।  

बरगद, पीपल, कडुनीम इन जैसे और भी अनेकों वृक्षों को दीर्घायु मिला है। ऐसे पेड़ों के महत्व और उनसे होने वाले फायदों को जन जन तक पहुंचाने के लिए भारतीय संस्कृति में इनकी पूजा करने का उल्लेख है। इन पवित्र और वरदान युक्त पेड़ों को तोड़ने का साहस भी कम हो जाता है। सभी पेड़ों में बरगद का पेड़ सबसे पवित्र और लंबी आयु वाला माना गया है। इसके अलावा उसकी शाखाओं की वजह से उसका विस्तार बहुत अधिक बढ़ जाता है ऐसे बड या बरगद के वृक्ष की पूजा करके उसी की तरह मेरा घर संसार भी फले-फुले, पति को आरोग्य, संपन्नता और लंबी आयु मिले, धन-धान्य, पोते-पोती इन सब से मेरे संसार का विस्तार हो ऐसी प्रार्थना हर महिला करती है।  

इस पूजा के पीछे परंपरागत कथा है। भद्र देश में अश्वपति नाम का एक राजा था। बहुत पूजा, पाठ करके भगवान सावित्री के आशीर्वाद और वरदान से उनको एक सुंदर, सुशील, गुणवान कन्या हुई उसका नाम सावित्री रखा गया। सावित्री की शादी की उम्र होने पर योग्य वर न मिलने की वजह से सावित्री के पिता ने उसे ही अपना जीवन साथी खोजने के लिए कहा। सावित्री ने साल्व देश के राजा द्युमत्सेन के राजकुमार सत्यवान को चुना। द्युमत्सेन का राज्य शत्रुओं ने छीन लिया था इस वजह से वह अपनी रानी एवं बच्चों समेत तपोवन में रहने लगे थे। सत्यवान अल्पायु थे यह बात नारद मुनि जानते थे, इसलिए उन्होंने सावित्री को सत्यवान से विवाह न करने की सलाह दी‌। किंतु सावित्री नहीं मानी और सत्यवान से विवाह करके वह जंगल में ही अपने परिवार के साथ रहने लगी। एक बार सत्यवान लकड़िया तोड़ने जंगल में गए वहां मूर्छित होकर गिर पड़े। कहते हैं कि यमराज उनके प्राण ले जाने आए तभी सावित्री यमराज के पीछे पीछे जाने लगी। यमराज के बार-बार मना करने पर भी वह नहीं मानी। तब यमराज ने उसको अपने पति को छोड़कर तीन वरदान मांगने को कहा। पहले वरदान में उसने अपने सास-ससुर के आंखों की रोशनी मांगी। दूसरे वरदान में उनका खोया हुआ राज्य मिलने की मांग की और तीसरे वरदान में खुद के लिए १०० पुत्रों की मांग की। यमराज के तथास्तु कहते ही वह वचनबद्ध हो गए और उनको सत्यवान के प्राण लौटाने पड़े। सावित्री के इस साहस और त्याग से प्रसन्न होकर यमराज ने उसे अखंड सौभाग्य का वरदान दिया। उस समय सावित्री सत्यवान को लेकर वट वृक्ष यानी बरगद के पेड़ के नीचे ही बैठी थी। 

 

बड़ के पेड़ की पूजा

इसीलिए यह व्रत हर साल ज्येष्ठ माह में कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को और कुछ जगहों पर जेष्ठ माह के पूर्णिमा को यह व्रत किया जाता है, जिसमें सभी महिलाएं वट वृक्ष की पूजा और व्रत करती है।  

वट वृक्ष को वस्त्र, फल (आम), फूल चढ़ाती है और वृक्ष को सात बार सूती धागा लपेटती हैं। सात जन्मो तक यही साथी पति के रूप में मिले ऐसी कामना करती हैं। बाकी सुहागन महिलाओं की गेहूं एवं आम के फल से खोल भरती हैं और व्रत करती है।  

इस तरह आज भी यह परंपरा चली आ रही है। जब हर सुहागन महिला अपने पति के दीर्घायु के लिए वट सावित्री का व्रत करती है। 

वटवृक्ष लावूनी दारोदारी  
साजरी करावी वटपौर्णिमा, 
हीच वृक्ष उतरतील 
आयुष्यात आपला जीवन विमा।। 

इस तरह पत्नी का अपने पति के लिए प्रेम, समर्पण, परवाह और भरोसा नजर आता है और उसमें हर दिन वृद्धि होती है। धन्य है वह हिंदू संस्कृति जिसकी वजह से इंसान को इंसान से जोड़ कर रखा है। हिंदू त्योहारों ने ही हमें इंसान और इंसानियत के तौर पर अनुशासित किया है। इन सभी का हमारे जीवन में अत्यधिक महत्व है।  

 

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