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जानिए क्यों मनाई जाती है देव दिवाली | देव दिवाली | कैसे शुरू हुई देव दिवाली मनाने की परंपरा

देव दिवाली का त्योहार कार्तिक पूर्णिमा पर भारत वर्ष में उत्तर प्रदेश के वाराणसी (काशी और बनारस पुराने नाम) मे बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। यह विश्व के सबसे प्राचीन शहर काशी की संस्कृति एवं परम्परा की अनूठी मिसाल है। यह त्योहार दीपावली के पंद्रह दिन बाद आता है। माना जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन देवतागण दिवाली मनाने इस दिन काशी आते है। इसलिए पूरी काशी को रौशनी से सजाया जाता है। बनारस में गंगा नदी के घाटों को दीपों से जगमगाया जाता है। इस दिन माँ गंगा और शिव जी की अराधना की जाती है।   

पौराणिक मान्यता के अनुसार तारकासुर दैत्य के 3 पुत्र थे - तारकाक्ष, कमलाक्ष और विदुमनाली इन तीनों को त्रिपुरा कहा जाता था | शिव-पार्वती के पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया था (क्यूंकि तारकासुर को ब्रह्मा जी ने वरदान दिया था कि शिव के अंश से ही उसकी मृत्यु हो) | तारकासुर के वध का बदला लेने के लिए उसके तीनो पुत्रों ने तपस्या करके ब्रह्मा जी से अमर होने का वरदान मांगा | लेकिन ब्रह्मा जी ने उन्हें यह वरदान देने से मना कर दियाऔर कहा कि तुम इसकी जगह कुछ और वरदान मांग लो | इसके बाद तारकासुर के पुत्रों ने कहा कि वह चाहते हैं कि उनके नाम के अलग - अलग दिशाओं में नगर बनवाए जाएं और साथ ही उन्होंने वरदान में मांगा कि उनकी मृत्यु तभी हो सकती है जब अभिजीत नक्षत्र में कोई शांत पुरुष, असंभव रथ और असंभव अस्त्र से तीनों भाईयों को एक ही दिशा में एक ही वार से नष्ट कर सके | ऐसा वरदान ब्रह्मा जी ने उन्हें तथास्तु कह कर दे दिया | उस वरदान के बाद तारकासुर के तीनों पुत्रों ने अपने बाहुबल से तीनों लोको मे अपना राज स्थापित कर लिया और सब जगह हाहाकार मचा दिया उनके अत्याचार से देवतागण महादेव शिव के समक्ष तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली (त्रिपुरासुर) राक्षसो से मुक्ति पाने के लिए विनती करने लगे। तब भगवान भोलेनाथ ने विश्वकर्मा से एक दिव्य रथ का निर्माण करवाया जिसके पहिये सूर्य और चन्द्रमा बने | उस दिव्य रथ पर सवार होकर भगवान शिव दैत्यों का वध करने निकले, देव और राक्षसों के बीच युद्ध छिड़ गया और जब युद्ध के दौरान तीनों दैत्य यानी त्रिपुरा एक साथ एक ही दिशा में आए तो भगवान शिव शंकर ने एक तीर से ही तीनों का वध कर दिया | भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन उन राक्षसों का वध कर उनके अत्याचारों से सभी को मुक्त कराया और तभी से भगवान शिव को "त्रिपुरारि" व "त्रिपुरांतक" भी कहा जाने लगा। इससे विजय दिवस की ख़ुशी में देवताओं ने स्वर्ग लोक में दीप जलाकर दीपोत्सव मनाया था तभी से कार्तिक पूर्णिमा को देवदिवाली मनायी जाने लगी। माना जाता है कि आज भी इस दिन भगवान शिव धरती पर आते हैं।

    

      

देव दिवाली - काशी

काशी में देवदिवाली उत्सव मनाये जाने के सम्बन्ध में मान्यता है कि राजा दिवोदास ने अपने राज्य काशी में देवताओं के प्रवेश को प्रतिबन्धित कर दिया था, कार्तिक पूर्णिमा के दिन रूप बदल कर भगवान शिव काशी के पंचगंगा घाट पर आकर गंगा स्नान कर ध्यान किया, यह बात जब राजा दिवोदास को पता चला तो उन्होंने देवताओं के प्रवेश प्रतिबन्ध को समाप्त कर दिया। इस दिन सभी देवताओं ने काशी में प्रवेश कर दीप जलाकर दीपावली मनाई थी। देवदिवाली एक दिव्य और अद्भुत त्योहार है। इस दिन प्रबुद्ध मिट्टी के लाखों दीपक गंगा नदी के पवित्र जल पर तैरते है। एक समान संख्या के साथ विभिन्न घाटों और आसपास की इमारतों की सीढ़ियों पर सूर्यास्त के समय दीये प्रज्वलित किये जाते है। इस अवसर पर यह अद्भुत नजारा होता है और सबमें एक अलग ही धार्मिक उत्साह देखने को मिलता है। देव दिवाली का आयोजन सबसे पहले बनारस के पंचगंगा घाट पर सत्र 1915 में हजारों की संख्या में दिये जलाकर की गई थी। नारायण गुरु नाम के एक सामाजिक कार्यकर्ता ने युवाओं की टोली बनाकर कुछ घाटों से इसकी शुरूआत की थी, इसके बाद धीरे-धीरे इस पर्व की लोकप्रियता बढने लगी।   

देवदिवाली पूजा विधि (Dev Diwali Puja Vidhi) -   
- देवदिवाली के दिन सूर्य उदय से पहले गंगा स्‍नान करें करना चाहिए। गंगा में स्‍नान करने से पुण्‍य की प्राप्‍ति होती है। अगर गंगा स्‍नान संभव न हो तो घर पर ही नहाने के पानी में थोड़ा गंगाजल मिलाकर स्‍नान कर लें।   

- शाम के समय भगवान गणेश, शिव शंकर और विष्‍णु जी की विधिवत् पूजा करनी चाहिए। उन्हें फूल, घी, नैवेद्य और बेलपत्र अर्पित करें।   

- इसके बाद प्रभु शिव के मन्त्र "ॐ नम: शिवाय" का जाप करना चाहिए और महा मृत्युंजय मन्त्र का जाप करे -   
"ॐ त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम |   
उर्वारुकमिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मामृतात "   

- इसके बाद भगवान विष्‍णु को पीले फूल, नैवेद्य, पीले वस्‍त्र और पीली मिठाई अर्पित करें। मान्यताओं के अनुसार इसी दिन भगवान विष्णु ने मतस्यावतार लिया था।   

- अब इन मंत्रों का जाप करें- "ॐ नमो नारायण नम: नमो स्तवन अनंताय सहस्त्र मूर्तये, सहस्त्रपादाक्षि शिरोरु बाहवे। सहस्त्र नाम्ने पुरुषाय शाश्वते, सहस्त्रकोटि युगधारिणे नम: ।। "  

- इन मंत्रों के जाप के बाद भगवान गणेश, शिव और विष्‍णु की आरती करें।   

- गंगा घाट जाकर दीपक जलाएं। अगर गंगा घाट जाना संभव न हो तो घर के अंदर और बाहर दीपक जलाएं।   

- तुलसी जी के पास दीपक जलाएं।

    

      

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