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“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता“ की परम्परा हमारे ग्रंथों में लिखी गई है जिसका अर्थ है - जहाँ महिलाओं का सम्मान किया जाता हैं वहां देवता निवास करते है। नारी यह कोई सामान्य शब्द नहीं बल्कि एक ऐसा सम्मान हैं जिसे देवत्व प्राप्त हैं। नारियों का स्थान वैदिक काल से ही देव तुल्य हैं इसलिए नारियों की तुलना देवी देवताओं और भगवान से की जाती हैं।
महिला दिवस सुनने में तो बहुत अच्छा लगता है, परंतु जब इस मुद्दे पर एकांत में विचार किया जाए, तो मन में एक सवाल जन्म लेता है कि आखिर ऐसी क्या दिक्कत थी, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं को सम्मान देने के लिए एक दिन की घोषणा करनी पड़ी? प्रत्येक वर्ष महिला दिवस आता है वह हम सब मिलकर उसे बड़े उत्साह से मनाते भी है। उस दिन नारी के मान की बातें होती है, उनके सम्मान की बातें होती है। परंतु कटु सत्य तो यह है कि यह सभी बातें केवल 1 दिन तक ही सीमित होती है या कुछ क्षण भर तक ही जब तक समारोह समाप्त न हो जाए।
मुझे यह बताते हुए अत्यंत गर्व हो रहा है कि महिलाओं ने हर क्षेत्र में तरक्की की है। परंतु मेरा प्रश्न यह है कि क्या हमारे समाज ने नारियों के प्रति अपनी सोच में तरक्की की है? आज भी यदि एक नारी अपने हक की बात करें तो उसे ही गलत ठहराया जाता है या चुप करा दिया जाता है। आज भी जब कुछ गलत होता है तो समाज नारियों से प्रश्न करता है। आज भी नारियां अपनी इच्छा अनुसार कुछ नहीं कर सकती और यदि हिम्मत जुटा कर कुछ करने का विचार भी मन में लाती है तो उनके इरादों को मजबूत करने की जगह कमजोर किया जाता है।
आज भी हमारे देश में चार लाख से ज्यादा घरेलू हिंसा के मामले हैं परंतु यदि यह महिलाएं स्वतंत्र रूप से जीना चाहे तो समाज उन्हें जीने नहीं देता। आज भी नारियों का दहेज के नाम पर सौदा किया जाता है और सच्ची पर कड़वी बात तो यह है कि तब यह समाज चुप्पी धारण कर लेता है। नारियों को पराया धन वह एक खिलौना समझा जाता है परंतु "नारी एक खिलौना नहीं बल्कि वह गहना है जिससे हमारा जीवन सुशोभित हो उठता हैं।" महिलाएं तरक्की पर है परंतु समाज को भी नारियों के प्रति अपनी सोच में तरक्की करनी होगी तभी सही मायने में हमारा महिला दिवस मनाना सफल होगा।
लेखिका - नेहा नाजवानी जी
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