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महाशिवरात्रि का महत्व | महा शिवरात्रि का व्रत | भगवान शिव

भारतीय हिंदू संस्कृति, परंपराओं एवं सनातन धर्म में महाशिवरात्रि के पर्व का अत्यधिक महत्व है। इस दिन भगवान शिव की विशेष पूजा एवं आराधना की जाती है। हमारे देश के सांस्कृतिक मान्यता के अनुसार 33 करोड़ देवी देवताओं में भगवान श्री शिव शंकर को ही सर्वशक्तिमान, सर्व व्यापक एवं सभी देवी देवताओं का देव माना जाता है। महादेव सौम्य एवं रौद्र दोनों ही रूप हैं। माना जाता है कि सृष्टि की उत्पत्ति एवं संहार के अधिपति भगवान शिव हैं। त्रिदेवों में भगवान शिव संहार के देवता माने गए हैं। यद्यपि शिव का अर्थ कल्याणकारी माना गया है, लेकिन लय एवं प्रलय दोनों ही उनके अधीन हैं। अर्थात सृष्टि की उत्पत्ति एवं विनाश दोनों ही महादेव के अधीन है। त्रिदेव ब्रह्मा विष्णु और महेश तीनों ही शिव रूप हैं। आकाश और पाताल तीनों लोक के आदि देव महादेव ही हैं।   

"शिव का शाब्दिक अर्थ होता है - कल्याण एवं रा का अर्थ है - दानार्थ धातु, इन्हीं दोनों के मेल से शिवरात्रि शब्द बना है जिसका अर्थ है वह रात्रि जो सुख एवं कल्याण देती है। मान्यता है कि सृष्टि का प्रारंभ इसी दिन से हुआ था।"  

शिव पुराण में उल्लेखित एक मान्यता यह भी है कि भगवान शिव का विवाह देवी पार्वती के साथ इसी दिन हुआ था। महाशिवरात्रि के दिन ही भगवान महादेव वैराग्य को त्याग कर गृहस्थ जीवन में माता पार्वती के साथ विवाह करके प्रवेश किया था। भगवान महादेव के भक्त शिवरात्रि के दिन को विवाह के उत्सव की तरह मनाते हैं। भगवान शिव को मानने वालों के अनुसार जिस कन्या अथवा युवक का विवाह संपन्न नहीं हो रहा है अथवा विवाह में कोई बाधा आ रही है ऐसे कन्या एवं युवक को भगवान श्री शिव शंकर की पूजा अर्चना करनी चाहिए एवं सोमवार के दिन भगवान शिव शंकर के लिए व्रत उपवास रखकर विधि विधान से उनकी पूजा करनी चाहिए ऐसा करने से जल्द से जल्द विवाह कार्य संपन्न हो जाता है। अविवाहित युवक एवं युवतियों को भी भगवान शिव की आराधना करने से योग्य जीवनसाथी की प्राप्ति होती है।  

महाशिवरात्रि का व्रत करने से सुहागन स्त्रियों के वैवाहिक जीवन में खुशियां आती हैं एवं उनका सुहाग अखंड रहता है एवं जो व्यक्ति इस दिन विधि विधान से महादेव की पूजा अर्चना करते हैं उनका अभिषेक करते हैं वे व्यक्ति काम क्रोध मद लोभ आदि के बंधनों से मुक्त हो जाते हैं।  
 

 

   

भगवान शिव
महाशिवरात्रि की पौराणिक कथा -

शिवरात्रि को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। जिनमें से एक कथा के अनुसार, माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठिन तपस्या की थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार इसके फलस्वरूप फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। यही कारण है कि महाशिवरात्रि के दिन को बेहद पवित्र माना जाता है।  

