हिन्दू पंचांग में भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी भी कहते हैं| ऐसा माना जाता है कि इसी तिथि को भगवान विष्णु शयन अवस्था में अपना करवट बदलते हैं| भगवान विष्णु के एकादशी तिथि में अपना करवट बदलने या परिवर्तित करने के कारण ही इसे परिवर्तिनी एकादशी कहा जाता है|
इस एकादशी के बाद से मौसम में परिवर्तन होने लगता है, इसलिए इसे परिवर्तिनी एकादशी फभी कहा जाता है। कहीं-कहीं इसे पद्मा एकादशी भी कहते हैं। इस दिन भगवान विष्णु के साथ माँ लक्ष्मी जी का पूजन भी किया जाता है। परिवर्तिनी एकादशी व्रत 29 अगस्त को पड़ रहा है। यह व्रत हर साल भाद्रपद शुक्ल पक्ष की एकादशी को रखा जाता है और द्वादशी के दिन पारण मुहूर्त में व्रत खोला जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु जो पाताल लोक में शयन मुद्रा में हैं वे करवट बदलते हैं। पद्म पुराण में इस एकादशी के महात्म्य को बताते हुए श्री कृष्ण जी कहते हैं कि इन चार महीनों में भगवान वामन रूप में पाताल लोक में निवास करते हैं इसलिए इस दिन भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा करनी चाहिए| इसलिए इसको पद्मा या पार्श्व एकादशी भी कहा जाता है| एकादशी के दिन कुछ बातों का ध्यान रखना आवश्यक है। इस दिन पांच काम बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए।
ये पांच इस प्रकार हैं..
चावल का सेवन न करें
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एकादशी के पावन दिन चावल का सेवन नहीं करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि इस दिन चावल का सेवन करने से मनुष्य का जन्म रेंगने वाले जीव की योनि में होता है। इस दिन जो लोग व्रत नहीं रखते हैं, उन्हें भी चावल का सेवन नहीं करना चाहिए।
गुस्सा न करें
एकादशी का पावन दिन भगवान विष्णु की अराधना का होता है, इस दिन सिर्फ भगवान का गुणगान करना चाहिए। एकादशी के दिन गुस्सा नहीं करना चाहिए और वाद-विवाद से दूर रहना चाहिए।
शारीरिक संबंध नहीं बनाने चाहिए
एकादशी के दिन शारीरिक संबंध नहीं बनाने चाहिए, इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से विशेष लाभ की प्राप्ति होती है।
महिलाओं का अपमान नहीं करना चाहिए
एकादशी के दिन महिलाओं का अपमान करने से व्रत का फल नहीं मिलता है। सिर्फ एकादशी के दिन ही नहीं व्यक्ति को किसी भी दिन महिलाओं का अपमान नहीं करना चाहिए। जो व्यक्ति महिलाओं का सम्मान नहीं करते हैं उन्हें जीवन में कई तरहों की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
माँस-मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए
एकादशी के पावन दिन माँस- मंदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए। इस दिन ऐसा करने से जीवन में तमाम तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इस दिन व्रत करना चाहिए। अगर आप व्रत नहीं करते हैं तो एकादशी के दिन सात्विक भोजन का ही सेवन करें।
परिवर्तिनी एकादशी के दिन विष्णु जी के वामन अवतार की पूजा होती है। इस दिन सहस्त्रनाम का पाठ करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है। यदि आप किसी कारण से व्रत नहीं कर सकते है तो इस दिन मन में विष्णु भगवान का ध्यान करते हुए सात्विक रहें। झूठ न बोले, किसी का मन नहीं दुखाएं एवं पर निंदा से बचें।
परिवर्तिनी एकादशी व्रत की कथा
महाभारत काल के समय पाण्डु पुत्र अर्जुन के आग्रह पर भगवान श्री कृष्ण ने परिवर्तिनी एकादशी के महत्व का वर्णन सुनाया। भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि- हे अर्जुन! अब तुम समस्त पापों का नाश करने वाली परिवर्तिनी एकादशी की कथा का ध्यानपूर्वक श्रवण करो।त्रेतायुग में बलि नाम का असुर था लेकिन वह अत्यंत दानी,सत्यवादी और ब्राह्मणों की सेवा करने वाला था। वह सदैव यज्ञ, तप आदि किया करता था। अपनी भक्ति के प्रभाव से राजा बलि स्वर्ग में देवराज इन्द्र के स्थान पर राज्य करने लगा। देवराज इन्द्र और देवता गण इससे भयभीत होकर भगवान विष्णु के पास गये। देवताओं ने भगवान से रक्षा की प्रार्थना की। इसके बाद मैंने वामन रूप धारण किया और एक ब्राह्मण बालक के रूप में राजा बलि पर विजय प्राप्त की।
