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बसंत पंचमी क्यों मनाते है ? | बसंत पंचमी का महत्व

विद्या की देवी सरस्वती के जन्मदिवस के रूप में बसंत पंचमी का त्योहार मनाया जाता है जो बसंत ऋतु के आगमन का भी प्रतीक है। प्राचीन भारत में पूरे साल को जिन छह मौसमों में बाँटा गया है उनमें वसंत ऋतु सभी लोगों का मनचाहा मौसम है। इस मौसम में फूलों पर बहार आती है, खेतों में सरसों का फूल जैसे सोना चमकने लगता है, जौ और गेहूँ की बालियाँ खिलने लगतीं है, आमों के पेड़ों पर मांजर आ जाता और हर तरफ़ रंग-बिरंगी तितलियाँ और भंवरे मँडराने लगते है। बसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पाँचवे दिन बसंत पंचमी या श्रीपंचमी का त्योहार मनाया जाता है| इस दिन ज्ञान और स्वर की देवी माता सरस्वती की पूजा की जाती है। कुछ जगहों पर बसंत पंचमी के दिन विष्णु और कामदेव की पूजा भी होती हैं। यह त्योहार पूर्वी भारत, पश्चिमोत्तर बांग्लादेश, नेपाल और कई राष्ट्रों में बड़े उल्लास से मनाया जाता है।  

माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी से भारत में बसंत ऋतु का आरम्भ होता है। बसंत पंचमी की पूजा सूर्योदय के बाद और दिन के मध्य भाग से पहले की जाती है। इस समय को पूर्वाह्न भी कहा जाता है। शिक्षा प्रारंभ करने या किसी नई कला की शुरूआत करने के लिए आज का दिन शुभ माना जाता है | पीला रंग समृद्धि का सूचक है इसलिए आज के दिन पीले रंग के वस्त्र पहनकर पूजा की जाती है |  

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार आज के दिन देवी रति और भगवान कामदेव की षोडशोपचार पूजा करने का भी विधान है। यह भी माना जाता है कि वसंत पंचमी के दिन ही सिख गुरु गोविंद सिंह का जन्म हुआ था।  

बसंत पंचमी का महत्व - 

इस पर्व के महत्व का वर्णन पुराणों और अनेक धार्मिक ग्रंथों में विस्तारपूर्वक किया गया है। खासतौर से देवी भागवत में उल्लेख मिलता है कि माघ शुक्ल पक्ष की पंचमी को ही संगीत, काव्य, कला, शिल्प, रस, छंद, शब्द आदि की शक्ति जिह्वा को प्राप्त हुई थी। बसंत पंचमी को मुहूर्त शास्त्र के अनुसार एक स्वयंसिद्धि मुहूर्त और अबूझ मुहूर्त भी माना गया है अर्थात इस दिन कोई भी शुभ मंगल कार्य करने के लिए पंचांग शुद्धि की आवश्यकता नहीं होती। ज्योतिषविदों के अनुसार, इस दिन नींव पूजन, गृह प्रवेश, वाहन खरीदना, व्यापार आरम्भ करना, सगाई और विवाह आदि मंगल कार्य किए जा सकते हैं। विद्यार्थी इस दिन अपनी किताब कॉपी और पढ़ने वाली वस्तुओं की पूजा करते हैं। इसी दिन शिशुओं को पहला अक्षर लिखना सिखाया जाता है। विद्या का आरंभ करने के लिए ये दिन सबसे शुभ माना गया है।



  

वीणाधारिणी माँ सरस्वती
बसंत पचंमी कथा -

पौराणिक कथाओं के अनुसार माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाए जाने वाले इस त्योहार के दिन ही ब्रह्माण्ड के रचयिता ब्रह्माजी ने सरस्वती की रचना की थी। जिसके बारे में पुराणों में यह उल्लेख मिलता है कि सृष्टि के प्रारंभिक काल में ब्रह्माजी ने मनुष्य योनि की रचना की पर अपने प्रारंभिक अवस्था में मनुष्य मूक था और धरती बिलकुल शांत थी। ब्रह्मा जी ने जब संसार को बनाया तो पेड़-पौधों और जीव जन्तुओं सबकुछ दिख रहा था, लेकिन अपनी सर्जना से वे संतुष्ट नहीं थे, उन्हें लगता था कि कुछ कमी रह गई है जिसके कारण चारों ओर मौन छाया रहता है। 

