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'दिवाली' का पर्व हर्षोल्लास का पर्व है। हर कोई इसका बडे़ ही बेसब्री से इंतज़ार करता है। चाहे नए कपड़े लेने हो या कोई जेवर, घर मे कोई चीज लानी हो या करना हो रीनोवेशन, एक ही जवाब मिलता है, दिवाली मे करेंगे।
'दीपावली' उत्साह और ऊर्जा से भरा, असंख्य दियो का खुशियों भरा त्योहार है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अमावस्या को आने वाला यह त्योहार भारत में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। धनतेरस, रूप चौदस, दिवाली, गोवर्धन पूजा और भाई दूज ऐसे पांच दिनों तक चलने वाले इस त्योहार की तैयारियां बड़े दिनों से शुरू हो जाती है। जिसमें सबसे पहले पूरे घर की सफाई की जाती है। फिर नाना प्रकार के फराल बनाए जाते हैं। दिवाली के दिन शाम को लक्ष्मी जी की पूजा करके पूरे घर में दिए जलाए जाते हैं। भारत में त्योहारों के साथ-साथ खानपान को बड़ा ही महत्व दिया गया है। अलग-अलग ॠतुओं में आने वाले सभी त्योहारों में बनने वाले व्यंजन उस मौसम में हमारे शरीर के लिए बड़े ही लाभदायक होते हैं । और घर में बने प्यार भरे पकवानों के ख्याल से ही मुंह में पानी आ जाता है।
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दिवाली के दिन से कुछ दिनों तक सगे संबंधी, रिश्तेदार, आत्मजन सभी अपनों से बड़ों को मिलने जाते हैं, उनका आशीर्वाद लेने जाते हैं । राम-राम, जय श्री कृष्णा इन शब्दों से एक दूसरे को अभिवादन करते हैं। उसे 'रामा सामा' कहते हैं। पहले के लोग मेल मिलाप में, अपनों से भेट करने में बड़ी ही रुचि रखते थे। इससे रिश्तो में मजबूती और घनिष्ठता बढ़ जाती है। समय निकाल कर एक दूजे को मिलने जाना उनके प्रति आदर भाव एवं प्रेम भाव को जताने का एक तरीका है।
पर आज के समय में दिवाली जैसा त्योहार घर की चार दीवारों तक ही सीमित रह गया है। मिट्टी के दियो की जगह विदेशी लाईटिंग सीरीज ने तो डाएटींग के नाम पर घर की शुद्धता में बने हुए फराल की लज्जत डोमिनोज ने ले ली है। कितना विरोधाभास है ना !!
आनेवाली पीढ़ी को इन बातों को समझना होगा और इसमें हम ही उनकी मदद कर सकते हैं, इन सभी बातों का अनुभव करवाके। भारत देश के इतिहास और संस्कृति ने हमें रिश्तो की बड़ी ही अनोखी धरोहर दी है। अगर हम इस 'स्नेह भेट' के चलन को यूं ही जारी रखें तो दीवाली में फिर से पहले जैसी रौनक आ जाएगी। और हर दिवाली हमारे जीवन में खुशियों भरा उजाला लाएगी।
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