भारतवर्ष रूढी-परंपरा, रीति रिवाज इन सबके अलावा उत्साह और उत्सवों का देश हैं। अलग-अलग प्रांतों में मनाए जाने वाले विविध तीज त्योहारों का देश हैं। ऐसा ही एक महाराष्ट्रीयन त्योहार 'गुढीपाडवा' गुढी याने लकड़ी का बांबू और प्रतिपदा तिथि याने पाडवा। महाराष्ट्र के राजा शालीवाहन ने चैत्र शुक्ल प्रतिपदा इस दिन से काल गनना शुरू की थी, यह पर्व गुढीपाड़वा के नाम से मनाया जाता है। इसके अलावा यह त्योहार कर्नाटक और आंध्रप्रदेश इन राज्यों में भी 'संवत्सर पडवो' या 'उगादी' जी के नाम से मनाया जाता है। गौतमीपुत्र की सत्ता से आजाद होने की खुशी में वह लोग 'विजय दिन' के नाम से इस दिन को मनाते हैं।
गुढी पाड़वा का महत्व -
'गुढीपाडवा' चैत्र शुद्ध प्रतिपदा इस तिथि को मनाया जाने वाला त्योहार है इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर अभ्यंग स्नान किया जाता है। फिर घर की सफाई करके रंगोली बनाई जाती है। सामने दरवाजे पर फूल और आम के पत्ते का तोरण और विजय पताका बांधी जाती हैं। ऊंचे बांबू को पानी से साफ करके उसकी पूजा करके गुढी तैयार की जाती है। गुढी में ऊपर रेशमी कपड़ा या साड़ी पहनाई जाती है। कडूनीम की डाली, आम के पत्ते, फूलों का हार और शक्कर की गाठी की माला उसमें लगाई जाती है। उसके ऊपर तांबे का कलश स्वस्तिक बनाकर उल्टा रखा जाता है। फिर गुढी की विधिवत पूजा करके घर के सामने दाईं तरफ गुढी लगाई जाती है वह थोड़ी झुकी हुई होती है। तब उसको कडुनीम के पत्ते और गुड़ का या शक्कर का भोग लगाया जाता है। इस दिन श्रीखंड-पूरी या पूरनपोली का भोजन बनाकर भोग लगाया जाता है। शाम को सूर्यास्त के समय हल्दी-कुमकुम फुल आदि चढ़ाकर गुढ़ी उतार दी जाती है। गुड-कडुनीम का प्रसाद सभी को दिया जाता है। इस तरह से 1 दिन का यह गुढीपाड़वा का पर्व घर परिवार के सभी लोग मिलकर बड़े ही उत्साह एवं धूमधाम से मनाते हैं।
गुढीपाडवा की पूजा में उपयोग में आने वाले वस्तुओं का मतलब :?
- कहते हैं कि अभ्यंग स्नान करने से इंसान के रज और तमोगुण एक लाख से कम हो जाते हैं और उतने ही सद्गुण बढ़ जाते हैं।
- लकड़ी का पाटा (जिसे आसन भी कहते हैं) स्थिरता का प्रतीक है।
- पूजा में रखी जाने वाली सुपारी- संकल्प याने दृढ़ निश्चय का प्रतीक है, वहीं नारियल या श्रीफल सकारात्मक लक्ष्य नियोजन का प्रतीक है।
- हल्दी कुमकुम - सुहागन या पति की लंबी उम्र की कामना के लिए रखा जाता है।
- गुढी या बाबू : यहां सामर्थ्य या मजबूती और प्रकृति के संरक्षण का प्रतीक है।
- रेशमी कपड़ा या साड़ी घर में सुख-समृद्धि का प्रतीक है।
- शक्कर गाठी जिंदगी में मिठास का, फुल हार - मंगल का, तो कडुनीम - आरोग्य का और कलश - सफलता, मंगल और समृद्धि का प्रतीक है।
इस त्योहार में कलश को उल्टा रखा गया है ताकि वह गुढी पर की सारी चीजों को बांध के रखे और जो कि कलश हमेशा ही भरा होता है पर गुढी ऊपर की तरफ होने की वजह से भी कलश को उस पर उल्टा रखते हैं। गुढ़ी को थोड़ा तिरछा रखना याने भगवान की तरफ समर्पण का भाव है। 27 नक्षत्रों से 27 तरंगे बनती है, इनमें से प्रजापति, यम एवं सूर्य यह तीनों तरंगे बहुत ही महत्वपूर्ण है। गुढीपाडवा याने चैत्र शुद्धि प्रतिपदा के दिन इन तीनों तरंगों का समतोल मिश्रण होकर वह ज्यादा से ज्यादा प्रमाण में पृथ्वी की तरफ आती है। तांबे के कलश में उन तरंगों को ग्रहण करने की क्षमता बहुत ज्यादा होती है, उसकी सहायता से यह तरंगे जो "नवनिर्मिति" का प्रतीक है वह घर में प्रवेश करती है और घर को नई ऊर्जा एवं सकारात्मकता से भर देती है। गुढीपाडवा के दूसरे दिन से उसी कलश में पानी रखकर पीने से उसका प्रभाव ज्यादा और अच्छा होता है। शक्कर की गाठी से शरीर को ठंडक मिलती है और कडुनीम के सेवन से कफ, उष्णता एवं पित्त आदी रोगों का नाश होकर मनुष्य को आरोग्य प्रदान होता है।
माना जाता है कि ब्रह्मा जी ने इसी दिन सृष्टि की रचना की थी और इसीलिए ब्रह्मा जी की पूजा भी इस दिन होती है। वेद- ग्रंथों के अनुसार गुड़ी पड़वा यह साढ़े तीन मुहूर्त में से एक है। इसी दिन से मराठी नववर्ष की शुरुआत होती है। कोई भी बड़े काम की शुरुआत इस दिन से कर सकते हैं जैसे नई चीज खरीदना, नया व्यवसाय शुरू करना, सोना आदि खरीदना इत्यादि। यह भी कहा जाता है कि श्री राम जी जब 14 साल का वनवास पूरा करके अयोध्या लौटे थे तो इसी दिन उनका राज्याभिषेक हुआ था। रामनवमी (राम जन्मोत्सव) की तैयारी भी इसी दिन से शुरू हो जाती हैं।चैत्र शुक्ला प्रतिपदा याने बसंत ऋतु का पहला दिन! "सभी ऋतुओं में मैं बसंत में ही हूं" ऐसा भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा था। मानव ही नहीं पशु पक्षी यहां तक की जड़ चेतन प्रकृति भी आलस्य को छोड़कर सचेतन हो जाते हैं। बसंत ऋतु में प्रकृति में नई बहार होती है और गुढ़ीपाडवा के माध्यम से यही नयापन हमारे जिंदगी में भी आ जाता है।
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