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गणपति जी विसर्जन के साथ साथ इस दिन भगवान विष्णु जी के अंनत स्वरूप की पूजा अर्चना भी की जाती है। अनंत चतुर्दशी पर भगवान विष्णु, यमुना नदी और शेषनाग जी की पूजा की जाती है।शास्त्रों के अनुसार अनंत चतुर्दशी के दिन व्रत रखते है और अनंत सूत्र बांधते है जिससे जीवन के सभी कष्टों और रोगो से मुक्ति मिलती है। अनंत राखी के समान रूई या रेशम के कुंकू या हल्दी के रंग में रंगे धागे होते हैं और उनमें चौदह गांठे होती हैं जिसे पुरुष दाएं तथा स्त्रियां बाएं हाथ में अनंत धारण करती हैं। अनंत चतुर्दशी व्रत के नियमों का पालन कर मनवांछित फल को प्राप्त कर सकते है।
अनंत चतुर्दशी का महत्व -
पौराणिक मान्यता के अनुसार महाभारत काल में इस व्रत का विवरण मिलता है जहाँ से अनंत चतुर्दशी व्रत की शुरुआत हुई थी। कौरवों से जुआ हारने के बाद पांडव वन-वन भटक रहे थे तब श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा- हे धर्मराज! जुआ खेलने के कारण देवी लक्ष्मी आप से रुष्ट हो गयी हैं, उन्हें प्रसन्न करने के लिए आपको अपने भाइयों के साथ अनंत चतुर्दशी का व्रत करना चाहिए। यह भगवान विष्णु का दिन माना जाता है। अनंत भगवान ने सृष्टि के आरंभ में चौदह लोकों तल, अतल, वितल, सुतल, तलातल, रसातल, पाताल, भू, भुवः, स्वः, जन, तप, सत्य, मह की रचना की थी| इन लोकों का पालन और रक्षा करने के लिए वह स्वयं भी चौदह रूपों में प्रकट हुए थे, जिससे वे अनंत प्रतीत होने लगे। इसलिए अनंत चतुर्दशी का व्रत भगवान विष्णु को प्रसन्न करने और अनंत फल देने वाला माना गया है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने के साथ-साथ यदि कोई व्यक्ति श्री विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करता है, तो उसकी समस्त मनोकामना पूर्ण होती है। धन-धान्य, सुख-संपदा और संतान आदि की कामना से यह व्रत किया जाता है।
अनंत चतुर्दशी की पूजा विधि -
अग्नि पुराण के अनुसार अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा की जाती है, इस दिन जल्दी उठ कर सबसे पहले स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करके हाथ में जल लेकर अनंत चतुर्दशी व्रत एवं पूजा का संकल्प लेते है। व्रत का संकल्प लेने के लिए इस मंत्र 'ममाखिलपापक्षयपूर्वकशुभफलवृद्धये श्रीमदनन्तप्रीतिकामनया अनन्तव्रतमहं करिष्ये' का उच्चारण करते है। इसके पश्चात पूजा स्थान को साफ करके मंदिर में कलश स्थापना करे और भगवान विष्णु की मूर्ति या कुश से बनी सात फणों वाली शेष स्वरुप भगवान अनन्त की मूर्ति लगाये, अब रेशम या कपास से बने धागे को कुमकुम, केसर और हल्दी से रंगकर इसमें 14 गांठें लगाकर इसे कच्चे दूध में डुबोकर 'ऊँ अनन्ताय नम:' मंत्र से भगवान विष्णु जी को अर्पण करे और पूजा शुरू करें। अब आम पत्र, नैवेद्य, गंध, पुष्प, धूप, दीप आदि भगवान अनंत की पूजा करें। भगवान विष्णु को पंचामृत, पंजीरी, केला और मोदक प्रसाद में चढ़ाएं। कपूर या घी के दीपक से भगवान विष्णु की आरती करें और अंत में कथा सुने या पढ़े।
इस दिन पूजा करते समय इस मंत्र का करें जाप -
अनंत संसार महासुमद्रे मग्रं समभ्युद्धर वासुदेव।
अनंतरूपे विनियोजयस्व ह्रानंतसूत्राय नमो नमस्ते।।
अनंत चतुर्दशी व्रत के नियम -
- अंनत चतुर्दशी का व्रत करने वाले साधक को ब्रह्ममुहूर्त में उठना चाहिए और स्नान आदि करने के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
- इस दिन भगवान विष्णु, माता यमुना और शेषनाग जी की पूजा की जाती है, इसलिए इनकी पूजा अवश्य करें।
- अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु के साथ कलश के रूप में माता यमुना और दूर्वा के रूप में शेषनाग जी को स्थापित करते है।
- अनंत रेशम या कपास से बना हुआ धागा होता है, जिसे रक्षासूत्र भी कहा जाता है। इस दिन अनंत सूत्र भी धारण किया जाता है, इसलिए पूजा के समय 14 गांठों वाला अनंत धागा भगवान विष्णु के चरणों में अवश्य रखें, इसके बाद ही इसे धारण करें।
- अनंत धागे को साल भर अवश्य बांधना चाहिए, यदि आप ऐसा नहीं कर सकते तो कम से कम 14 दिन तक जरूर बांधे।
- अनंत चतुर्दशी के दिन कथा अवश्य सुननी और पढ़नी चाहिए।
- अनंत चतुर्दशी के दिन यदि व्रत किया है तो मीठा भोजन ही करें इस दिन नमक का सेवन बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए।
- इस दिन आपको सिर्फ एक ही समय भोजन करना चाहिए, क्योंकि अनंत चतुर्दशी के व्रत में केवल पारण के समय ही भोजन किया जाता है।
- अनंत चतुर्दशी के दिन आपको निर्धन व्यक्ति और ब्राह्मण को भोजन कराकर अपने सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा अवश्य देनी चाहिए।
- इस दिन झूठ बिल्कुल भी नहीं बोलना चाहिए और न हीं किसी की निंदा करनी चाहिए।
- इस दिन बुरे विचारो के साथ साथ माँस, मदिरा और धूम्रपान नही करना चाहिए।
- व्रत के दिन भक्ति और शुभ कामो में व्यस्त रहे जिससे व्रत का फल आपको मिले।
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