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ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है?
कई बातें ऐसी हैं जो कही नहीं जाती, कई किस्से ऐसे हैं जो दोहराए नहीं जाते, कई घटनाएं ऐसी हैं जो देखी नहीं जाती और कई चित्र ऐसे हैं जो कभी भुलाए नहीं जातेl आखिर ऐसा क्यों हैं कि आखिर जिन बातों को हम कहना चाहे तो कहने की हिम्मत नहीं हैं या फिर किसी को फुरसत नहीं हैं, आखिर क्या है वो किस्सा जिन्हें भूले से भी दोहराने का या देखने सुनने का मन तो छोड़िए एक सच्चे इंसान का स्वप्न भी नहीं हैं कौन सी हैं वे घटनाएं जो दिल दहला देती हैं और कौन से हैं वे चित्र जो आज भी जेहन में उतरते हैं तो खुद पर इंसान कहने में शर्म आती है और यह बात सच भी है क्योंकि यह देश आज वह देश नहीं रहा जो "यत्र नार्यस्तु पूज्यंते" का भाव रखता था, यह मुल्क वह मुल्क नहीं जो बच्चों में भी भगवान का रूप देखता था l यह दुनिया वो दुनिया नहीं रही जिसकी हम कल्पना कर सकें l याद करो वो दृश्य जब अखबार में एक बच्चे ने मरते समय इस दुनिया के लोगों के लिए कहा था कि “मैं भगवान से आप सभी की शिकायत करूंगा और कहूंगा भगवान ये लोग बहुत गंदे हैं...” याद करिए वो दृश्य जब छोटी छोटी आसिफा जैसी न जाने कितनी अनगिनत बच्चियों को भी एक हैवान अपनी हैवानियत का शिकार बनाता है आज बच्ची छोटी हो या बड़ी, अबोध हो या वयस्क, समझदार हो चाहे उम्र के पड़ाव को पार करने वाली एक वृद्धा इस दुनिया में दरिंदों की नजर में वह सिर्फ एक शिकार है जिसे वे अत्याचार करके, बहला फुसलाकर या अन्य षडयंत्रों के माध्यम से अपनी हवस का शिकार बनाने में जरा भी नहीं चूकते l
हमें दामिनी याद है, हमे निर्भया याद है, आसिफा याद है हैदराबाद की डॉक्टर रेड्डी याद है और भी न जाने कितने नाम है हाल ही में कोलकाता की डॉ. मौमिता देबनाथ पर की गई वारदात को सुनकर दिल दहल जाते हैं, मगर हम कुछ दिन ही आंदोलन कर उनके लिए न्याय की मांग कर, उनके लिए प्रदर्शन कर फिर अपनी अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होकर अपनी दुनियादारी में मशगूल हो जाते हैं।
राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो की रिपोर्ट देखें तो यह स्पष्ट होता है कि भारत में हर 20 मिनट में महिला के साथ बलात्कार होते हैं और बाल शोषण की रिपोर्ट देखें तो हर तीन में से दो बच्चो को शोषण का शिकार बनाया जाता हैl वृद्धों की स्थिति देखें तो 83 प्रतिशत बुजुर्ग यह मानते हैं कि समाज में दुर्व्यवहार प्रचलित हैंl
आजादी मिले 75 साल से अधिक हो गए सरकारें अमृत महोत्सव का आयोजन कर रहे रहीं हैं मगर आज देश का कोई कोना ऐसा नहीं जहां हम कह सकें कि हमारी नारी शक्ति सुरक्षित है, हमारी बेटियों की अस्मिता सुरक्षित है तो हम कैसे कहें कि हमारी आजादी पूरी है।
आज भी देश का भविष्य देश की सड़कों पर ठोकर खा रहा है, देश का अन्नदाता किसान खुद का वजूद बचाने के लिए दिल्ली की सड़कों पर बैठता है, आवाज उठाता है, कृषि प्रधान यह देश कुर्सी प्रधानता के गुण गाता है। जैसा कि दुष्यंत कुमार ने कभी कहा था देश की दुर्व्यवस्था पर - "कल नुमाइश में मिला दिया था मुझे चिथड़े पहने हुए, मैंने पूछा नाम तो बोला मैं हिंदुस्तान हैंl" आज व्यवस्था के नाम पर यह देश बकौल अदम गोंडवी साहब के शब्दों में - "काजू भुने प्लेट में, व्हिस्की गिलास में, उतरा है रामराज्य विधायक निवास में" जैसा है l
कभी सोचता हूं कि हम जा किधर दिशा में रहे हैं आखिर कौन सी अंधी दौड़ में जी रहे हैं जिनकी चीख पुकार, जिनका दर्द महसूस तो कर ही सकते हैं कुछ बदल सकते हैं l
सोचिए कितने शर्म सोचिए कितनी शर्मिंदगी की बात है कि हमारी नीच सोच के बारे मे हरिशंकर परसाई जी ने लिखा "बलात्कार को पाशविक क्यों कहते हैं, जबकि जानवर या पशु बलात्कार नहीं करते यहां तक सुअर भी नहीं करते बल्कि मनुष्य करते हैं l"
ये शब्द व्यंग्य नहीं बल्कि तमाचा है जाहिलो की सोच पर अगर इन सब चीजों को देखकर भी अगर समाज न बदले, लोग न समझे तो फिर एक बात सोचना जरूर वह ये कि..... ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है?
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