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इस कड़ी में अगला नाम है डोंगरगढ़ की माता बमलेश्वरी का मंदिर जो छत्तीसगढ़ के 5 शक्तिपीठों में आता है। माता की महिमा अपरंपार है कहा जाता है कि ममतामई माँ दर्शन मात्र से भक्तों के सारे कष्ट हर लेती है सोलह सौ फीट क ऊंचाई पर माता बमलेश्वरी स्थापित है। 22 सौ वर्ष प्राचीन इस मंदिर में जाने के लिए 11 सौ सीढ़ियां एवम् रोपवे दोनों उपलब्ध है जिनका उपयोग भक्त अपनी श्रद्धा एवं शक्ति सामर्थ्य के हिसाब से करते हैं।
नीचे छोटी माता जिन्हें माता की छोटी बहन कहते है एवम् पहाड़ी पर बड़ी माता विराजती है। वैसे तो माँ के दरबार में सदैव भक्तों की भीड़ रहती है परंतु नवरात्रि के तृतीय दिवस में माता के दर्शन करने का खास महत्व है, माँ बमलेश्वरी को सच्चे प्रेमियों की इच्छा पूर्ण करने वाली माता भी कहां जाता है। माता को सम्राट विक्रमादित्य की कुलदेवी भी कहा जाता है। जो दुश्मनों का नाश करती हैं ।प्राप्त भग्नावशेषों से ज्ञात हुआ है कि प्राचीन काल में यह एक समृद्ध नगर था, जिसे कामाख्या कहां जाता था।
मंदिर की स्थापना के बारे में कोई विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं है परंतु कहा जाता है कि सम्राट विक्रमादित्य को स्वप्न में दर्शन देकर माता ने मंदिर की स्थापना का आदेश दिया तत्पश्चात मंदिर की स्थापना हुई।
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एक कथा यह भी है कि महाराज वीरसेन को माता दुर्गा व शिवाजी की प्रार्थना के पश्चात 1 पुत्र रत्न मदन सेन की प्राप्ति हुई और उनका कामसेन नामक पुत्र हुआ, राजा कामसेन को मदनादित्य नामक अय्याश पुत्र की प्राप्ति हुई। राजा काम सेन के दरबार में काम कंदला नामक नर्तकी और माधवानल नामक संगीतज्ञ था।
एक बार राज दरबार में काम कंदला के नृत्य के अयोजन में माधवानल ने कमकंदला के नृत्य की कमियों को पकड़ लिया और राजा काम सेन को बताया, प्रभावित होकर महाराजा कामसेन ने मोतियों का हार माधवानल को प्रदान किया।
कुछ दिनों पश्चात माधवानल कामकंदला पर मोहित हो गया एवम् उससे प्रेम करने लगा ,उसने राजा की दी हुई माला कमकंदला को भेंट कर दी। महाराजा को जब विदित हुआ तो उन्होंने मधवानाल को क्रोधित होकर देश निकाला दे दिया। माधवानल पहाड़ी में जाकर रहने लगा, और काम कंदला माधवानल से मिलने जाती रही।
बाद में महाराज कामसेन का पुत्र मदनादित्य काम कंदला के मोहपाश में पड़ गया, और काम कंदला माधवानल को की चाहती थी, परंतु मदनादित्या को बताया नहीं ,जब महाराज को इस बारे में ज्ञात हुआ तो उन्होंने कमकंदला को क़ैद कर दिया।
अतः माधवानल उज्जैन सम्राट विक्रमादित्य के पास सहायता माँगने गया। घमासान युद्ध हुआ, सम्राट विक्रमादित्य ने अपने देवता महाकाल को सहायता के लिए आमंत्रित किया, महाकाल स्वयं युद्ध मैदान में सैनिकों को मारने लगे, अनेक सैनिक मरने के पश्चात महाराजा कामसेन ने माता बमलेश्वरी का आह्वान युद्ध में सहायता के लिए किया, माँ के आगमन पर भगवान महाकाल नंदी से उतरकर माता को प्रणाम करने लगे और सुलह के पश्चात युद्ध थम गया। महाराजा कामसेन ने दोनों के प्यार की परीक्षा लेने के लिए कामकंदला को माधवानल के युद्ध में मारे जाने का झूठा समाचार सुनाया, सुनकर कमकांदला ने तालाब में छलांग लगा दी और मृत्यु को प्राप्त हुई, खबर सुनकर माधवानल ने भी अपने प्राण त्याग दिए। तब सम्राट विक्रमादित्य और राजा कामसेन ने दोनों को जीवित करने की माता से प्रार्थना की और जीवंत रूप में वही स्थापित होने का आह्वान किया , माता ने दोनों प्रेमियों को मिलाया और वही विराजमान हो गई। तत्पश्चात महाराजा कामसेन ने मंदिर का निर्माण किया।
माता की 10 हाथों की सिंदूरी मन मोहिनी मूर्ति को देखते ही मन प्रसन्न हो जाता है , मन को अपार शांति प्राप्त होती है ,माता भी भक्तों की झोली खुशियों से भर देती हैं। सच्चे प्रेमियों की भीड़ माता के दरबार में सदैव लगी रहती है। बरसात में मंदिर की मनोरम छटा देखते ही बनती है। बारम्बार जाने का में होता है ।
निकटतम पहुंच मार्ग:-
रायपुर हवाई अड्डा- दूरी 100 किलोमीटर
सड़क मार्ग- राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमाँक 6 से पहुंचा जा सकता है।
रैलमार्ग द्वारा-डोंगरगढ़ स्टेशन पर ही कई ट्रेनें रूकती है
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