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कन्याओं को पूजन से अधिक सुरक्षा की जरूरत है ...!
प्रकृति के खूबसूरत नजारों को अपनी आंखों में कैद करने का हक उनका भी है, वह भी खुली हवा की ताजगी रोम रोम में भरना चाहती है, पाखियों सी उड़कर गगन को छूना चाहती है, शिक्षा जगत में ऊंचाइयों का परचम लहराना चाहती हैं, बेटियों के परों में ताकत है अपने लक्ष्य तक पहुंचने की।
क्यों लग जाता है अंकुश उनके हसीन ख्वाबों पर ?
नवरात्रि का पर्व भारत भर में आस्था का दीप प्रज्वलित कर जाता है। घर-घर में पूजा अर्चना, धार्मिक अनुष्ठान होते है, एक दिन कन्याओं को देवी स्वरूप मान पूजन कर हम अपने दायित्वों से मुक्त हो जाते है। यह देवी स्वरूप कन्यायें कभी गर्भ में कुचल दी जाती है, तो कभी कच्ची उम्र में ही खिलने से पूर्व कई बार रौंद दी जाती है, कभी तेजाब की आग में झुलस जाती है।
क्या यह नन्हीं प्रतिमायें खंडित करने के लिए होती है?
देशभर में कन्याओं के साथ हो रहे अत्याचार को उनकी दर्दनाक करुण पुकार को भयवश और बदनामी के डर से अनसुना कर दिया जाता है और इसलिए समाज में विकृति भयानक रूप में फैल रही है क्योंकि यहां ज्यादातर गुनाह दर्ज ही नहीं होते है और गुनहगार सरेआम इज्जत के साथ समाज में घूमते है उनके खिलाफ आवाज नहीं उठाई जाती इसलिए उनका हौसला भी बढ़ जाता है।
वर्तमान युग यह स्पर्धा का युग है और इस स्पर्धा में शामिल होने का हक सभी को है। कन्यायें हर क्षेत्र में बढ़-चढ़ हिस्सा ले प्रगति के सोपान पर निरंतर आगे बढ़ना चाहती है किंतु इन सबके लिए घर की देहरी लांघ कर उसे बाहर निकलना अनिवार्य हो जाता है किंतु वह कहीं भी सुरक्षित नहीं यातायात के संसाधन हो अथवा क्रिडाजगत, कला जगत, शिक्षा जगत अनेक ऐसी जगहों पर कन्यायें अत्याचार का शिकार होती है यह मासूम कलियां पूरी तरह निर्दोष होती है किंतु दुर्भाग्यवश तमाम ऐसी घटनाएं होती है। जिस से इन्हें अपने लक्ष्य को तिलांजलि देनी पड़ती है और धीरे धीरे कर ऐसी अनगिनत प्रतिभायें पर्दे की आड़ में छिप जाती है और फिर हम अफसोस करते है हर क्षेत्र में पिछड़ने का, ऐसी घटनाएं सुरसा सा मुँह खोले आये दिन घटित हो रही है और इन घटनाओं से अनेक अभिभावक प्रभावित होते और दूषित समाज के चलते बेटियों के पैरों में बंदिशों की बेड़ियां डाल देते है। शालाओं में आजकल "गुड टच बॅड टच" का अंतर सिखाया जाता है किंतु सोचनीय है की मासूम सी कली बॅड टच का विरोध करने में कैसे सक्षम होगी।
गुनहगारों को कड़ी से कड़ी शिक्षा मिलेगी तभी समान प्रवृत्ति के लोगों तक वह बात पहुंच पायेगी और उनके मन में सजा का कुछ भय उत्पन्न होगा। बहुत से नाबालिग लड़कों को गुनहगार होते हुए भी नाबालिग होने के कारण सजा मुक्त कर दिया जाता हैं जो अनुचित है। माता पिता को तटस्थ होकर सच्चाई को उजागर करना होगा तभी "सत्यमेव जयते" का घोष सार्थक होगा और यहां नन्हीं कलियां सफलता के शिखर पर पहुंच भारत देश को अपने ज्ञान प्रकाश से जगमग करने में सफल हो पायेंगी।
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