इस कड़ी में अगला नाम माता चंद्रहासिनी मन्दिर का आता है।
प्राकृतिक हरियाली और नैसर्गिक सौंदर्य से भरपूर छत्तीसगढ़ प्रदेश का प्रमुख शक्तिपीठ माँ चंद्रहासिनी का मंदिर छत्तीसगढ़ के विशेष वृक्ष शीशम महानदी माँड नदी के किनारे और पहाड़ों से घिरा यह प्राचीन मंदिर भक्तों को बारंबार आने पर विवश करता है। चंद्रमा के आकार का माँ का मुख मंडल चांदी से चमकता है, ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर के जैसा नजारा विरले ही देखने को मिलता है।
कहा जाता है कि दक्ष यज्ञ के पश्चात जब महादेव ब्रह्माँड में माता सती के शव को लेकर विचरण कर रहे थे तब यहां माँ का बायां कपोल गिरा था, उसी वक्त माँड एवं महानदी के बीच स्थित टापू पर माँ की नथ गिरी थी। टापू पर माँ नाथल देवी का मंदिर स्थित है एवं ऊपर माँ चंद्रहासिनी का मंदिर है। मंदिर स्थानीय वासियों का विशेष श्रद्धा का केंद्र है । स्थानीय निवासियों के साथ दूर-दूर देश विदेश से श्रद्धालु माता के दर्शन को आते हैं, चैत्र एवं शारदीय नवरात्रि को कलश यात्रा निकाली जाती है मेला लगता है , एवं मनोकामना ज्योति श्रद्धालुओं द्वारा प्रज्वलित की जाती है। दूर-दूर से आए श्रद्धालु माता के श्रंगार का समान ,सिंदूर,फूल ,अगरबत्ती एवं नारियल अर्पित कर माँ के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं, और माता सभी की मनोकामना पूर्ण करती है।
माता की स्थापना के संबंध में कई कथाएं प्रचलित हैं, एक कथा अनुसार संबलपुर के राजा चंद्रहास आखेट के लिए जंगल में निकले। जानवर का पीछा करते-करते महाराज बहुत दूर आ गए जब धनुष उठाया तो जानवर देवी का रूप धारण कर अंतर्ध्यान हो गया। तब रात्रि में माता ने स्वप्न में महाराज को मन्दिर निर्माण करने का आदेश दिया और कहां तुम्हारी कीर्ति में इसके पश्चात बहुत वृद्धि होगी।
एक अन्य कथा के अनुसार एक दुष्ट पुलिस वाले ने अपने बच्चे को ऊपर से नदी में फेंका टापू में स्थित माँ नाथल दाई ने अपने आंचल में बच्चे को सुरक्षित रख लिया और बच्चे की जान बचाई नाथल दाई माता के दर्शन मात्र से व्यक्ति के पाप खत्म हो जाते हैं। कहते हैं चाहे कितनी भी बाढ़ आ जाए माँ का मंदिर सुरक्षित रहता है और मंदिर में पानी नहीं आता नथलदाई मा को चंद्रहासिनी माँ की छोटी बहन कहते हैं उनके दर्शन के बगैर यात्रा एवं मनोकामना पूर्ण नहीं होती।
एक और कथा प्रचलित है कि हजारों वर्ष पूर्व चंद्रसेनी माँ सरगुजा को छोड़कर रायगढ़ के समीप महानदी चंद्रपुर के तट पर आई महानदी की शीतल धारा के कारण माँ विश्राम करने लगी एवम् शीतल मंद वायु के कारण निद्रा मग्न हो गई, माँ की तंद्रा कई वर्षों तक जारी रही, अनेक वर्षोपरांत महाराज का यात्रा के दौरान माँ को पैर लग गया तब माँ की तंद्रा टूटी, रात्रि में राजा को स्वप्न में मूर्ति के साथ मंदिर निर्माण का आदेश दिया। चंद्रमा के समान मुख के कारण माँ को चंद्रहासिनी कहां गया, महाराज ने मंदिर निर्माण के पश्चात स्थानीय जमींदार को मंदिर की देखरेख और व्यवस्था का भार सौंप दिया, जमींदार ने माता को अपनी कुलदेवी स्वीकार किया तब से आज तक माँ की आराधना का क्रम जारी है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर अर्धनारी नटेश्वर की मूर्ति श्रद्धालुओं को मोहित करती है साथ ही महाभारत की कथाओं का मूर्ति के साथ चित्रण दर्शकों की जानकारी बढ़ाता है।
मंदिर के पीछे भक्त सिक्का चिपकाते हैं कहते हैं सिक्का चिपकने पर मनोकामना पूर्ण होती है। यहां प्रतिवर्ष नवरात्रि के मेले के साथ दशहरा भी धूमधाम से मनाया जाता है। चंद्रमा से भी सुंदर माँ अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ण करती है। कहां जाता है माँ जहां प्रगट हुई वहां माता के पैरों के निशान उपलब्ध है।
पहुंच मार्ग-
निकटतम हवाई अड्डा रायपुर दूरी 200 किलोमीटर।
ट्रेन द्वारा- रायगढ़ 32 किलोमीटर।
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