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भगवान श्री राम अपनी पत्नी सीता मैया और भ्राता लक्ष्मण के साथ जंगल में पंचवटी बना कर रहे थे। पंचवटी बनाकर उसमें रहने से चमत्कारी लाभ प्राप्त होते हैं।
"मूल ब्रह्मा, त्वचा विष्णु ,शाखा रुद्र महेश्वर:।
पत्रे पत्रे तु देवानाम वृक्ष राजो नमोस्तुते "।।
अर्थात्- वृक्षों के मूल में ब्रह्मा है, तने में विष्णु, शाखाओं में रुद्र, शिव है, तो पत्तों में अन्य देवता निवास करते हैं अतः हे वृक्षराज आपको नमस्कार है।
पंचवटी का तात्पर्य - पंच यानी पांच और वट यानि वृक्ष। ये पांच विशेष प्रकार के वृक्ष जिस स्थान पर लगाए जाते हैं उसे ही पंचवटी कहते हैं। ये पांच वृक्ष निम्न हैं - पीपल, बेलपत्र, बड़, आंवला एवं अशोक।
इन पांचों वृक्षों को एक विशेष दिशा एवं दूरी पर लगाया जाना चाहिए ।
पंचवटी का महत्व स्कंद पुराण में वर्णित है। इसकी संरचना में आयुर्वेद, मनोविज्ञान, औघोगिक, वास्तुशास्त्र एवं पर्यावरण संरक्षण के लिए उपयोग होता है।
इन पांचों वृक्षों के अलावा हर प्रकार के वृक्ष और पौधे को उसकी सकारात्मक दिशा में लगाकर उससे उस स्थान की नकारात्मक ऊर्जा, धन संबंधी समस्या, रोग निवारण, बच्चों की पढ़ाई एवं परिवार के सभी सदस्यों के बीच प्रेम रहे, सभी प्रकार से सकारात्मक परिणाम प्राप्त कर सकते हैं ।
पांचों वृक्षों का महत्व -
इन पांचों वृक्षों में बहुत औषधिय गुण, धार्मिक महत्व, पर्यावरण के लिए महत्त्व होते हैं । इनके अंतर्गत वो सभी गुण पाए जाते हैं, जिनसे मनुष्य दीर्घायु रहकर अपने समस्त रोगों से निजात पा सकता है ।
आंवला -
आंवले को आयुर्वेद में अमृत फल कहा गया है। पेड़ पौधों से जो औषधि बनती है, उसको काष्ठोषधि कहते हैं और धातु खनिज से जो औषधि बनती है उसको रसौषधि कहते हैं। इन दोनों तरह की औषधि में आंवले का इस्तेमाल किया जाता है, यहां तक कि आंवले को रसायन द्रव्यो में भी सबसे अच्छा माना गया है, जिसका प्रभाव बालों के ऊपर देखने को मिलता है, इसका प्रयोग बालों पर करने से रूखे बाल काले, घने और चमकदार हो जाते हैं। चरक संहिता में १०० रोगो के लिए एक दवा बताई गई है, वो है आंवला। आंवला विटामिन सी का सबसे अच्छा स्त्रोत है, एवं शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है, इसलिए च्यवनप्राश में आंवले का उपयोग किया जाता है। आंखों के लिए, बालों के लिए, त्रिदोष, कब्ज, मूत्र विकार इनके अलावा अन्य रोगो में भी आंवले के बहुत फायदे हैं ।
पीपल -
पद्मपुराण में पीपल वृक्ष को भगवान विष्णु का रूप माना गया है। इस वृक्ष को दैवीय पेड़ के रूप में माना गया है। सोमवती अमावस्या के दिन पीपल के वृक्ष में भगवान विष्णु और माँ लक्ष्मी का वास होता है। पीपल में पितरों का निवास भी माना गया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अगर किसी को शनि की साढ़ेसाती चल रही हो तो हर शनिवार पीपल वृक्ष में जल अर्पित करके उसकी सात बार परिक्रमा लगाने से लाभ होता है। इसके साथ ही शाम के समय पीपल के पेड़ की जड़ में दीपक जलाना भी लाभप्रद होता है। पीपल रक्त विकार दूर करने वाला वेदनाशमक करता है। पीपल एक ऐसा वृक्ष है जिसमें से प्राणवायु आंक्सीजन के साथ साथ ओज़ोन गैस भी निकलती है, यह ओज़ोन गैस औरतों की प्रजनन शक्ति को बढ़ाकर ताकतवर बच्चे पैदा करने की शक्ति प्रदान करती है। इसके अलावा भी कई रोगो में पीपल की जड़ और पत्तों का उपयोग किया जाता है, जैसे सांस संबंधी, त्वचा संबंधी आदि।
