गुरुर्ब्रम्हा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरा:
गुरु साक्षात परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः"!
हमारे भारत को विविधता का स्वरूप माना जाता है| यहां अनेक धर्म और जाति के लोग रहते हैं। इन सबके विभिन्न प्रकार के त्योहार, खानपान, वेशभूषा सभी मे विविधता है| सभी लोग अपने अपने त्योहार सही ढंग से मनाते हैं। उन्हीं में से एक है हमारा भारतीय त्योहार "गुरु पूर्णिमा" जो कि हर धर्म, हर जाति के लोग इसे मनाते हैं। "गुरु पूर्णिमा" यह हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है। "गुरु पूर्णिमा" को “व्यास पूर्णिमा” भी कहां जाता है। इसी दिन महर्षि वेदव्यास जी का जन्मदिवस भी मनाया जाता है। महर्षि वेदव्यास इनको सर्वश्रेष्ठ गुरु माना गया है।
गुरुपूर्णिमा का महत्व :
"गुरु पूर्णिमा" हमारे गुरु को वंदन और उन्हें आभार प्रगट करने के लिए मनाया जाता है | पुरातन काल में शिष्य को अपने गुरु के आश्रम में जाकर रहना पड़ता था। वहां शिष्य अपने गुरुद्वारे मिली हुई शिक्षा को ग्रहण करते थे। खान-पान से लेकर उनकी दैनंदिन दिनचर्या सब आश्रम में व्यतीत होती थी | गुरु की दी हुई शिक्षा हमारे अंधकार मय जीवन को प्रकाश की और ले जाती है | शिष्य की शिक्षा पूरी होने पर ...गुरु को वंदन और आभार व्यक्त करते हुए , गुरु के चरण धोकर और गुरु दक्षिणा देते हुए "गुरु पूर्णिमा" यह पर्व मनाया जाता था। संसार में कुछ ऐसे गुरु और शिष्य की जोड़ियां है जिन के किस्से आज तक हम और आप सुनते आ रहे हैं, जिनके उदाहरण हम हमारे आज की पीढ़ी के सामने रखते हैं। गुरु द्रोणाचार्य और शिष्य अर्जुन, परशुराम के शिष्य कर्ण, महर्षि सांदीपनि के शिष्य भगवान श्री कृष्ण, महर्षि वाल्मीकि के शिष्य राम और लक्ष्मण, गुरु रामकृष्ण परमहंस के शिष्य स्वामी विवेकानंद, गुरु रामदास समर्थ के शिष्य शिवाजी महाराज | इन सब ने अपने शिक्षा का सही उपयोग करके अपने शिक्षा और गुरु का मान सम्मान बढ़ाया है।
गुरू का अर्थ :
हमारे भारत में गुरु को प्रथम स्थान पर माना जाता है। गुरु वह है जो हमें अज्ञानता से ज्ञान की ओर ले जाते हैं। हमें आत्म निर्भर, कर्तव्यनिष्ठ, आत्म विश्वासी और जिम्मेदार इंसान गुरु ही बनाते हैं। सोचिए .... अगर गुरु ना होते ....तो हमें सच्चाई और अच्छाई के रास्ते पर कौन ले जाता ? हम हमारे जीवन के बड़े-बड़े निर्णय कैसे ले पाते ? सच गुरु है तो जिंदगी जीना बहुत आसान है। एक अच्छा गुरु मिलना बहुत खुशकिस्मत की बात होती है। गुरु को भगवान समान माना जाता है। उनका आदर सम्मान हमेशा करना चाहिए | गुरु एक ऐसी छड़ी है जो हमें सिर्फ ज्ञान ही नहीं बल्कि जीवन के बड़े बड़े फैसले लेना और हमें बड़ी से बड़ी मुश्किलों से उभरना सिखाते है, और साथ ही परिश्रम, इमानदारी, सृजनशील बनना भी सिखाते है।
बचपन की पढ़ाई से लेकर हमारी पढ़ाई पूरी होने तक हमें अनेक गुरु मिलते हैं | जैसे-जैसे हम एक एक सीढ़ी पार करते हैं ...वैसे वैसे हमें गुरु के द्वारे मिले अनेक अनुभव से कुछ ना कुछ सीखने जरूर मिलता है | जीवन में गुरु के बिना कुछ भी नहीं है | जिसके जीवन में एक अच्छा और सच्चा गुरु है उसका जीवन सफलता और यश से परिपूर्ण रहता है।
संत कबीर दास जी के दोहे में गुरु की वंदना और उनकी स्तुति की गई है | ज्ञान और अज्ञानता का महत्व समझाया है |
"करै दूरी अज्ञानता, अंजन ज्ञान सुदये|
बलिहारी वे गुरु की हँस उबारि जु लेय ||"
इसका अर्थ है .... ज्ञान का अंजन लगाकर शिष्य के अज्ञानता के दोष को दूर कर देते हैं। उन गुरुजनों की प्रशंसा है, जो जीवो को भव से बचा लेते हैं |
सभी आदरणीय गुरु को समर्पित करते हुए |
सादर अभिवादन......
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