वहीं गरुड़ पुराण में वर्णित एक कथा अनुसार, इस दिन एक निषादराज अपने कुत्ते के साथ शिकार खेलने गया किन्तु उसे कोई शिकार नहीं मिला। वह थककर भूख-प्यास से परेशान हो एक तालाब के किनारे गया, जहां बिल्व वृक्ष के नीचे शिवलिंग स्थापित था। अपने शरीर को आराम देने के लिए उसने कुछ बिल्व-पत्र तोड़े, जो शिवलिंग पर भी गिर गए। अपने पैरों को साफ करने के लिए उसने उनपर तालाब का जल छिड़का, जिसकी कुछ बून्दें शिवलिंग पर भी जा गिरीं। ऐसा करते समय उसका एक तीर नीचे गिर गया; जिसे उठाने के लिए वह शिव लिंग के सामने नीचे को झुका। इस प्रकार शिवरात्रि के दिन शिव-पूजन की पूरी प्रक्रिया उसने अनजाने में ही पूरी कर ली। मृत्यु के बाद जब यमदूत उसे लेने आए, तो शिव के गणों ने उसकी रक्षा की। कहा जाता है कि भगवान शिव अनजाने में किये भक्तिपूर्ण कार्य पर भी अपने भक्त को इतना फल देते हैं तो विधि-विधान से पूजा करने वाले भक्तों को अनंत फल देते हैं।  

 व्रत एवं पूजन विधि -  
- प्रातःकाल को स्वच्छ होकर धुले वस्त्र धारण करें, फिर पूजा करने से पहले अपने माथे पर त्रिपुंड लगाएं। इसके लिए चंदन को तीनों उंगलियों पर लगाकर माथे के बायीं तरफ से दायीं तरफ की तरफ त्रिपुंड लगाएं।   
- श्रद्धा सहित व्रत रखकर मंदिर में अथवा घर पर ही शिव पार्वती की पूजा करें एवं स्वस्ति-पाठ करें, स्वस्ति-पाठ: "स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवा:, स्वस्ति ना पूषा विश्ववेदाः:, स्वस्ति न स्तारक्ष्यो अरिष्टनेमि स्वस्ति नो बृहस्पति र्दधातु।"  
 - पत्र, पुष्प तथा सुन्दर वस्त्रों से मंडप तैयार करके वेदी बनाकर उस पर जल भरकर कलश स्थापित करके कलश पर शिव-पार्वती की स्वर्ण प्रतिमा और नंदी की चांदी की प्रतिमा स्थापित करनी चाहिये। यदि मूर्ति न बन सके तो मिट्टी से शिवलिंग बना ले। इस पर चंदन का लेप करें। उसके बाद गोबर के उपले अथवा लकड़ी, घी, तिल, चावल आदि से हवन करें।  
- गंगाजल, बिल्व पत्र, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, पुष्प, रोली, मोली, चावल, चन्दन, दूध, दही, घी, शहद, कमल गुहा, धतूरे के फल, आक के फल, पुष्प पत्र का भोग शिवजी को अर्पित करके पूजन करें।   
- यदि आप रुद्राभिषेक अथवा, लघु रूद्र, महारूद्र का विशेष अनुष्ठान कर रहे हैं, तब नवग्रह, कलश, षोडश-मातृका का भी पूजन करना चाहिए। मान्यता है कि इस दिन रुद्राभिषेक करने से भगवान शंकर की अत्यन्त कृपा होती हैं।   
- महादेव के गले में विराजमान सर्प का भी लघु पूजन करें।  
- विधि विधान से पूजा संपन्न कर व्रत कथा जरूर सुनें।  
- महाशिवरात्रि व्रत में चारों पहर में पूजन किया जाता है। संभव हो तो इस दिन शिव मंदिर जरूर जाएं। व्रत करने वाले व्यक्ति को रात्रि में भी शिवजी का भजन करके जागरण करना चाहिए। इस दिन पति - पत्नी को एक साथ शिवजी की पूजा करनी चाहिए। रात्रि भर जागरण में महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें - "ऊं त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् । उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ।।"  
- अंत में जागरण के पश्चात व्रत खोलें।   
 

 

   

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