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा- वामन रूप लेकर मैंने राजा बलि से याचना की- हे राजन! यदि तुम मुझे तीन पग भूमि दान करोगे, इससे तुम्हें तीन लोक के दान का फल प्राप्त होगा। राजा बलि ने मेरी प्रार्थना को स्वीकार कर लिया और भूमि दान करने के लिए तैयार हो गया। दान का संकल्प करते ही मैंने विराट रूप धारण करके एक पांव से पृथ्वी, दूसरे पांव की एड़ी से स्वर्ग तथा पंजे से ब्रह्मलोक को नाप लिया। अब तीसरे पांव के लिए राजा बलि के पास कुछ भी शेष नहीं था। इसलिए उन्होंने अपने सिर को आगे कर दिया और भगवान वामन ने तीसरा पैर उनके सिर पर रख दिया। राजा बलि की वचन प्रतिबद्धता से प्रसन्न होकर भगवान वामन ने उन्हें पाताल लोक का स्वामी बना दिया।
मैंने राजा बलि से कहा कि, मैं सदैव तुम्हारे साथ रहूंगा। परिवर्तिनी एकादशी के दिन मेरी एक प्रतिमा राजा बलि के पास रहती है और एक क्षीर सागर में शेषनाग पर शयन करती रहती है। इस एकादशी को विष्णु भगवान सोते हुए करवट बदलते हैं।
राजा बलि ने जब 100 यज्ञ पूर्ण कर स्वर्ग का राज्य छीनने का प्रयास किया तो देवराज इंद्र ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। वहीं देवताओं ने अपना राज्य प्राप्त करने के लिए महालक्ष्मी की भी पूजा की। इसलिए इस दिन महालक्ष्मी जी का भी पूजन किया जाता है। इस दिन सहस्त्रनाम का पाठ करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इस दिन दान और पुण्य का भी विशेष महत्व है। इस एकादशी पर तांबा, चांदी, चावल और दही का दान करना शुभ माना जाता है। द्वादशी के समय शुद्ध होकर व्रत पारण मुहूर्त के समय व्रत खोलें
परिवर्तिनी एकादशी की पूजा विधि:
परिवर्तिनी एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करने के बाद साफ कपड़ा पहन लेना चाहिए. इसके बाद जिस जगह पर पूजा करनी है उस जगह को साफ करके वहां पर गंगा जल डाल दें जिससे वह जगह पवित्र हो जाय।
इसके बाद उस जगह पर एक साफ चौकी रखकर उस पर साफ पीले रंग का कपड़ा बिछा दें। कपड़ा बिछाने के बाद उस पर भगवान लक्ष्मी नारायण की मूर्ति स्थापित करें। मूर्ति स्थापित करने के बाद उस पर कुमकुम या चंदन का तिलक लगाकर दीपक जला दें।
पीला रंग भगवान को अत्यधिक प्रिय होने के कारण उन्हें पीले रंग का फूल चढाएं और पीले रंग की मिठाई से भोग जरूर लगाएं। इतना करने के बाद विष्णु चालिसा, विष्णु स्तोत्र और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। पाठ करने के बाद भगवान विष्णु के मन्त्रों या नाम का जाप भी करें। सबसे अंत में विष्णु जी की आरती और क्षमा प्रार्थना भी अवश्य करें.
एकादशी तिथि व्रत का महत्व
हिंदू धर्म शास्त्रों में एकादशी तिथि को ‘हरी दिन’ और ‘हरी वासर’ आदि नाम भी बताएं गए है। एकादशी व्रत का फल हवन, यज्ञ, वैदिक कर्म-कांड पूजा आदि से भी अधिक फलदायी माना जाता है। स्कन्द पुराण के अनुसार मान्यता है कि इस व्रत को करने से दिवंगत पूर्वज पितरों की आत्मा को शांति और मूक्ति की प्राप्ति होती है।
1- पौष पुत्रदा एकादशी
2- षटतिला एकादशी
3- जया एकादशी
4- विजया एकादशी
5- आमलकी एकादशी
6- पापमोचिनी एकादशी
7- कामदा एकादशी
8- वरुथिनी एकादशी
9- मोहिनी एकादशी
10- अपरा एकादशी
11- निर्जला एकादशी
12- योगिनी एकादशी
13- देवशयनी एकादशी
14- कामिका एकादशी
15- श्रावण पुत्रदा एकादशी
16- अजा एकादशी
17- परिवर्तिनी एकादशी
18- इन्दिरा एकादशी
19- पद्मिनी एकादशी
20- परम एकादशी
21- पापांकुशा एकादशी
22- रमा एकादशी
23- देवउठनी एकादशी
24- उत्पन्ना एकादशी
25- मोक्षदा एकादशी
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