तब ब्रह्मा जी ने इस समस्या के निवारण के लिए अपने कमण्डल से जल अपने हथेली में लेकर संकल्प स्वरूप उस जल को छिड़कर भगवान श्री विष्णु की स्तुति की और भगवान विष्णु तत्काल ही उनके सम्मुख प्रकट हो गए | उनकी समस्या सुनकर भगवान श्री विष्णु ने आदिशक्ति देवी दुर्गा का आव्हान किया। विष्णु जी के द्वारा आव्हान होने के कारण माँ भगवती दुर्गा वहां तुरंत ही प्रकट हो गयीं तब ब्रम्हा एवं विष्णु जी ने उन्हें इस संकट को दूर करने का निवेदन किया। समस्या सुनने के बाद उसी क्षण आदिशक्ति दुर्गा माता के शरीर से स्वेत रंग का एक तेज उत्पन्न हुआ जिसमे अद्भुत शक्ति के रूप में एक चतुर्भुजी देवी प्रकट हुईं। उनके एक हाथ में वीणा और दूसरे हाथ में पुस्तक थी, तीसरे में माला और चौथा हाथ वर मुद्रा में था। बसंत पंचमी के दिन आदिशक्ति श्री दुर्गा के शरीर से उत्पन्न तेज से इस स्वरूप में देवी सरस्वती प्रकट हुवी थी। प्रकट होते ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया जिससे संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया। पवन चलने से सरसराहट होने लगी। तब सभी देवताओं ने शब्द और रस का संचार कर देने वाली उन देवी को वाणी की अधिष्ठात्री देवी "सरस्वती" कहा। 

तब आदिशक्ति माँ भगवती ने ब्रह्मा जी से निवेदन किया कि मेरे तेज से उत्पन्न हुई ये देवी सरस्वती आपकी पत्नी बनेंगी, जैसे लक्ष्मी श्री विष्णु की शक्ति हैं, पार्वती महादेव शिव की शक्ति हैं उसी प्रकार ये सरस्वती देवी ही आपकी शक्ति होंगी। माँ सरस्वती को वागीश्वरी, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। ये विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी मानी जाती हैं।



  

बसंत पंचमी की पूजा विधि - 

- बसंत पंचमी की पूजा सूर्योदय के ढाई घंटे बाद या सूर्योस्त के ढाई घंटे बाद ही की जाती है। सुबह के समय स्नानादि करके पीले या सफ़ेद वस्त्र धारण करें, पूजा पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ मुख करके करनी चाहिए |  
- पूजा के लिए एक चौकी लें, उसपर गंगाजल छिड़क कर पीला या सफेद रंग का वस्त्र बीछा दें फिर सफ़ेद कमल पर बैठी वीणाधारिणी माँ सरस्वती की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें | पूजा के स्थान पर वाद्य यंत्र, किताबें रखें और बच्चों को भी पूजा स्थल पर बैठाएं।  
- माता सरस्वती को हल्दी अथवा सफेद चंदन अर्पित करें। इसके पश्चात माता को सिन्दूर व अन्य श्रृंगार की सामग्री चढ़ाएं। इसके बाद मां सरस्वती के चरणों में पीले और सफेद फूल अर्पित करें।  
- माँ सरस्वती का पूजन करने के बाद पुस्तकों और वाद्य यंत्रों की भी अवश्य पूजा करें।  
- पूजा में सरस्वती कवच का पाठ करें और ‘श्रीं ह्रीं सरस्वत्यै स्वाहा’ मंत्र का 108 बार जप करें |  
- इसके बाद अंत में माँ सस्वती की धूप व दीप से आरती उतारें और पूजा में हुई किसी भी भूल के लिए क्षमा मांगे |  
- माता को पीले चावल, केसर मिश्रित खीर या पीले रंग के प्रसाद का भोग लगाएं | भोग लगाकर सभी को प्रसाद बाँटे और स्वयं भी प्रसाद ग्रहण करें |  
- कुछ जगहों पर बसंत पंचमी के दिन माँ की मूर्ति का विर्सजन करने की भी परंपरा है। यदि आप भी ऐसा करते हैं तो माता सरस्वती की मूर्ति के साथ उनका सारा समान जो पूजा में चढ़ाया है वो भी प्रवाहित करें।  