बेलपत्र -
बेलपत्र के वृक्ष पर भगवान शंकर का निवास माना गया है। बेलपत्र पेट और शरीर की गर्मी को शांत करता है। बेल की पत्तियों, काष्ठ एवं फल में तेल ग्रंथिया होती है जो वातावरण को सुगंधित करती है। इस वृक्ष को लगाने से माँ लक्ष्मी जी भी बहुत प्रसन्न होती हैं, और जातक को वैभवशाली बनाती है। बेल फल में कैल्शियम, फास्फोरस, फाइबर, प्रोटीन और आयरन जैसे तत्व पाए जाते हैं, वहीं बेलपत्र में भी प्रोटीन, थायमीन, विटामिन बी, विटामिन ए और बीटा कैरोटीन जैसे तत्व पाए जाते हैं। इसके उपयोग से त्वचा संबंधी समस्याओं सहित और भी कई रोगो में निजात पाया जा सकता है।
अशोक -
हिन्दू धर्म में यह एक पवित्र, लाभकारी और मनोरथ पूर्ण करने वाला वृक्ष है। इस वृक्ष पर लक्ष्मी जी का निवास माना गया है।
अशोक का अर्थ है- किसी भी प्रकार का शोक न होना। माँगलिक और धार्मिक कार्यों में इसके पत्तों का प्रयोग किया जाता है। इस वृक्ष पर प्राकृतिक शक्तियों का विशेष प्रभाव रहता है, जिसके कारण यह वृक्ष जहां लगा होता है, वहां पर सभी कार्य पूर्णतः निर्बाध रूप से सम्पन्न हो जाते हैं। स्त्री विकारों को दूर करने वाला प्रमुख वृक्ष है। यह एक सर्वश्रेष्ठ वृक्ष है । सीता मैया ने अशोक वाटिका में अशोक वृक्ष के नीचे लगातार बैठकर इतनी शक्ति प्राप्त कर ली थी कि वो रावण जैसे राक्षस को भी वश में करके शोक रहित हो गई थी। यह सदाबहार वृक्ष है कभी पत्तो के रहित नहीं रहता है एवं छाया प्रदान करता है।
बरगद / बड़ -
बरगद के वृक्ष पर ब्रह्मा जी का निवास माना गया है। बरगद के पेड़ से कफ, वात, पित्त दोष ठीक किया जा सकता है। स्त्रियो के श्वेत प्रदर, रक्त प्रदर तथा पुरूषों के स्वप्न दोष प्रमेह अर्थात धातु संबंधी सभी रोगो को दूर करने के लिए यह रामबाण औषधि है। बन्धया को संतान का सुख प्राप्त होता है इसके उपयोग से उसका जीवन स्वर्ग समान हो जाता है। बड़ का दूध बहुत बलदायी होता है, इसके सेवन से शरीर का कायाकल्प हो जाता है । जीवन शक्ति में वृद्धि होती है।
पर्यावरण महत्व के रूप में इन वृक्षों पर फल उपलब्ध होने से पक्षियों एवं अन्य जीव जंतुओं को निरंतर भोजन उपलब्ध रहता है । पक्षियों के घोंसला बनाने के लिए उपयुक्त रहते हैं, वे इन पर स्थायी निवास कर सकते हैं। शुद्व वातावरण बना रहता है जिससे हम स्वस्थ जीवन जीते हैं। जलवायु के लिए भी वृक्षों का महत्वपूर्ण स्थान होता है।
पंचवटी के अलावा भी सभी वृक्षों एवं पौधों का अलग अलग महत्वपूर्ण स्थान होता है, उनको वास्तु शास्त्र के अनुसार उनकी सही दिशा में लगाकर बहुत शुभ फल प्राप्त किए जा सकते हैं। घर के अलावा इन वृक्षों और पौधों का महत्व व्यक्ति के कार्य क्षेत्र में भी बहुत है वहां भी अगर वास्तु के अनुसार छोटे पौधे लगाए जाएं तो कार्य क्षेत्र में काम करने वाले सब पर उसका प्रभाव पड़ता है जिससे कार्य क्षेत्र में प्रगति होती है।
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