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जगन्नाथ रथयात्रा | उत्कल प्रदेश के श्री जगन्नाथ भगवान | ओडिशा

उत्कल प्रदेश के प्रधान देवता श्री जगन्नाथ जी की रथयात्रा आषाढ़ शुक्ल पक्ष द्वितीया को जगन्नाथपुरी में आरम्भ होती है और शुक्ल पक्ष की ग्यारस को रथयात्रा का समापन होता है। पुरी पूर्वी भारत के उड़ीसा (ओडिशा) प्रान्त में है जिसे पुरुषोत्तम पुरी, शंख क्षेत्र, श्रीक्षेत्र, शाक क्षेत्र, नीलांचल और नीलगिरि  के नाम से भी जाना जाता है | जो प्रभु श्री जगन्नाथ जी की मुख्य लीला-भूमि है। श्री जगन्नाथ जी पूर्ण परात्पर भगवान है और श्रीकृष्ण उनकी कला का ही एक रूप माने जाते है इसलिए पुरी स्थित जगन्नाथ जी का मंदिर भगवान विष्णु के कृष्ण अवतार को समर्पित है। वैष्णव धर्म के अनुसार श्री जगन्नाथ जी राधा रानी और श्रीकृष्ण की युगल मूर्ति के प्रतीक है | रथयात्रा में भगवान विष्णु के दशावतारों की पूजा होती है |  

शास्त्रों के अनुसार रथयात्रा की शुरुआत बहन सुभद्रा के द्वारिका नगर भ्रमण की इच्छा पूर्ण करने के उद्देश्य से हुई थी | तब बहन सुभद्रा, श्रीकृष्ण व बलराम तीनो अलग - अलग रथों में बैठकर अपनी मौसी के घर जनकपुर गए थे | तब से आज तक प्रति वर्ष भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलराम और छोटी बहन सुभद्रा के साथ हर साल अपनी मौसी के घर जाते हैं। आज भी तीनों की मूर्तियों को पुरी के जगन्नाथ मंदिर से रथ पर सवार करके उनकी मौसी के घर यानी गुंडीचा मंदिर ले जाया जाता है।  
 

जगन्नाथ रथयात्रा

रथ की विशेषता - 
- कहा जाता है क‍ि भगवान जगन्नाथजी की रथयात्रा का पुण्य सौ यज्ञों के समान होता है। रथयात्रा एक ऐसा पर्व है जिसमें भगवान जगन्नाथ अपने भक्तों के बीच आते हैं और उनके दु:ख-सु:ख में सहभागी होते हैं।  

- भगवान जगन्नाथ रथयात्रा के लिए हर साल 3 रथ बनाए जाते हैं, जिनकी तैयारी हर साल बसंतपंचमी से शुरू हो जाती है। तीनों रथ नारियल और नीम की पवित्र एवं परिपक्व काष्ठ (लकड़ियों) से तैयार किये जाते हैं, जिसे ‘दारु’ कहते हैं। रथ बनाने में सिर्फ लकड़ियां ही इस्तेमाल की जाती हैं, कोई धातु जैसे कील आदि नहीं लगाई जाती है। रथ बनाने वाले सेवक को "गरबाड़ू" कहा जाता है।  

- तीनों रथों में पहिये से लेकर शिखर के ध्वजदंड तक 34 अलग-अलग हिस्से होते हैं। रथों के निर्माण में तक़रीबन हजारों क्यूबिक फीट लकड़ीयो का इस्तेमाल होता है। यह लकड़ी नयागढ़, खुर्दा, बौध इलाके के वनों से हजारों पेड़ों को काटकर लायी जाती है। इसके लिए इससे दोगुने पौधे भी लगाए जाते हैं। 

- जब तीनों रथ तैयार हो जाते हैं, तब "छर पहनरा" नामक एक अनुष्ठान किया जाता है। जिसमे पुरी के गजपति राजा पालकी में यहां आते हैं और इन तीनों रथों की विधिवत पूजा करते हैं | "सोने की झाड़ू" से रथ मण्डप और रास्ते को साफ़ करते हैं। 

- रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलराम और छोटी बहन सुभद्रा तीनों अलग-अलग रथों पर सवार होते हैं। जिसमे सबसे आगे बलराम का रथ "ताल ध्वज" जिसका रंग लाल और हरा होता है, फिर बहन सुभद्रा का रथ "दर्पदलन" या "पद्म ध्वज" जो काले या नीले और लाल रंग का होता है और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ का रथ "नन्दीघोष" या "गरुड़ध्वज" चलता है। जिसका रंग लाल और पीला होता है। रथों को उनके रंग और ऊंचाई से आसानी से पहचाना जा सकता है। 

- भगवान जगन्नाथ का नन्दीघोष रथ तकरीबन 45.6 से 65 फीट ऊंचा और चौड़ा होता है, जिसमें 7 फीट व्यास के 18 पहिये होते है, बलराम का तालध्वज रथ और देवी सुभद्रा का दर्पदलन रथ नन्दी घोष से छोटा होता है, जिसमे 16 और 14 पहिये लगे होते है। 

- आषाढ़ माह की शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि को रथयात्रा आरम्भ होती है। ढोल, नगाड़ों, तुरही, शंखध्वनि और जयनाद के बीच भक्तगण इन रथों को रस्सी से खींचते हैं। माना जाता हैं कि रथ खींचने वाले महाभाग्यवान होते है और जीवन मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाती एवं उनको मोक्ष की प्राप्ति होती है। 

- भगवान जगन्नाथ के लिए पूरी के जगन्नाथ मंदिर में 752 चूल्हों पर प्रसाद बनाया जाता है| इसलिए यह दुनिया की सबसे बड़ी रसोई का रूप है | रथयात्रा के नौ दिनो तक के उत्सव में यहां के चूल्हे जलाये नही जाते हैं तब सारा भोग गुंडिचा मंदिर में बनाया जाता है | वहाँ भी पुरी मंदिर के समान 752 चूल्हों की ही रसोई है |  

- भगवान जगन्नाथपुरी की यह लोकप्रिय रथयात्रा उत्सव जगन्नाथपुरी के अलावा भारत के कुछ प्रांतो जैसे - गुजरात, असम, जम्मू, द‍िल्ली, आंध्र प्रदेश, अमृतसर, भोपाल, बनारस और लखनऊ में भी मनाया जाने लगा है। इसके अलावा बांग्लादेश, सैन फ्रांस‍िस्को और लंदन आदि देशो में भी रथयात्रा न‍िकाली जाने लगी है। 
 

  

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