सरस्वती पूजा मंत्र -1  
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।  
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना॥  
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।  
सा माम् पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥1॥  
शुक्लाम् ब्रह्मविचार सार परमाम् आद्यां जगद्व्यापिनीम्।  
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌॥  
हस्ते स्फटिकमालिकाम् विदधतीम् पद्मासने संस्थिताम्‌।  
वन्दे ताम् परमेश्वरीम् भगवतीम् बुद्धिप्रदाम् शारदाम्‌॥2॥  

सरस्वती पूजा मंत्र -2  
सरस्वती नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणी, विद्यारम्भं करिष्यामि सिद्धिर्भवतु में सदा।  
 



  

यदि बसन्त पंचमी के दिन पति-पत्नी भगवान कामदेव और देवी रति की पूजा षोडशोपचार करते हैं तो उनकी वैवाहिक जीवन में अपार ख़ुशियाँ आती हैं और उनके रिश्ते मज़बूत होते हैं।  

षोडशोपचार पूजा संकल्प -  
ॐ विष्णुः विष्णुः विष्णुः, अद्य ब्रह्मणो वयसः परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे,  
अमुकनामसंवत्सरे माघशुक्लपञ्चम्याम् अमुकवासरे अमुकगोत्रः अमुकनामाहं सकलपाप - क्षयपूर्वक - श्रुति -  
स्मृत्युक्ताखिल - पुण्यफलोपलब्धये सौभाग्य - सुस्वास्थ्यलाभाय अविहित - काम - रति - प्रवृत्तिरोधाय मम  
पत्यौ/पत्न्यां आजीवन - नवनवानुरागाय रति - कामदम्पती षोडशोपचारैः पूजयिष्ये।  

देवी रति और कामदेव का ध्यान -  
ॐ वारणे मदनं बाण - पाशांकुशशरासनान्।  
धारयन्तं जपारक्तं ध्यायेद्रक्त - विभूषणम्।।  
सव्येन पतिमाश्लिष्य वामेनोत्पल - धारिणीम्।  
पाणिना रमणांकस्थां रतिं सम्यग् विचिन्तयेत्।।  

श्री पंचमी -  
आज के दिन धन की देवी ‘लक्ष्मी’ (जिन्हें श्री भी कहते है) और भगवान विष्णु की भी पूजा की जाती है। कुछ लोग देवी लक्ष्मी और देवी सरस्वती की पूजा एक साथ ही करते हैं। सामान्यतः क़ारोबारी या व्यवसायी वर्ग के लोग देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं। लक्ष्मी जी की पूजा के साथ श्री सू्क्त का पाठ करना अत्यंत लाभकारी माना गया है।  

माँ सरस्वती की आरती -  
जय सरस्वती माता, मैया जय सरस्वती माता।  
सदगुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता॥  
जय सरस्वती माता॥  

चन्द्रवदनि पद्मासिनि, द्युति मंगलकारी।  
सोहे शुभ हंस सवारी, अतुल तेजधारी॥  
जय सरस्वती माता॥  

बाएं कर में वीणा, दाएं कर माला।  
शीश मुकुट मणि सोहे, गल मोतियन माला॥  
जय सरस्वती माता॥  

देवी शरण जो आए, उनका उद्धार किया।  
पैठी मंथरा दासी, रावण संहार किया॥  
जय सरस्वती माता॥  

विद्या ज्ञान प्रदायिनि, ज्ञान प्रकाश भरो।  
मोह अज्ञान और तिमिर का, जग से नाश करो॥  
जय सरस्वती माता॥  

धूप दीप फल मेवा, माँ स्वीकार करो।  
ज्ञानचक्षु दे माता, जग निस्तार करो॥  
जय सरस्वती माता॥  

माँ सरस्वती की आरती, जो कोई जन गावे।  
हितकारी सुखकारी ज्ञान भक्ति पावे॥  
जय सरस्वती माता॥ जय सरस्वती माता, जय जय सरस्वती माता।  

सदगुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता॥  
जय सरस्वती माता॥



  

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