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करवा चौथ हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। यह पर्व भारत के पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश और राजस्थान में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।
करवा चौथ का त्योहार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। इसे "करकचतुर्थी" भी कहा जाता है। इस दिन विवाहित स्त्रियाँ अपने पति की दीर्घायु के लिए व्रत रखती है। सौभाग्यवती स्त्री किसी भी आयु, जाति, वर्ण, संप्रदाय की हो, अपने पति की आयु, स्वास्थ्य व सौभाग्य की कामना के लिए यह व्रत करती है। यह व्रत सौभाग्य और शुभ संतान देने वाला हैं। इस व्रत में महिलाएं पूरे दिन निर्जला रहती हैं और शाम को चाँद की पूजा के बाद व्रत खोलती हैं।
सावित्री के त्याग और फल से ही शुरू हुई थी करवाचौथ व्रत की प्रथा, अन्न जल त्याग यमराज से पति (सत्यवान) के प्राण वापस लाई थी। तभी से सभी सुहागिनें अन्न जल त्यागकर अपने पति के लम्बी उम्र के लिए इस व्रत को श्रद्धा के साथ करती हैं। इसके अलावा महाभारत काल में इसके व्रत के संकेत मिलते है। महाभारत से संबंधित पौराणिक कथा के अनुसार पांडव पुत्र अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी पर्वत पर गये। दूसरी ओर बाकी पांडवों पर कई प्रकार के संकट आ जाते हैं। तब द्रौपदी भगवान श्रीकृष्ण से इसका उपाय पूछती हैं तो वह कहते हैं कि यदि वह कार्तिक कृष्ण चतुर्थी के दिन करवाचौथ का व्रत करें तो इन सभी संकटों से मुक्ति मिल सकती है। द्रौपदी विधि विधान सहित करवाचौथ का व्रत किया था जिससे उनके समस्त कष्ट दूर हो गये।
करवा चौथ व्रत के नियम -
❀ यह व्रत सूर्योदय से पहले से शुरू होता है जी चाँद निकलने तक रखा जाता है और चन्द्रमा को अरख दे कर व्रत को खोला जाता है।
❀ व्रत के दिन प्रातः स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोलकर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें- 'मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।'
❀ इस व्रत में सूर्योदय से पहले सरगी खाने का रिवाज है, जहां घर घर की महिलाये ४ बजे उठकर सरगी खाती है जो व्रत के लिए दिनभर ऊर्जा देती है। यह रिवाज कुछ जगह पर ही है, इसलिए अपने परंपरा के अनुसार ही व्रत रखना चाहिए।
❀ दीवार पर गेरू से फलक बनाकर पिसे चावलों के घोल से करवा चित्रित करें। इसे वर कहते हैं। चित्रित करने की कला को करवा धरना कहा जाता है।
❀ इस व्रत में महिलाएं मेहंदी लगाती है और सोलह श्रृंगार करके पूजा करनी चाहिए।
❀ पीली मिट्टी से गौरी बनाएं और उनकी गोद में गणेशजी बनाकर बिठाएं। शाम के समय चंद्रोदय से पहले सम्पूर्ण शिव-परिवार (शिव जी, पार्वती जी, नंदी जी, गणेश जी और कार्तिकेय जी) और चौथ माता की पूजा की जाती है।
❀ पूजन के समय देव-प्रतिमा का मुख पश्चिम की तरफ़ होना चाहिए तथा स्त्री को पूर्व की तरफ़ मुख करके बैठना चाहिए।
❀ पूजा में एक मिट्टी का करवा जरुरी है, जिसमे जल भरना है और करवे में 1 काचरा, मूंग के दाने, चवले की दाल या चवले की फली, पुष्प, गुड़ आदि 5 वस्तु डाले | इसके बाद लाल कपडे से करवे का मुँह ढ़ककर मोली से बांध दे |
❀ गौरी-गणेश और चित्रित करवा की परंपरानुसार पूजा कर, पति की दीर्घायु की कामना करें और विनती करे -
"नमः शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभाम्। प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे॥"
❀ पूजा के बाद चौथ माता, विनायक जी और लपसी तपसी की कहानी सुने।
❀ चंद्रोदय के बाद चाँद को अरख दे, चंद्रमा को छलनी से देखे और फिर पति को भी उसी छलनी से देखे | कुछ जगह पर छलनी से देखने का रिवाज नहीं है और व्रत भी सास पानी पिलाकर व्रत खुलवाती है।
❀ करवे में से पानी पीते समय यह बोले - "जल धाई सुहाग नी धाई "। 7 बार पानी पिए और यह बोले। उसके बाद भोजन ले सकते है।
करवा चौथ में सरगी -
पंजाब में करवा चौथ का त्योहार सरगी के साथ आरम्भ होता है। यह करवा चौथ के दिन सूर्योदय से पहले किया जाने वाला भोजन होता है। जो महिलाएँ इस दिन व्रत रखती हैं उनकी सास उनके लिए सरगी बनाती हैं। शाम को सभी महिलाएँ श्रृंगार करके एकत्रित होती हैं और फेरी की रस्म करती हैं। इस रस्म में महिलाएँ एक घेरा बनाकर बैठती हैं और पूजा की थाली एक दूसरे को देकर पूरे घेरे में घुमाती हैं। इस रस्म के दौरान एक बुज़ुर्ग महिला करवा चौथ की कथा गाती हैं। भारत के अन्य प्रदेश जैसे उत्तर प्रदेश और राजस्थान में गौर माता की पूजा की जाती है। गौर माता की पूजा के लिए प्रतिमा गाय के गोबर से बनाई जाती है।
करवा चौथ के व्रत में छलनी का महत्व -
करवा चौथ के व्रत में छलनी का विशेष महत्व है। इस दिन पूजा की थाली में सुहागिन महिलाएं पूजा की सामग्री के साथ छलनी भी रखती है। चाँद निकलने के बाद सुहागिने छलनी में पहले दीपक रखकर चाँद को देखती हैं और फिर अपने पति को देखती हैं। छलनी में चाँद और पति का चेहरा देखकर यह व्रत पूरा करने के पीछे यह है कि मान्यता है कि चंद्रमा भगवान ब्रह्मा का स्वरूप होता है और चाँद को लंबी आयु का वरदान मिला हुआ है। चाँद में सुंदरता, शीतलता, प्रेम, प्रसिद्धि और लंबी आयु जैसे गुण होते हैं इसीलिए सभी महिलाएं चाँद को छलनी से देखकर ये कामना करती हैं कि ये सभी गुण उनके पति में भी आ जाएं।
उद्यापन -
अटल सुहाग के देने वाली करवा चौथ माता सभी तेरह चौथ में सबसे बड़ी है। जब लड़की की शादी हो जाती है तब से इसी चौथ से व्रत प्रारम्भ किया जाता है। लड़की के मायके से शक़्कर गिलास या लोटे में भरकर आती है। चौथ का उद्यापन करने के लिए 13 सुहागिनो को भोजन करवाकर सुहाग का सामान देते है। यदि भोज नही करना है तो घर पर भोजन भेज सकते है और नही तो 13 घेवर भी कल्प सकते है। साडी उस पर सुहाग का सामान(सिंदूर, बिंदी, काजल, मेहंदी, चूड़ी या कंगन आदि), सोने का लोंग, चाँदी की पायल और बिछिया सास या ननद को देवे।
यह भी पढ़े -
❀ करवा चौथ व्रत कथा | Karva Chauth Vrat Katha
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