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क्यों मनाई जाती है आषाढ़ की पूनम को गुरु पूर्णिमा | गुरु पूर्णिमा

गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर:। 
गुरुर्साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नम:।। 
 

अर्थात गुरु ब्रह्मा, विष्णु और महेश है, परम ब्रह्म के समान माना गया है, ऐसे गुरु को मेरा शत शत नमन |  

भारतीय संस्कृति में गुरु को देवता तुल्य माना जाता है। आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा का यह पर्व महार्षि वेद व्यास जी के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। शिवपुराण के अनुसार अठ्ठाईसवें द्वापर में महर्षि वेदव्यास जी का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा को लगभग 3000 ई. पूर्व में हुआ था। उनके पिता का नाम ऋषि पराशर है। वेद व्यास जी को विष्णु भगवान का अंशावतार माना जाता है। इनको कृष्णद्वैपायन के नाम से भी जाना जाता है।  

वेद, उपनिषद और पुराणों का प्रणयन करने वाले महर्षि व्यास जी तीनों कालों के ज्ञाता है। वेद व्यास जी ने चारों वेदों, ब्रह्मासूत्र, महाभारत सहित 18 पुराणों एवं अन्य ग्रन्थों की भी रचना की जिनमें "श्रीमदभागवतमहापुराण" एक अतुलनीय ग्रंथ भी शामिल है। शास्त्रों के अनुसार इसी दिन वेद व्यास जी ने अपने शिष्यों एवं मुनियों को सर्वप्रथम श्री भागवतपुराण का ज्ञान दिया था। जिस वजह से उनके अनेक शिष्यों में से पांच शिष्यों ने गुरु पूजा की परंपरा प्रारंभ की। पुष्पमंडप में उच्चासन पर अपने गुरु जी को बिठाकर पुष्प मालाएं अर्पित की, उनकी आरती की तथा अपने लिखें ग्रंथ अर्पित किए । यहीं परम्परा आज भी चली आ रही है, हर साल इस दिन लोग व्यास जी के चित्र का पूजन करते है और उनके द्वारा रचित ग्रंथों का पाठ करते हैं। कई मठों और आश्रमों में लोग जाकर अपने गुरुओं की पूजा करते हैं और उनसे आशीर्वाद लेते है। 

गुरु पूर्णिमा को आषाढ़ पूर्णिमा, व्यास पूर्णिमा और मुडिया पूनो के नाम से भी जाना जाता है।  

वैदिक ग्रंथों के अनुसार भगवान शिव को सर्वप्रथम गुरु माना गया है - 
पौराणिक तथ्यों के अनुसार, भगवान शिव सबसे पहले गुरु माने जाते हैं। शिवजी ने ही सबसे पहले धरती पर सभ्यता और धर्म का प्रचार-प्रसार किया था इसलिए उन्हें आदिदेव, आदिगुरू और आदिनाथ भी कहा जाता है। आदिगुरू शिव ने यह कार्य शनि और परशुराम अपने दोनों शिष्यों के साथ 7 ऋषियों को दिया। ये ही आगे चलकर सप्तऋषि (जिनके नाम है- ऋषि वशिष्ठ, ऋषि विश्वामित्र, ऋषि शौनक, ऋषि वामदेव, ऋषि अत्री, ऋषि भारद्वाज और ऋषि कण्व) कहलाए और इन्होंने ही आगे चलकर भगवान शिव के ज्ञान को चारों दिशाओं में फैलाया। 

 

गुरु और शिष्य

गुरु का महत्व - 
'गुरु' शब्द का अर्थ ही होता है अंधेरे को खत्म करना, शिष्यों को सही राह दिखाना। 
गुरू के बिना एक शिष्य के जीवन का कोई अर्थ नहीं होता। सही राह पर चलना यह सीख गुरु ही देता है | गुरु जीवन में से अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाते है। जिसके प्रमाण रामायण और महाभारत में भी मिलते है, जिसमे गुरू का स्थान सबसे महत्वपूर्ण और पूजनीय रहा है। मनुष्य जीवन में गुरु किसी भी स्वरूप में प्राप्त हो सकता है जैसे माता-पिता, शिक्षा देने वाले शिक्षक आदि। आज भी सर्वप्रथम गुरु माँ को माना जाता है।  

गुरु और शिष्य का रिश्ता भी बहुत अनूठा होता है जिसके कुछ उदाहरण सर्व विदित है - 
- भगवान कृष्ण ने अपने गुरु सांदिपनी ऋषि से 64 दिनों में 64 कलाये सीखी थी। 
- गुरु द्रोणाचार्य ने अर्जुन को विश्व का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बनाया था। जिनके नाम पर आज देश में खेलों के क्षेत्र में भारत सरकार खिलाड़ीयो को ‘अर्जुन पुरस्कार’ और उसके कोच को ‘द्रोणाचार्य पुरस्कार’ देती है। 
- गुरु द्रोणाचार्य के कहने पर एकलव्य ने अपना अँगूठा काट कर दे दिया था। 
- स्वामी विवेकानंद ने अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस जी के आदेश से पूरे विश्व में सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार किया। 
- चंद्रगुप्त मौर्य ने आपने गुरु चाणक्य के साथ अखंड भारत की स्थापना करी थी। 
- छत्रपति शिवाजी महाराज अपने गुरु (रामदास समर्थ) के आदेशानुसार अपनी जान जोखिम में डालकर भी शेरनी का दूध निकालकर ले आए थे।  
- क्रिकेट सम्राट सचिन तेंदुलकर को उनके कोच रमाकांत आचरेकर ने प्रशिक्षित किया |  

गुरु की महत्ता को प्रसारित करते हुए ही महान संत कबीरदास जी ने लिखा है-  
"गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाये, बलिहारी गुरु आपकी गोविंद दियो मिलाये।"  
यानि एक गुरू का स्थान बहुत बड़ा और पूजनीय होता है। जो प्रभु से मिलने का मार्ग प्रशस्त करते है। 

सभी गुरु जनों को सादर प्रणाम। 
 

  

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