
छत्तीसगढ़ के शक्तिपीठों की श्रृंखला में, एक नाम गंगरेल धमतरी स्थित, मां अंगार मोती का आता है।
वनदेवी मां अंगार मोती परम तेजस्वी 'ऋषि अंगिरा' की पुत्री हैं। जिनका आश्रम, सिहावा के पास गंढाला में स्थित है। कहते हैं कि, मां अंगार मोती एवं मां विंध्यवासिनी दोनों बहने हैं।
कहा जाता है कि, देवी का मूल मंदिर 'चंवर गांव' में स्थित है। किवदंती के अनुसार सप्त ऋषि के आश्रम से जब बहनें निकली तो, महानदी के उत्तर दिशा में मां विंध्यवासिनी का और दक्षिण दिशा में मां अंगार मोती का अधिकार क्षेत्र निर्धारित हुआ और दोनों अपने — अपने स्थान पर प्रतिष्ठित हुई।
1976 में जब 'गंगरेल बांध' बनकर तैयार हुआ, तब दर्जनों गांव उसमें डूब गए, जिसमें 600 साल पुराना मां का मंदिर भी था।
कहते हैं 1937 में मां की मूल प्रतिमा चोरी हो गई थी, परन्तु चोर उनके चरणों को नहीं ले जा पाए थे, तत्पश्चात नई प्रतिमा को चरणों के समीप स्थापित किया गया। गंगरेल में माता के पैर और रुद्री रोड सीताकुण्ड में मां का धड़ विराजमान है।
मंदिर के पुजारी के अनुसार धड़ निकट स्थित तालाब से, मछुआरों के जाल में फंस कर मिला। जिसे मामूली पत्थर समझ कर तालाब में डाल दिया। तब गांव के एक व्यक्ति को स्वप्न में माँ ने कहा, मुझे तालाब से निकाल कर निकट स्थित वृक्ष के नीचे स्थापित किया जाए। गांव वासियों के सहयोग से माता की मूर्ति की फिर से स्थापना हुई।
अंगार मोती मां के विवाह का कहीं उल्लेख नहीं है, वनदेवी होने के कारण मां स्वच्छंद प्रकृति की हैं, उनके दरबार में महिलाओं को सिर ढकने की मनाही है। वनदेवी एवं स्वच्छंद प्रवृत्ति की होने के कारण मां ने छत डलवाना स्वीकार नहीं किया। खुले में ही उनकी पूजा होती है। छत बनाने की कोशिश भी की गयी पर उसमें कभी दरार आ जाती तो कभी छत गिर जाती। तब मां को धूप से बचाने के लिए अनुष्ठान किए गए, तब जाकर देवी के ऊपर शीट लगाई जा सकी, और आसपास के स्थान को लोहे के पाइप से घेराबंदी की गई।
एक कथनानुसार 600 साल पुराना मंदिर गंगरेल बांध में डूब गया। इसके बाद मां स्वयं इसके डूब के क्षेत्र चंवर गांव के बीहड़ में प्रकट हुई तथा अपने तेज से इलाके को आलोकित किया। चमत्कारों वाली माता के नाम से प्रसिद्ध अंगार मोती मां को 1972 में वर्तमान जगह पर स्थापित किया।
यही अंगार मोती मां है जो संतान विहीन को संतान प्रदान करती है, जिनके दर्शन मात्र से भक्तों की इच्छा पूर्ण होती है। बारह मास यहां भक्तों का जमावड़ा लगा रहता है। भक्त नारियल बांध कर अपनी मनोकामना की पूर्ति की मांग करते हैं। जो भी मन्नत यहां मांगी जाती है, पूर्ण होती है।
कहते हैं यथा रूप तथा गुण को साकार करती मां पूरे शहर की सदियों से रक्षा करती है। यहां नवरात्रि में मनोकामना ज्योत भक्तों द्वारा जलाई जाती है।
अभी भी गंगरेल बांध में डूबे 52 गांव के ग्रामीण शुभ कार्य की शुरूआत के लिए मां अंगारमोती के दरबार पहुंचते हैं।
संतानहीन, हताश, निराश दम्पति, पुत्र प्राप्ति की कामना कर माता की दरबार में शरणागत होकर याचना करते है, माता की असीम कृपा से साल भर के भीतर याचक दम्पति का घर आंगन नन्हें शिशु की किलकारी से गुंजने लगता है। जन भावनाओं का मान रखती, श्रद्धा का सम्मान करती है माता अंगार मोती का दरबार, आस्थावान भगत जनों से सदा आबाद रहता है, दीन दुःखियों की पीड़ा हरने वाली माता का अपार स्नेह रोग, शोक और भय का विनाश कर सुख शांति और समृद्धि प्रदान करता है।
अल्प मृत्यु के भय से भयभीत, दुष्ट शक्ति से पीड़ित देवी बाधा से बाधित एवं बाल्य व्याधि के महान कष्ट से मुक्ति के लिए हजारों कोस दूर से लोग यहां आते है। मां अंगार मोती सभी प्रकार के कष्टों का निवारण कर भयमुक्त जीवन प्रदान करती है।
इसी परिसर के निकट में ही हनुमानजी और बाबा भंगाराम का मंदिर है, जहां पूजा के लिए महिलाओं का जाना वर्जित है। कहा जाता है कि बाबा भंगाराम अविवाहित थे, अतः महिलाओं को प्रवेश की अनुमति नहीं है।
यहां पर अखंड ज्योत सदैव प्रज्वलित रहती है। मां की महिमा का ही प्रताप है कि भक्तों ने चारभाटा, शीत प्रहरी, अगरी, हाटकेश्वर, माकड़ दान समेत कई स्थानों में मां की पूजा अर्चना प्रारम्भ कर दी।
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