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बलिदानी - स्वतंत्रता के नायक

बलिदानी - स्वतंत्रता के नायक  

स्वतंत्रता के दीवाने देश के इन वास्तविक नायकों को भी याद करके श्रद्धा सुमन अर्पित करे हम और कहे... 
"तेरा वैभव अमर रहे मां हम दिन चार रहे ना रहें।"

1 खुदीराम बोस              उम्र 18 वर्ष  11.8.1908 
2 बादल गुप्ता                उम्र 18 वर्ष   7.7.1931 
3 करतार सिंह सराभा     उम्र 19 वर्ष।   16.11.1915 
4 दिनेश गुप्ता।              उम्र 19 वर्ष।  7.7.1931 
5 हेमू कालानी।             उम्र 19 वर्ष।  21.1.1943 
6. प्रफ़ुल्ल चाकी।          उम्र 20 वर्ष।   
7 बसंत कु बिस्वास।      उम्र 20 वर्ष।   11.5.1915 
8 कनाईलाल दत्ता।        उम्र 20 वर्ष।  10.11.1908 
9 प्रीतिलता वाडियार।    उम्र 21 वर्ष 
10 बेनोय बसु।             उम्र 22 वर्ष   13.12.1930 
11 शिवराम राजगुरु।     उम्र 22 वर्ष   23.3.1931 
12 भगत सिंह               उम्र 23 वर्ष।   23.3.1931 
13 चंद्र शेखर आज़ाद।   उम्र 24 वर्ष   27.2.1931 
14जतिन्द्र नाथ दास।     उम्र 24 वर्ष।   
15 सुखदेव थापर।        उम्र 24 वर्ष   23.3.1931 
16भगवती चरण वोरा।  उम्र 25 वर्ष।  28.5.1930 
17 मदन लाल धींगरा।   उम्र 25 वर्ष   17.8.1909 
18 प्रताप सिंह बारहट    उम्र 25 वर्ष   7.5.1918 
19 भाई बालमुकुंद।       उम्र 26 वर्ष।   11.5.1915 
20 राजेन्द्र लाहिड़ी।       उम्र 26 वर्ष   17.12.1927   
21 विष्णु गणेश पिंगले    उम्र 27 वर्ष।  16.11.1915 
22 बैकुंठ शुक्ला।           उम्र 27 वर्ष।   14.5.1934 
23 मंगल पांडे।              उम्र 29 वर्ष।   8.4.1857 
24 राम प्रसाद तोमर।      उम्र 30 वर्ष।   19.12.1927 
25 वीरभाई कोतवाल।     उम्र 31 वर्ष।    
26. रोशन सिंह।              उम्र 35 वर्ष।   19.12.1927 
27. बाघा जतिन।            उम्र 35 वर्ष।   9.9.1915 
28. सूर्या सेन।                उम्र 39 वर्ष    12.1.1934 
29. उधम सिंह।              उम्र 40 वर्ष।   
30. बटुकेश्वर दत्त।           उम्र 54 वर्ष। 1965 
31. गोपीनाथ साहा।         उम्र 18 वर्ष   मार्च 1924 
32. वाजि राऊत ओडिशा। उम्र-12 वर्ष     

ये है भारत निर्माण के नायक।

सादर नमन।


तकलीफ तो होगी साहब ... 
जब सात लाख बत्तीस हजार बलिदानियों को भुला कर आजादी का श्रेय सिर्फ एक परिवार ले रहा था तब हमको भी तकलीफ होती थी ... भारत को आजाद करने के लिए जी नौजवानों ने अपने प्राणों की आहुति दिया उन बलिदानियों को जब आतंकवादी कहा जाता था तब तकलीफ मुझे भी होती थी .... जब गांधी की बकरी जिस रस्सी से बँधी जाती थी वह म्यूजियम में मौजूद है नुमाइश के लिए लेकिन उस रस्सी का कोई आता पता नही जिस रस्सी को चूम कर भगत सिंह सुखदेव, राजगुरु अमर हो गए तब तकलीफ मुझे भी होती थी .... जब भारत के आक्रांताओं हुमायूं, अकबर, बाबर जैसे क्रूर जिहादियों के नाम से सड़के थी तब तकलीफ मुझे भी होती थी, जब इसी देश मे भारत के अमर बलिदानी चंद्रशेखर आजाद के नाम के पत्थर को लातों से ठोकर मार कर उखाड़ दिया जाता था और कहा जाता था इस आतंकवादी का पत्थर यहाँ नही लगेगा तब तकलीफ मुझे भी होती थी ....

दोस्तो 1947 में भारत को आजादी मिली  बाद कोई भी परियोजना अगर लागू होती तो उस योजना का नाम सिर्फ एक परिवार के नाम से ही जोड़ा गया ,जितने भी प्रतिष्ठानो का निर्माण हुआ वह सब भी इसी परिवार के नाम से ही विख्यात हुआ .…...  हमारे योद्धाओं ,बलिदानियों का पग पग पर तिरस्कृत किया गया लेकिन तब सब के होंठ सिले हुए थे ...जहाँ देखो जिधर देखो सिर्फ दो ही चींजे आपको देखने को मिलेगी राज परिवार का महिमा मंडन या फिर जेहादियों, आक्रांताओं के नाम से सड़के, एक भी प्रमुख सड़क ऐसी नही है जो किसी क्रांतिकारी के नाम से हो कोई ऐसा पुरस्कार नही जो हमारे वीर बलिदानियों के नाम से हो। लेकिन कहते है न कि समय बहुत बलवान होता है जो चीजें गलत हाथो में चली गयी थी थी आज सरकार उसे सही हाथो में सौप रही है .... जिस सम्मान का जो अधिकारी है।

अभी बदलाव की अंधी चल रही है जब तक सम्पूर्ण परिवर्तन नही आ जाता है तब तक इस अंधी को रुकने नही देना मेजर ध्यानचंद चंद को उनका असली सम्मान आज दिया है ।

जय हिन्द।  
जय भारत।।     

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